नई दिल्ली। संसद पर हमले की 18वीं बरसी पर दिल्ली पुलिस के एएसआई रजत बिष्ट आज भी उस आतंकी घटना को याद कर गुस्से में आ जाते हैं। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले में कांस्टेबल रजत विष्ट को छह गोलियां लगीं, पर उन्होंने मौत के सामने घुटने नहीं टेके। जब वे अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने डॉक्टरों से पूछा था क्या वे फुटबॉल खेल पाएंगे? सुबह 11: 29 बजे सफेद एंबेसडर कार गेट-11 की तरफ से तेजी से आई। कार के पीछे लोकसभा के सुरक्षाकर्मी जगदीश रुक-रुक कहते हुए भाग रहे थे। एंबेसडर कार मोड़ने के लिए बैक करते समय उपराष्ट्रपति की कार से जा टकराई। हेड कांस्टेबल ओमप्रकाश और रजत गाड़ी से निकलकर एंबेसडर कार के पास पहुंचे। इन्होंने जब कार के पास जाकर बाहर निकलने के लिए कहा तो अंदर बैठे आतंकी ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे। अंधाधुंध फायरिंग में ओमप्रकाश को 35 गोलियां लगीं तो रजत बिष्ट ने कमान संभाली। इसी बीच आतंकी की एक गोली रजत के बाएं हाथ पर लगी जिसने उनकी तीन उंगलियों के चीथड़े उड़ा दिए। फिर एक के बाद एक पांच गोलियां कमर, जांघ, कंधा और पेट से आरपार हो गई। लहूलुहान ओमप्रकाश और रजत दोनों साथ में पड़े थे। आतंकियों ने दोनों को मरा समझकर छोड़ दिया। घायल बिजेंद्र ने साथियों की मदद से रजत और ओमप्रकाश को गाड़ी में डाला। बिजेंद्र रफ्तार से गाड़ी को गेट तक ले गए। इतने में ही बिजेंद्र वहीं गिर गए। इसके बाद घायलों को आरएमएल अस्पताल में भर्ती कराया। रजत की जांच के बाद जब डॉक्टरों ने तत्काल ऑपरेशन का फैसला लिया तो उन्होंने पूछा कि क्या वे फुटबॉल दोबारा खेल सकते हैं। डॉक्टरों के आश्वासन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी और मासूम बिटिया के बारे में भी पूछा। मूल रूप से पिथौरागढ़ के झूलाघाट निवासी रजत बिष्ट साल 1989 में दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हुए थे। उनकी इस बहादुरी पर तत्कालीन गृहमंत्री, उत्तराखंड के तत्कालीन सीएम भगत सिंह कोश्यारी, सोनिया गांधी सभी समेत अन्य ने सहायता राशि व सम्मान पत्र दिए थे।