भोपाल। मध्यप्रदेश आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने डेढ़ दशक पहले स्वास्थ्य विभाग में दवा एवं अन्य उपकरणों की सप्लाई के नाम पर हुए करोड़ों रुपए के घोटाले का मामला जांच में ले लिया है। मामला वर्ष 2003 से 2009-10 का है। आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन संचालक से सांठगांठ कर दवा सप्लायर अशोक नंदा ने ज्यादातर आर्डर हासिल कर करोड़ों रुपए के घोटाले को अंजाम दिया। ज्ञात हो कि नंदा मालवा ड्रग हाउस मंडीदीप के नाम से दवाइयों की आपूर्ति करते थे, बाद में नंदा यह काम हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ फार्माकॉन लिमिटेड के नाम से करने लगे।
ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स के अलावा स्वास्थ्य विभाग के कई तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका की छानबीन शुरू कर दी है। मामले में कई रसूखदारों की संलग्नता की जांच हो रही है। प्रारंभिक जांच के बाद जल्दी ही प्रकरण दर्ज किए जाने की तैयारी है। ईओडब्ल्यू ने कई बैंकों से जानकारी भी मांगी है। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) से कंपनियों की जानकारी और रिटर्न्स आदि का ब्योरा भी तलब किया है। वाणिज्यिक कर विभाग के सहायक आयुक्त से भी जानकारी मांगी गई है। इनके अलावा छत्तीसगढ़ शासन को भी पत्र भेजा गया है।
बताया जाता है कि नंदा ने तीन डमी कंपनियों के जरिए 5.63 करोड़ रुपए नेताम इंडस्ट्रीज, 17 करोड़ रुपए नेप्च्यून इंडस्ट्रीज एवं छत्तीसगढ़ फार्मास्यूटिकल्स के नाम पर भी करोड़ों का कारोबार किया। इन कंपनियों के नाम पर मप्र-छग में व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य विभाग में दवा-उपकरणों के सप्लाई आर्डर लिए गए। कई कंपनियों के फर्जी होने की पुष्टि हुई है, इन कंपनियों के जरिए नंबर दो का पैसा घुमाकर लाया गया। ईओडब्ल्यू ने स्वास्थ्य विभाग से भी जानकारी मांगी है कि इन कंपनियों को कितने आर्डर दिए गए और हकीकत में कितनी दवाएं आईं।
ब्यूरो के सूत्रों का कहना है कि नंदा और तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक के पुत्र गौरव शर्मा ने मिलकर विनायक प्रापर्टीज के नाम से हॉस्टल फेसिलिटी एवं इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल का संचालन शुरू किया। उक्त दोनों की फर्मों विग्नेस वेयर हाउस एंड डिस्ट्रीब्यूटर व गजानन डेवलपर्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड के बीच वित्तीय लेनदेन हुए। इस संबंध में ईओडब्ल्यू के महानिदेशक सुशोभन बनर्जी ने शिकायत पर जांच शुरू किए जाने की पुष्टि की है।