भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल पर 1984 की 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात कहर बनकर टूटी। इस रात करीब 3 से 4 बजे के बीच राजधानी में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस निकली( संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार ), जिसके चलते कई लोग जो रात में सोए थे,वे हमेशा के लिए सो गए। वहीं कुछ लोग जो घर से बाहर थे वे कभी वापस घर ही नहीं लौटे।
वहीं सरकारी आंकड़ों का अनुमान है कि वर्षों में आपदा के परिणामस्वरूप 15,000 मौतें हुई हैं। जबकि अब तक मौसम में विषाक्त सामग्री बनी हुई है और हजारों उस समय चपेट में आए जीवित बचे लोग और उनके वंशज श्वसन रोगों से या आंतरिक अंगों और प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान से पीड़ित हैं।
रात की भयानकता...
उस रात की त्रासदी इतनी भयानक थी कि संयुक्त राष्ट्र ने तक 'भोपाल गैस त्रासदी' को 20वीं सदी में दुनिया की '"प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक माना।
इस घटना ने 6 लाख से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया। इस दुर्घटना ने 1984 में हजारों लोगों की जान ले ली थी।
वहीं 'वर्क ऑफ द फ्यूचर ऑफ द फ्यूचर ऑफ वर्क- बिल्डिंग ऑन 100 इयर्स एक्सपीरियंस' शीर्षक से रिपोर्ट में कहा गया है कि भोपाल की आपदा 1919 के बाद दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी।
भोपाल गैस त्रासदी: जो सो रहा था वो सोता ही रह गया और जो बाहर आया वो वापस नहीं लौटा!
यहां आज भी हादसे की दास्तां सुन बिलख पड़ते हैं लोग...
इसी की याद में करोद फाटक से लगे हाउसिंग बोर्ड की न्यू पार्क कॉलोनी के एचआईजी-22 में पांच साल पहले शुरु किया गया रिमेम्बर भोपाल ट्रस्ट का म्युजियम 1984 की यादों के दृश्य को ही संजोए नहीं हैं, बल्कि सौ से अधिक टेलिफोन भी उन दृश्यों के नीचे लगे हुए है, जिनकों उठाओं तो उस समय की दस्तां सुनने को मिलती है।
वहीं उस काली रात का दृश्य व यादें यहां आकर लोग जब देखते हैं तो सहम ही नहीं जाते, बल्कि उस मंजर के फोटो देख या उस हादसे की दास्तां सुन बिलख तक पड़ते हैं।
इतना ही नहीं विदेशी भी यहां आकर उस हादसे की फोटो देखने के बाद जब फोन पर उस दृश्य की दास्तां उन लोगों द्वारा रिकॉर्ड की गई जुबा से सुनते हैं, तो रो देते है।
उस काली रात की याद में बनाए गए म्युजियम में प्रत्येक घटना के दृश्य के नीचे उस व्यक्ति या उसे खो चुके उससे जुड़े लोगों की आवाजें सुनने को मिल जाती हैं।
अपनों की निशानी या परिवार के फोटो देखने आते हैं यहां...
यहां के रिकॉर्ड को देखने और यहां के कर्मचारियों से मिली जानकारी के अनुसार लोकल भोपाल के सिर्फ वह लोग आते हैं जिनकी कोई निशानी या उनके परिवार के किसी के फोटो यहां लगे हुए हैं, जबकि सबसे अधिक विदेशी इस म्युजियम को देखने आते हैं। अमेरिका, जापान के लोगों की संख्या इसमें सबसे अधिक है।
34 साल बाद जब पत्नि का फोटो देखा तो बिलख पड़ा पति...
साफरीन बताती है कि कुछ दिन पहले ही एक व्यक्ति म्युजियम में आए और यहां लगी एक महिला की गैस लगने के बाद रोते, तड़पती फोटो देखी तो इतना रोया की उसे चुप करना मुश्किल हो गया।
उसने बताया कि 34 साल पहले 1984 में ये गुम हो गई थी। इसकी कोई फोटों भी मेरी पास नहीं थी। म्युजियम में उसकी फोटो इतने साल बाद देखी है।
साफरीन बताती है कि म्युजिम में स्थानीय वह लोग जरुर आते है जिनके परिजनों की निशानी यहां रखी है। महिला कर्मचारी विश्वकर्मा बताती है कि एक लड़की की मां की साड़ी यहां रखी हुई है। उसे देखने व खूब आती है।