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Tuesday, December 10, 2019

कोठे पर बेची गई वेश्या के प्यार और आजादी की कहानी... उसकी अंधेरी जिंदगी में उजाला बन गया वो शख्स

मेरठ के रेड लाइट एरिया कबाड़ी बाजार में एक कोठे पर बेची गईं अनीता (बदला हुआ नाम) के लिए एक शख़्स जैसे उनकी अंधेरी जिंदगी में रोशनी बनकर आया। वैसे तो सेक्स वर्कर की ज़िंदगी में प्यार की जगह नहीं होती लेकिन अनीता की ज़िंदगी में प्यार का रंग धीरे-धीरे चढ़ने लगा था। हालांकि, अनीता कई ज़िल्लत भरे भावनाहीन संबंधों से गुजरी थीं इसलिए भरोसा करना थोड़ा मुश्किल था। फिर भी उम्मीद की किरण बरकरार थी। इसी प्यार ने अनीता को सेक्स वर्कर की जिंदगी से आजादी दिलाई। उन्हें समाज में एक सम्मानजनक जीवन मिल सका।
नौकरी के नाम पर लाई गई:-
पश्चिम बंगाल के 24 परगना से लाई गई अनीता की ज़िंदगी कई पथरीले रास्तों से होकर गुजरी थी। वह बताती हैं, "मेरे घर में मां-बाप और एक छोटी बहन और भाई थे। घर में हमेशा पैसों की किल्लत रहती थी। ऐसे में कमाने वाले एक और हाथ की जरूरत थी। इसलिए मैंने सोचा कि मैं भी कमा लूं, तो घर में कुछ मदद हो जाएगी।' तब गांव के ही एक आदमी ने मुझे शहर में नौकरी दिलाने की बात की। उसने मेरे मां-बाप से भी कहा था कि वो कोई काम दिला देगा और अच्छे पैसे मिलेंगे। करीब पांच साल पहले मैं उसके साथ आ गई। लेकिन, कुछ दिन टाल मटोल करने के बाद उसने मुझे कोठे पर बेच दिया।
धमकियां दी गईं:-
उस वक्त अनीता के लिए तो जैसे दुनिया ही पलट गई। कुछ दिन तो उसे समझ ही नहीं आया कि उसके साथ हुआ क्या है। वो उन लोगों से जाने देने की मिन्नतें करती रही लेकिन उसके लिए किसी का दिल नहीं पसीजा। नौकरी करने आई अनीता के लिए यौन कर्मी बनना, मौत को गले लगाने जैसा था। शुरुआत में अनीता ने इसका बहुत विरोध किया। उनके साथ मारपीट तक हुई। जान से मारने, चेहरा खराब करने की धमकियां दी गईं। अनीता कहती हैं, "मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। एक तो मैं उस जगह के लिए नई थी। वो जगह मेरे लिये जेल बन गई थी। मेरे साथ जबर्दस्ती भी की गई। ताकि ग्राहकों के लिए मैं तैयार हो जाऊं। अब मरने या हां बोलने के सिवा मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। मैं टूट गई और इस धंधे में खुद को सौंप दिया।
नर्क से छुटकारा चाहिए था:-
लेकिन, अनीता की जिंदगी में तब बदलाव आया जब उनकी मुलाकात मनीष (बदला हुआ नाम) से हुई। वो कहती हैं कि कब मनीष और उनके बीच एक खास रिश्ता बन गया दोनों में से किसी को पता ही नहीं चला। मनीष आए दिन मुझसे मिलने आने लगे। वो मुझसे बातें किया करता था और मुझे अच्छा लगता था। फिर एक दिन अचानक अपने दिल की बात मनीष ने अनीता के सामने रख दी। अनीता को कोठे के नर्क से छुटकारा चाहिए था। मनीष में उसे सहारा दिखा। लेकिन, मनीष पर आसानी से भरोसा भी नहीं हो पा रहा था। अनीता पहले के धोखे से थोड़ा संभल गई थी। इसलिए संभल कर अनीता ने मनीष से कोठे से निकलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी। कोठे के लोगों को मनीष के बार-बार आने के बारे में पता था।
स्टाम्प पेपर पर लगाया अगूंठा:-
लेकिन, उनके लिए ऐसा होना बहुत अजीब नहीं था क्योंकि कई बार ऐसे ग्राहक आते हैं जिन्हें कोई खास लड़की पसंद आ जाती है। तब मनीष ने एक एनजीओ से संपर्क किया। ये संस्था मेरठ में ही काम करती है और वेश्यावृत्ति में फंसी लड़कियों को छुड़ाने और पुनर्वास में मदद करती है। अक्सर कोठे पर जाने वाले ग्राहक ही उनके मुखबिर होते हैं।
एनजीओ के संचालक अतुल शर्मा ने बताया, "मनीष मेरे पास आया था। उसने बताया कि वह कोठे पर एक लड़की से प्यार करता है और उसे निकालना चाहता है। मैंने उससे पूछा कि कोठे से लाने के बाद क्या होगा। मनीष ने कहा कि वह अनीता से शादी करना चाहता है।'' अतुल कहती हैं कि उनके लिए पहली बार में भरोसा करना थोड़ा मुश्किल था। उन्होंने कुछ दिनों बाद आने के लिए कहा ताकि देख सकें कि उसके इरादे कितने पक्के हैं। मनीष दो दिन बाद फिर आया और उसने वही बात कही। अब अतुल शर्मा को कुछ यकीन हुआ।
जब कोठे से निकाला गया:-
अतुल शर्मा ने कहा कि वह पहले लड़की की सहमति लेकर आए क्योंकि जबरदस्ती उसे कोठे से लाना मुश्किल होगा। मनीष अनीता के पास गया और उसे ये बात बताई। अनीता उस जगह से निकलने के लिए इतनी बैचेन थी कि उसने एक स्टाम्प पेपर लाने को कहा। जब मनीष पेपर लेकर गया तो उसने खाली कागज पर अपने अंगूठे के कई निशान लगा दिए। अनीता कहती हैं, "मुझे लिखना नहीं आता था। मैं बाहर किसी से बात भी नहीं कर सकती थी। मैं बस चिल्लाकर कहना चाहती थी कि मुझे वहां से निकाल दो।" इसके बाद अतुल शर्मा पुलिस के साथ कोठे पर पहुंचीं।
दलाल का डर:-
वह बताती हैं कि वो लड़की का चेहरा नहीं पहचानती थीं इसलिए उन्होंने तेज आवाज में कहा, अनीता। तभी एक लड़की उठ खड़ी हुई। "मैं समझ गई कि यही वो लड़की है। मैंने उसका हाथ पकड़ा और साथ चलने को कहा। वह थोड़ा डर रही थी क्योंकि कोठे से निकलने के बाद भी दलाल का डर बना रहता है। फिर कोठा चलाने वाली मुझे रोकने लगी लेकिन मैंने कहा कि ये लड़की यहां से जाना चाहती है। अगर ये सीढ़ियां उतरती है तो हमारी हुई और अगर नहीं, तो फिर मैं चली जाऊंगी। मैंने इतना ही कहा था कि वो भागती हुई सीढ़ियों से उतरी और हमारी गाड़ी में बैठ गई।" इसके बाद अतुल शर्मा ने मनीष के माता-पिता से बात की। स्वाभाविक था कि पहले वो लोग तैयार नहीं हुए लेकिन बेटे की जिद के आगे और समझाने पर मान गए। लेकिन, उन्होंने लड़की का अतीत छुपाए रखने की शर्त रखी।
रहन-सहन की ट्रेनिंग:-
अनीता बताती हैं, "मैंने तो शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था लेकिन मनीष के आने से थोड़ी उम्मीद जगी थी। उसके माता-पिता मुझे नहीं अपनाते तो भी बुरा नहीं लगता। आखिर कोई क्यों अपने सिर बदनामी लेगा। लेकिन, धीरे-धीरे उन्होंने मुझे पूरी तरह अपना लिया। आज मेरी एक बेटी भी है और उसे एक इज़्ज़त भरी ज़िंदगी नसीब है।" मेरठ का कबाड़ी बाजार रेड लाइट एरिया है। यहां लड़कियों का सीटियां मारकर कस्टमर बुलाना आम बात है।
ऐसे में उन्हें कोई भी सामान्य लड़कियों से अलग पहचान सकता है। लेकिन, अब वहां से छुड़ाकर लाई गई कई लड़कियों के घर बस गए हैं। उन्हें रोज़गार देने के भी प्रयास किए गए हैं। वहां से निकाल कर अब ये संस्था इन लड़कियों को सामान्य रहन-सहन की ट्रेनिंग भी दे रही है। इसके लिए उन्हें कुछ दिन संस्था के वॉलेंटियर्स के घर रखा जाता है ताकि वो उस घर की महिलाओं से सामान्य रहन-सहन का तरीका सीख लें। अतुल शर्मा ने बताया कि कोठे पर लंबे समय तक काम करने वाली लड़कियों का उठना-बैठना, बोलना सब बदल जाता है। वह एक आम परिवार में रह सकें इसकी कोशिश की जाती है।