नई दिल्ली। जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) से तो हम सभी वाकिफ हैं। गूगल का यह एप्लिकेशन दुनियाभर में करोड़ों लोगों को रास्ता ढूंढने में मदद कर रहा है। यह एप हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है। कहीं भी आने-जाने या किसी की लोकेशन जानने के लिए हम गूगल की इस टेक्नोलॉजी पर निर्भर हैं।
लेकिन जल्द ही आपको जीपीएस का एक नया विकल्प मिलने वाला है। ये भारत का जीपीएस होगा, जिसे अपने देश में विकसित किया जा रहा है। कैसा होगा ये जीपीएस? कब तक होगा लॉन्च? इस बारे में आगे पढ़ें।इस प्रोजेक्ट के लिए बड़े स्तर पर ड्रोन आधारित डिजिटल मैपिंग चल रही है। भारत के शहरों की हर गली-नुक्कड़ की सही और वास्तविक इमेजिंग पर तेजी से काम चल रहा है। कुछ महीने पहले ही कर्नाटक, हरियाणा, महाराष्ट्र और गंगा बेसिन में यह काम शुरू हो चुका है।इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से सर्वे ऑफ इंडिया काम कर रहा है। इसमें आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया जैसे कई सरकारी संस्थानों से भी मदद ली जा रही है।Google Maps से कैसे बेहतर...?
इस बारे में DST सचिव आशुतोष शर्मा का कहना है कि 'इस तरह की डिजिटल मैपिंग पहले कभी नहीं हुई है। देश का यह अपना मैप गूगल मैप्स (Google Maps) से भी बेहतर रिजॉल्यूशन का होगा। इसमें आपके शहर के हर गली, सीमाएं साफ और सही दिखाई देंगी।
सर्वे ऑफ इंडिया ने इसके लिए पूरे देश में हर 20 किमी की दूरी पर रेफरेंस प्वाइंट बनाया है, जिसे कॉन्टीन्यूअसली ऑपरेटेड रेफरेंस स्टेशन (CORS) नेटवर्क कहते हैं। इससे 3डी पोजिशनिंग मिलेगी और एक्यूरेसी 10 गुना तक ज्यादा होगी। सचिव आशुतोष शर्मा ने बताया कि राज्यों को इस प्रोजेक्ट के लिए उनके उत्साह के आधार पर चुना गया है। जैसे हरियाणा में मैपिंग का खर्च वह राज्य खुद उठा रहा है। वहीं गंगा बेसिन के लिए नमामि गंगे एजेंसी खर्च वहन कर रही है।'
उन्होंने बताया कि अब से 5 साल पहले इसका खर्च करीब 10 हजार करोड़ आ रहा था। वही काम आज एडवांस्ड तकनीक के साथ करीब एक हजार करोड़ रुपये की लागत में हो रहा है।बंगलूरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में डीएसटी सचिव आशुतोष शर्मा ने बताया कि भारत में आम लोगों के लिए यह स्वदेशी जीपीएस 2024 तक उपलब्ध हो जाएगा।