ब्यावरा। रोजगार छिन जाने के बाद लाॅकडाउन में ही पैदल ही चल पड़े मजदूरों की सैकड़ों कहानियां एक-एक कर गुजर रही हैं। पैदल ही मुंबई से यूपी जा रही गर्भवती महिला की सड़क पर प्रसव पीड़ा से तड़पने और एक पटवारी की मदद से अस्पताल तक पहुंचने की कहानी ने अब सुंदर मोड़ ले लिया है। अस्पताल में बच्चे को जन्म देने वाली मां ने अपने बेटे का नाम मददगार पटवारी के नाम पर रखने का फैसला किया है। मजदूर महिला की इच्छा है कि उसका बेटा भी पढ़-लिखकर पटवारी बने। महिला की मंगलवार को अस्पताल से छुट्टी हुई। गोरापुर रवाना होने के पहले उसने मददगार पटवारी, डाॅक्टर्स व अधिकारियों को धन्यवाद दिया।
दरअसल, आजीविका की तलाश में शहर गए मजदूरों के लिए अब अपने गांव लौटना मजबूरी है। भूख के भय ने उनको किसी भी सूरत में वापस लौटने को मजबूर कर दिया है। कोई अपने बुजुर्ग मां-बाप को लेकर चल पड़ा तो कोई छोटे बच्चों को लेकर अपने गांव पहुंच रहा। यहां तक कि गर्भवती महिलाएं मजबूर होकर जिंदगी दांव पर लगाते हुए लौट रही हैं/लौटी हैं। बीते 16 मई को महाराष्ट्र से यूपी के गोरखपुर के लिए निकले मजदूरों के एक जत्था में गोरखपुर की रहने वाली सुनीता पत्नी किशन यादव भी थे। सुनीता गर्भवती थी लेकिन पैदल ही घर के लिए निकली थी। इंदौर-भोपाल बाइपास पर पटवारी संघ द्वारा इन मजदूरों को दोपहर में खाना खिलाया जा रहा था। खाना खिलाए जाने के दौरान ही सुनीता की हालत बिगड़ने लगी। वह प्रसव पीड़ा से कराह उठी। सुनीता की बिगड़ती हालत देख पटवारी जीतू झंझोरिया ने उसे अपनी बाइक पर बिठाया और अस्पताल पहुंचाया। यहां डाॅक्टर्स की देखरेख में महिला ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था।
अस्पताल में भर्ती गोरखपुर के शिवजीनगर के मानखुर्द की रहने वाली सुनीता पत्नी किशन को मंगलवार को डिस्चार्ज किया गया। दंपत्ति अपने नवजात के साथ प्रशासनिक मदद से गोरखपुर के लिए रवाना हुए।
घर जाते-जाते सुनीता ने सभी का आभार जताया और कहा कि बेटे का नाम मदद करने वाले पटवारी जीतू झंझोरिया के नाम पर रखूंगी। यही नहीं उसने अपने बच्चे को पढ़ा-लिखाकर पटवारी बनाने की इच्छा भी जाहिर की।
मंगलवार को एसडीम सन्दीप अस्थाना और तहसीलदार ए. आर. चिरामन की देखरेख में इनको रवाना किया गया। इस दौरान पटवारी संघ अध्यक्ष राधेश्याम अहिरवार, मनीष तिवारी, संदीप सक्सेना, कुलदीप यादव, ओम बैरागी आदि मौजूद रहे।