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Thursday, May 28, 2020

हर्ड इम्युनिटी के बाद अब कोविड-19 के लिए IMMUNITY PASSPORT की चर्चा, जानें क्या है

नई दिल्ली। कोरोना संकट से निपटने के लिए मजबूरी में लगाए गए लॉकडाउन के कारण दुनिया के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगा है। ऐसे में अलग-अलग देशों में आर्थिक गतिविधियां बहाल किए जाने का रास्ता निकालने पर माथापच्ची हो रही है। इसके लिए हर्ड इम्यूनिटी (झुंड प्रतिरक्षा) की अवधारणा सामने आई और अब बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली आबादी की पहचान कर उन्हें चिह्नित करने के लिए इम्यूनिटी पासपोर्ट जारी करने का आइडिया सामने आया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भेदभाव और जानबूझ कर संक्रमण के मामलों को बढ़ावा मिलेगा।
इम्यूनिटी पासपोर्ट की चर्चा:-
कोविड-19 को फैलने से रोकते हुए अनिवार्य गतिविधियां शुरू करने के उपायों पर मंथन के बीच 'इम्यूनिटी पासपोर्ट' को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। कुछ देश इस तरह के दस्तावेज पर जोर दे रहे हैं जो किसी व्यक्ति को रोग के लिए प्रतिरोधक क्षमता रखने वाला प्रमाणित करता हो। कोरोना वायरस के टीके के विकास में अभी कई महीने लग सकते हैं, ऐसे में किसी व्यक्ति के संक्रमित होने और SARS-COV- 2 के लिए प्रतिरोधक क्षमता रखने का प्रमाण देने के प्रस्ताव पर गहन मंथन चल रहा है।
क्या है इम्यूनिटी पासपोर्ट:-
दरअसल, उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को लॉकडाउन की पाबंदियों से छूट देने की तरकीब पर चर्चा हो रही है। इसके तहत, जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होगी, उसे 'इम्यूनिटी पासपोर्ट' देकर उसे शारीरिक दूरी की पाबंदियों से छूट दी जा सकती है और वह कामकाज पर लौट सकता है, बच्चे स्कूल जा सकते हैं। विषाणु विज्ञानी उपासना रे ने कहा, 'एक इम्यूनिटी पासपोर्ट इस बात का प्रमाणपत्र है कि कोई व्यक्ति सार्स-सीओवी-2 संक्रमण को लेकर प्रतिरक्षा क्षमता रखता है।
हर्ड इम्यूनिटी से कैसे अलग है इम्यूनिटी पासपोर्ट:-
इससे पहले हर्ड इम्यूनिटी की चर्चा जोर पकड़ी थी। हर्ड इम्यूनिटी का कॉन्सेप्ट इस बात पर आधारित है कि अगर 60% से ज्यादा आबादी में ऐंटीबॉडी विकसित हो जाए तो फिर कोरोना वायरस के संक्रमण का दायरा यूं ही सीमित हो जाएगा। हालांकि, इम्यूनिटी पासपोर्ट की अवधारणा में उच्च प्रतिरक्षा वाले लोगों की पहचानकर उन्हें सर्टिफिकेट देने की बात है। बहरहाल, ध्यान रहे कि चिली, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों की सरकारों ने इम्यूनिटी पासपोर्ट के इस्तेमाल का सुझाव दिया है।
व्यावहारिक नहीं है इम्यूनिटी पासपोर्ट:- 
सीएसआईआर के कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायॉलजी की वरिष्ठ वैज्ञानिक उपासना ने बताया कि लोगों को प्रतिरोधक क्षमता रखने वाला प्रमाणित करने के पीछे तर्क है कि ऐसे लोगों में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी बने हैं और मौजूद हैं। हालांकि, इस संबंध में भारत का रुख बहुत सावधानी वाला है। आईसीएमआर के चेन्नै स्थित नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के निदेशक मनोह मुरहेकर ने कहा, 'इस बात के अभी तक कोई प्रमाण नहीं हैं कि कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति को दोबारा संक्रमण नहीं हो सकता। दक्षिण कोरिया से लोगों को पुन: संक्रमण होने की खबरें हैं, इसलिए खून में सार्स-सीओवी-2 एंटीबॉडी होने के आधार पर इम्यूनिटी पासपोर्ट देना व्यावहारिक नहीं है।'
इम्यूनिटी पासपोर्ट के दुरुपयोग का डर:-
विशेषज्ञों ने कहा कि तकनीकी जटिलताओं के साथ ही इम्यूनिटी पासपोर्ट से नियामक और नैतिकता संबंधी चिंताएं भी हैं। प्रतिरक्षा विज्ञानी सत्यजीत रथ ने कहा, 'इम्यूनिटी पासपोर्ट का विचार प्रशासनिक क्रियान्वन में बड़ी मुश्किल पैदा कर सकता है और इसका कई तरीके से खासकर गरीबों और वंचित समूहों के लिए व्यापक दुरुपयोग भी होने की आशंकाएं हैं।' अमेरिका के जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के अलेक्जेंड्रा एल फेलान ने द लांसेट पत्रिका में लिखा है कि इम्यूनिटी पासपोर्ट से इस तरह का कृत्रिम प्रतिबंध लग जाएगा कि कौन सामाजिक, नागरिक और आर्थिक गतिविधियों में भाग ले सकता है और कौन नहीं। इससे लोग खुद को संक्रमित दिखाना चाह सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी पैदा होंगे।