वार हीरो। 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले बॉर्डर पर लड़कर और 300 चीनी सौनिकों को मारकर शहीद होने वाले भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत आज भी अमर हैं। इस फौजी ने अकेले ही चीन को धूल चटाई और अरुणाचल प्रदेश पर चीन का कब्जा होने से रोक लिया। अरुणाचल प्रदेश के नूरानांग में बने जसवंतगढ़ वॉर मेमोरियल में 24 घंटे उनकी सेवा में सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। यही नहीं, रोजाना उनके जूतों पर पॉलिश की जाती है और उनके कपड़े भी प्रेस किए जाते हैं।
बिना मत्था टेके यहां से आगे नहीं बढ़ता कोई फौजी:-
- बताया जाता है कि शहीद जसवंत सिंह के मंदिर में बिना मत्था टेके कोई फौजी अफसर आगे नहीं बढ़ता। उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता और आज भी उनको प्रमोशन मिलते हैं।
17 की उम्र में पहुंचे थे सेना में भर्ती होने:-
- दरअसल, उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के बादयूं में 19 अगस्त 1941 को जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था।
- उनके अंदर देशप्रेम इस कदर था कि वे 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने चले गए, लेकिन उन्हें कम उम्र के कारण लिया नहीं गया।
- हालांकि, वाजिब उम्र होने पर 19 अगस्त 1960 को जसवंत को सेना में राइफल मैन के पद पर शामिल कर लिया गया।
- 14 सितंबर 1961 को जसवंत की ट्रेनिंग पूरी हुई, उसी के बाद यानी 17 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया।
- इस दौरान सेना की एक बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सेफ्टी के लिए तैनात की गई, जिसमें जसवंत सिंह रावत भी शामिल थे।
- चीन की सेना हावी होती जा रही थी, इसलिए भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया।
- मगर इसमें शामिल जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से गोलीबारी कर रही चीनी मशीनगन को ध्वस्त करना चाहते थे।
- तीनों जवान चट्टानों और झाड़ियों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और महज 15 यार्ड की दूरी से हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए।
- इससे पूरी लड़ाई की दिशा ही बदल गई और चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका।
- हालांकि, इस गोलीबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए। वहीं, जसवंत 72 घंटे तक अकेले लड़ते रहे और 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया। इसके बाद को दुश्मन सेना ने उन्हें घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
- वहां रहने वाले जवानों और स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है। जसवंतगढ़ वॉर मेमोरियल में उनका बड़ा स्मारक बनाया गया है। यहां शहीद के हर सामान को संभालकर रखा गया है।
- यही नहीं, रोज सुबह और रात की पहली थाली जसवंत की प्रतिमा के सामने परोसी जाती है।
- बताया जाता है कि सुबह-सुबह जब चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाता है तो उनमें सिलवटें नजर आती हैं। वहीं, पॉलिश के बावजूद जूते बदरंग हो जाते हैं।
- जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ था। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुंच चुके हैं।
- उनके परिवार वालों को पूरी सैलरी पहुंचाई जाती है।
- घर में शादी या धार्मिक कार्यक्रमों के अवसरों पर परिवार वालों को जब जरूरत होती है, तब उनकी तरफ से छुट्टी की एप्लिकेशन दी जाती है और मंजूरी मिलते ही सेना के जवान उनके तस्वीर को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गांव ले जाते हैं।
- वहीं, छुट्टी समाप्त होते ही उस तस्वीर को ससम्मान वापस उसी स्थान पर ले जाया जाता है।