मसूरी। पुलिस अकादमी के मैदान पर पासिंग आउट परेड हो रही थी और एक युवा महिला आईपीएस अधिकारी के मन में एक बात चल रही थी 'आखिरकार हमने करके दिखा दिया, अब जमीन पर उतरकर समाज के लिए बेहतर करना हैं '। वो अधिकारी थी, 2008 बैच की आईपीएस अलंकृता सिंह। बचपन से ही पिता से एक ही सीख मिली आत्मसम्मान के साथ जीवन जीना है, समाज ने जो दिया है उसको सम्मान के साथ वापस देना है। आईपीएस अधिकारी अलंकृता सिंह की कहानी बहुत दिलचस्प है। आइए आज जानते हैं उनकी शक्ति और संकल्प की प्रेरक कहानी।
प्रश्न- आपको आईपीएस बनने की प्रेरणा कहां से मिली ?
अलंकृता सिंह- मुझे मेरे पिता से यह प्रेरणा मिली। हम दो बहनें हैं और बचपन से ही पिताजी ने यह प्रेरणा दी कि अपने पैरों पर खड़ा होना है। आत्मसम्मान के साथ मजबूत इंसान बनकर समाज के लिए कुछ करना है। देश के लिए समर्पित होकर अच्छा करके दिखाना है। मेरे माता-पिता ने प्रेरणा दी, प्रोत्साहित किया कि कुछ बनना है।
प्रश्न-मां की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण होती है, आपके जीवन में क्या रही ?
अलंकृता सिंह- मेरी मां का बहुत सहयोग रहा है मेरे जीवन में, आज में जहां हूं उनकी नसीहत का असर है, उन्होंने हमेशा हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और साथ ही साथ मजबूत चरित्र का इंसान बनाया। मां ने हमें टिपिकल लड़कियों की तरह परवरिश नहीं दी। ऐसी मानसिकता हमारे दिमाग में नहीं डाली कि- घर का काम करना ही लड़कियों की नियति नहीं है। घर संभालना ही तुम्हारा भविष्य नहीं है।
प्रश्न- आप भविष्य में किस रूप में अपनी पहचान देखना चाहती हैं, आपका सपना क्या हैं ?
अलंकृता सिंह- मुझे एक इंसान होने के नाते जो करने में सबसे ज्यादा खुशी होगी वो यह होगा कि मुझे जो जीवन मिला है, जो अवसर मिला है आईपीएस बनकर लोगों की सेवा करने का मैं उसके लिए बहुत कृतज्ञ हूं। जितना समाज से मिला हैं उतना वापस दे पाए। इस पुलिस में आम आदमी की मदद करने का बड़ा अवसर मिलता है । मेरे जीवन का लक्ष्य हैं मानवता की सेवा ।
प्रश्न- आपने बोला कि-आप समाज को वापस देना चाहती हैं। किस रूप में देना चाहती हैं, कुछ सोचा है इस बारे में ?
अलंकृता सिंह- हां बिलकुल, मेरे अंदर हमेशा रहता है कि कैसे समाज के लिए करना है, दो तीन बातें मन में रहती हैं- महिलाओं के ऊपर जो अपराध होते हैं उन पर काम करना है। बच्चों के विषय पर खासतौर पर काम करना है। इस तरह के काम करने हैं कि लोगों के जीवन में अंदर से सकारात्मक परिवर्तन हो।
प्रश्न- आप एक अधिकारी हैं साथ-साथ एक बेटे की मां भी, किस तरह संभालती हैं जिम्मेदारी ?
अलंकृता सिंह- मैं और मेरा बेटा साथ मिलकर एक सपना देखते हैं, जिसको मैं जरूर पूरा करना चाहूंगी। हम दोनों चाहते हैं कि स्ट्रीट डॉग्स के लिए एक जमीन का टुकड़ा लेकर शेल्टर हाउस का निर्माण करें। इंसानियत का परिचय- 'सबकी सेवा है'।
प्रश्न- जब पहली बार वर्दी (यूनिफार्म) पहनीं तो क्या एहसास था ?
अलंकृता सिंह- बहुत अच्छा महसूस हुआ, जिम्मेदारी महसूस हुई। पहला एक महीना ट्रेनिंग का बहुत मुश्किल था। समाज में हम लिंगभेद और विषमताएं व्याप्त हैं, आज मैं उसको बेहतर समझ पाती हूं। ट्रेनिंग के दौरान महसूस करती थी कि मुझे इतना दर्द क्यों होता है, क्यों ये काम इतना कठिन लग रहा है। जिस तरह आज हमारे समाज में लड़कियों का पालन पोषण हो रहा है, उनको खेलने-कूदने से रोका जाता है, बाहर खेलने जाने पर रोक-टोक होती है, घर में खेलने की ही नसीहत दी जाती है। मेरी भी पढ़ाई-लिखाई गर्ल्स स्कूल में हुई, वहां भी खेलकूद के अवसर सीमित थे, जिस वजह से फिजिकल ट्रेनिंग के समय दिक्कत आती है। जाहिर है ऐसे में खेलने के लिए प्रेरित जरूर करना चाहिए।
प्रश्न- पीओपी यानि पासिंग आउट परेड करते वक्त क्या एहसास हो रहा था?
अलंकृता सिंह- अद्भुत अनुभव था, जो ट्रेनिंग के पहले दिन लग रहा था क्या हम रस्सा चढ़ पाएंगे, घुड़सवारी कर पाएंगे, कभी सोचा नहीं था की ये सब कर पाएंगे। कैसे एक साल में अकादमी ने हमे सब सीखा दिया और हमे अपने उस्तादों की मदद से सब कर दिखाया। अपने अंदर की वो सब चीज़ें सामने निकलकर आ गईं जो सोचा नहीं था। वो अनुभूतियां खूबसूरत हैं ।
प्रश्न- जिस अकादमी से आप बनकर निकलीं, आज उस अकादमी को संभाल रही हैं उसकी डिप्टी डायरेक्टर हैं, कितनी जिम्मेदारी और कितना गर्व ?
अलंकृता सिंह- बहुत अच्छा लगता है, समय के साथ आप आगे निकल सकते हैं। युवा पीढ़ी से बहुत कुछ सीख सकते हैं। अकादमी में उनके साथ अनुभव साझा करने का बेहतरीन मौका मिलता है।
प्रश्न- महिलाओं और बच्चों में जो अपराध बढ़ रहे हैं उनको कैसे तकनीक के माध्यम से रोका जा सकता है और इसमें ट्रेनिंग की भूमिका क्या हो सकती है ?
अलंकृता सिंह- पुलिस बहुत पुरानी संस्था है और लंबे अरसे से सीआरपीसी और आईपीसी की प्रैक्टिस कर रहे हैं, जरूरत है और प्रभावी तरीके से काम करने की। महिलाओं और बच्चों को लेकर और ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। यह पुलिस के लिए भी बड़ी चुनौती है। उनके प्रति संवेदनशील होने की बहुत जरूरत है खासकर दुष्कर्म पीड़िता के साथ क्योंकि वो समाज से लड़ती हैं, समाज के द्वारा पीड़ित होती हैं और समाज से ही लड़ती हैं।
प्रश्न- तान्या शेरगिल एक नाम, जब कोई महिला नेतृत्व करती है तो कैसा लगता है?
अलंकृता सिंह- बहुत अच्छा लगता है और भविष्य बेहतर दिखता है। महिलाएं हर जगह परचम लहरा रही हैं, जिस जगह भी हैं बेहतर कर रही हैं । सबसे गर्व की बात है- अपने दम पर आगे बढ़ रही हैं। तान्या को देखकर अच्छा लगता है ।
प्रश्न- 'शक्ति' के मंच से महिलाओं के लिए संदेश ?
अलंकृता सिंह- सभी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। अपने समकक्ष पुरुषों से ज्यादा चुनौतियों का सामना कर रही हैं। मेरा सन्देश यही है- बस हिम्मत बनाए रखिए, फिर देखिये हमारे लिए कोई भी चीज असंभव नहीं है। हम सबकुछ कर सकते हैं बस जरूरत है खुद पर विश्वास की।
अलंकृता सिंह का परिचय:-
2008 बैच की आईपीएस
वर्तमान नियुक्ति- डिप्टी डायरेक्टर, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी
मूल निवासी- बरेली, उत्तर प्रदेश
पिता- एसएस गंगवार
माता - विनय गंगवार
शिक्षा- 2002 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी
पति- विद्याभूषण, आईएएस