भारत (India) के इतिहास में छल-कपट, जीत-हार और दोस्ती-धोखा जैसी लगभग हर तरह की कहानियां हैं. शायद यही वजह है कि बॉलीवुड (Bollywood) के फिल्ममेकर्स इतिहास की इन कहानियों को ग्रैंड तरीके से पर्दे पर दिखाने के लिए काफी बेचैन रहते हैं. निर्देशक संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की फिल्में 'बाजीराव मस्तानी' (Bajirao Mastani) और 'पद्मावत' (Padmaavat) तो आपको याद ही होंगी. इन दोनों फिल्मों को लेकर काफी विरोध हुआ था. लेकिन इस सारे विरोध के बाद भी फिल्ममेकर्स का लगाव इन एतिहासिक कहानियों के लिए कम नहीं हुआ. इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है निर्देशक आशुतोष गोवारिकर (Ashutosh Govarikar) की आने वाली फिल्म 'पानीपत' (Panipat), जिसका ट्रेलर हाल ही में रिलीज हुआ है. ट्रेलर के साथ ही इस फिल्म का काफी चर्चा हो रही है.
इस फिल्म में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के किरदार में नजर आने वाले हैं एक्टर अर्जुन कपूर और अफगान अक्रांता अहमत शाह अब्दाली (Ahmad Shah Abdali) के रोल में नजर आएंगे संजय दत्त (Sanjay Dutt). फिल्म में कृति सेनन (Kriti Senon) पार्वती बाई के किरदार में दिखने जा रही हैं. इस फिल्म की कहानी है इतिहास के प्रसिद्ध पानीपत के तीसरे युद्ध (Third War Of Panipat) की. हरियाणा के पानीपत शहर में इतिहास के तीन बड़े युद्ध लड़े गए, जिनमें पहले युद्ध के बाद बाबर ने जीतकर भारत में मुगल शासन की शुरुआत की थी, तो वहीं पानीपत की तीसरी लड़ाई ने भारत में अंग्रेजी हुकूमत को पैर जमाने का मौका दे दिया था. ये शायद इतिहास का अकेला ही युद्ध है, जिसमें लड़ने वाले दोनों ही पक्ष कुछ हांसिल नहीं कर पाए और इस लड़ाई का पूरा फायदा तीसरे पक्ष यानी अंग्रेजों को मिला था.
युद्ध के लिए तैयार होते हालात:-
दरअसल 18वीं शताब्दी तक मराठा देश में काफी शक्तिशाली हो गए थे. मराठा पूरे देश में हिंदू साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे और उनकी इसी मंशा ने देश के मुस्लिम शासकों में डर पैदा कर दिया था. यही कारण था कि भारत पर आक्रमण करने का न्योता भी अब्दाली को हिंदुस्तान के एक मुस्लिम शासक से ही मिला था.
लेकिन अगर कुछ गलतियों को रोका जाता और मराठा एक शासक की सलाह को ठीक से सुनते तो इस युद्ध का और भारत का इतिहास आज शायद कुछ और ही होता. इस शासक का नाम था भरतपुर के जाट नरेश महाराज सूरजमल. महाराज सूरजमल, जो मराठाओं के अच्छे मित्र थे और उनकी कई मौकों पर मदद कर चुके थे, ने इस युद्ध में खुद को पीछे खींच लिया था. इसकी एक बड़ी वजह थी मराठाओं का महाराज सूरजमल की बात न सुनना और इन दो बड़ी शक्तियों के बीच मतभेद.
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी, 1707 में हुआ था. वह राजा बदनसिंह ‘महेन्द्र’ के गोद लिए हुए बेटे थे. उन्हें पिता की ओर से बैर की जागीर मिली थी. वह एक कुशल प्रशासक, दूरदर्शी और कूटनीतिज्ञ थे. उन्होंने 1733 में खेमकरण सोगरिया की फतहगढ़ी पर हमला कर विजय प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने 1743 में उसी स्थान पर भरतपुर नगर की नींव रखी और 1753 में वहां आकर रहने लगे. उनके क्षेत्र में भरतपुर के अतिरिक्त आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव और मथुरा सम्मिलित थे.
इतिहास गवाह है कि 14 जनवरी, 1761 में अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई में कुछ ही घंटों में मराठों के एक लाख में से आधे से ज्यादा मराठा सैनिक मारे गए थे. लेकिन इस त्रासदी से बचने की कई सलाह महाराज सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को दी थी, जिसे नहीं माना गया. उनकी पहली सलाह थी इस युद्ध को कुछ महीनों के लिए टालना. 'पानीपत का तीसरा युद्ध' 14 जनवरी, 1761 में हुआ था यानी सर्दियों में. ऐसे में महाराज सूरजमल ने सलाह दी थी कि अब्दाली की सेना पर अभी आक्रमण मत करो, क्योंकि अभी सर्दी है और अफगान सैनिक इसे असानी से सह लेंगे. गर्मी को ये लोग सहन नहीं कर सकते, इसलिए गर्मी में ही हमला करना ठीक होगा.
मराठा शासक इस युद्ध में कई हजार स्त्रियों और बच्चों को लेकर चले थे. इसी पर महाराज सूरजमल ने सलाह दी थी कि युद्ध में स्त्रियों और बच्चों को साथ लिए-लिए मत घूमों. इससे ध्यान इनकी सुरक्षा में बंट जाएगा. उन्होंने भरतपुर के डीग के किले में सुरक्षित रखने की सलाह दी थी. वहीं उन्होंने इस बात की भी सलाह दी थी कि शत्रु की सेना पर सीधा आक्रमण नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब्दाली की सेना बहुत ज्यादा है और भारत के बहुत मुस्लिम शासक भी इनके पक्ष में हैं. इसलिए इनसे झपट्टा मार लड़ाई करके छापे मारो. महाराज सूरजमल ने मराठाओं को लालकिले की सम्पत्ति और युद्ध के दौरान आसपास के लोगों को लूटने से भी मना किया था क्योंकि इससे मुस्लिम शासकों के सरदार नाराज हो अब्दाली से मिल जाएंगे.
भरतपुर के शासक ने राज्य के कोष से मराठा सेनाओं का वेतन तक देने की पेशकश कर दी थी. इसके साथ ही महाराज ने मुगलों को इस युद्ध में अपने साथ मिलाने का भी सुझाव दिया था. महाराज सूरजमल ने इस युद्ध को रणनीति से जीतने के कई सुझाव दिए थे, लेकिन मराठाओं के साथ हुए इस मतभेद ने भारत को एक ऐसे युद्ध में झोंक दिया कि देश को लगभग 200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत का शासन झेलना पड़ा.
भरतपुर के शासक ने राज्य के कोष से मराठा सेनाओं का वेतन तक देने की पेशकश कर दी थी. इसके साथ ही महाराज ने मुगलों को इस युद्ध में अपने साथ मिलाने का भी सुझाव दिया था. महाराज सूरजमल ने इस युद्ध को रणनीति से जीतने के कई सुझाव दिए थे, लेकिन मराठाओं के साथ हुए इस मतभेद ने भारत को एक ऐसे युद्ध में झोंक दिया कि देश को लगभग 200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत का शासन झेलना पड़ा.