नई दिल्ली। कोरोना वायरस का संक्रमण सीमित रखने के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन की मियाद 14 अप्रैल से बढ़ाकर 3 मई कर दी गई है। इस दौरान एक्सपर्ट्स के बीच इस बात पर चर्चा हो रही है कि लॉकडाउन कोरोना को कुछ दिनों तक तो रोक सकता है, लेकिन इसके हटते ही लोग जब एक-दूसरे से घुलने-मिलने लगेंगे तो यह वायरस फिर तेजी से फैलने लगेगा। इसलिए, उनका मानना है कि कोरोना का सबसे प्रभावी समाधान देश की बड़ी आबादी में इम्यूनिटी लेवल के बढ़ने से ही मिल सकता है। एक्सपर्ट्स इसके लिए 'हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता' की थिअरी दे रहे हैं।
पढ़ें, 600 से ज्यादा मौतें, राज्यों की पूरी लिस्ट देखें
इस सिद्धांत के मुताबिक, जब बड़ी आबादी में कोरोना का संक्रमण होगा तो उसमें वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, संक्रमित लोगों के शरीर में कोरोना से लड़ने की क्षमता बढ़ जाएगी तो उनके शरीर पर कोरोना के संक्रमण का कोई असर नहीं होगा और फिर कोरोना भी शरीर में पहले से मौजूद करोड़ों-अरबों वायरस की तरह एक आम वायरस बनकर रह जाएगा। हालांकि, इस थिअरी को यूनाइटेड किंगडम (UK) सरकार ने नकार दिया और लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दी।
हर्ड इम्यूनिटी के सिद्धांत को समझें:-
एक बड़े महामारी विशेषज्ञ जयप्रकाश मुलियिल का कहना है, 'कोई भी देश लंबे समय तक लॉकडाउन नहीं झेल सकता है और खासकर भारत जैसा देश। आपको बुजुर्गों को इन्फेक्शन से बचाकर हर्ड इम्यूनिटी के एक पॉइंट पर पहुंचना होगा और जब हर्ड इम्यूनिटी पर्याप्त संख्या में पहुंच जाएगी तो महामारी रुक जाएगी, तब बुजुर्ग भी सुरक्षित हो जाएंगे।'
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर डिजीज डायनैमिक्स, इकनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी और वॉशिंगटन स्थित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्तांओं (रिसर्चर्स) की एक टीम का मानना है कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी की थिअरी कामयाब हो सकती है क्योंकि यहां की बड़ी आबादी युवाओं की है जिनमें ज्यादातर को वायरस से संक्रमित होने के बावजूद अस्पताल नहीं ले जाना पड़ेगा और उनकी मौत नहीं होगी।
नियंत्रित तरीके से फैलने दें वायरस एक्सपर्ट्स:-
उनका कहना है कि अगर अगले सात महीने तक नियंत्रित तरीके से वायरस को फैलने दिया जाए तो नवंबर तक देश की 60% आबादी कोरोना से इम्यून हो जाएगी और तब यह बीमारी फैल नहीं सकेगी। रिसर्च टीम का मानना है कि चूंकि भारत की 93.5% आबादी 65 से कम उम्र की है, इसलिए यहां कोरोना से मौतों की दर भी इटली, स्पेन जैसे यूरोपीय देशों के मुकाबले बहुत कम रहेगी। हालांकि, अगर नियंत्रित तरीके से वायरस फैलने दिया जाए तो भारत में कितनी मौतें हो सकती हैं, इसका कोई अनुमानित आंकड़ा नहीं बताया गया है।
दोनों संस्थानों का सुझाव है कि भारत में लॉकडाउन हटाया जाए और 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों को सामान्य कामकाज करने की अनुमति दी जाए। हालांकि, तब भी सोशल डिस्टैंसिंग बरतने, मास्क पहनने और भीड़-भाड़ पर रोक जैसे एहतियाती उपाय होते रहें। उसके बाद ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच हो और सभी संदिग्ध संक्रमितों को अलग-थलग किया जाए।
पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल को-ऑर्डिनेटर टी. सुंदररमण ने कहा, 'एक तरह से आप यह कह रहे हैं कि हम (60 वर्ष से कम उम्र के) लोगों को संक्रमित होने और फिर बीमारी से खुद ही ठीक होने देंगे। हम सिर्फ बीमार लोगों का ही ध्यान रखेंगे।' उन्होंने कहा, '(हर्ड इम्यूनिटी की) यही पॉलिसी है।
मोदी सरकार ने नहीं दिए ऐसे संकेत:-
फिलहाल मोदी सरकार ने अब तक इस तरह की रणनीति अपनाने का कोई संकेत नहीं दिया है। हालांकि, सरकार अभी बड़े पैमाने पर जांच कर भी नहीं रही है। जिन लोगों को कोविड-19 से संबंधित सरकारी आंकड़ों पर यकीन नहीं है और जो मानते हैं वास्तविक आंकड़े कहीं ज्यादा हैं, उनका आरोप है कि सरकार पाबंदियां लगाकर महामारी फैला रही है।
इस सिद्धांत के कुछ जोखिम:-
मान लिया कि भारत की बड़ी जनसंख्या 60 वर्ष से कम उम्र की है, लेकिन युवा आबादी कोरोना के संक्रमण से लड़ ही लेगी, इसकी गारंटी भी नहीं दी जा सकती है। ऐसे में रिसर्चर्स का कहना है कि लॉकडाउन हटाते-हटाते देश में बड़े पैमाने पर कोरोना मरीजों के इलाज की व्यवस्था कर ली जानी चाहिए ताकि अगर अचानक मरीजों की भीड़ उमड़ी तो उससे निपटा जा सके।