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Thursday, October 10, 2019

WhatsApp, Facebook, Google यूजर्स को लगेगा तगड़ा झटका, जाने कैसे?

नई दिल्ली। भारतीय एक्सप्रेस के समाचार के मुताबिक, डिओटी अगर इन सुझावों को मान लेता है तो WhatsApp, Facebook, Google जैसी इंटरनेट के सहारे विविध सेवाएं देने वाली कंपनियां (OTT) कानून के दायरे में आ जाएंगी। नियमों में मुख्य तौर पर सुरक्षा व वैध रूप से दखल देने पर जोर दिया जा रहा है।
क्या है ओटीटी:-
'ओवर द टॉप' सर्विस प्रोवाइडर्स या ओटीटी कंपनियां वो होती हैं, जो कि दूरसंचार नेटवर्क कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले इंटरनेट के सहारे अपनी सेवाएं देती हैं। इनमें स्काइप, वाइबर, व्हाट्सएप, हाइक, स्नैपचैट जैसी मैसेजिंग व इंटरनेट फोन सेवाएं देने वाली विभिन्न कंपनियां शामिल हैं। इसके अतिरिक्त औनलाइन एंटरटेनमेंट प्रदान करने वाली नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, हॉटस्टार, जी5 व आल्ट बालाजी इत्यादि भी ओटीटी का भाग हैं।
अभी लग सकता है समय:-
ओटीटी के लिए नियमों को अंतिम रूप देने में टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को एक महीने का अलावा समय लग सकता है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया इस विषय में ओटीटी पर अंतर्राष्ट्रीय नियम-विनियम को देख रहा है। उसका विशेष ध्यान सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के एक वरिष्ठ ऑफिसर ने बताया कि ओटीटी पर नियम बनाने को लेकर नियामक ‘व्यावहारिक धारणा’ अपनाने के पक्ष में है।
ओटीटी नियमों में सुरक्षा बड़ा मुद्दा:-
हालांकि ओटीटी के उपयोग से दूरसंचार सेवाप्रदाताओं को भी फायदा हुआ है, क्योंकि लोगों का इंटरनेट उपभोग बढ़ा है। ऐसे में दूरसंचार कंपनियों का इनके मुफ्त सेवाएं देने का तर्क बेहद मान्य नहीं रह गया है। ऑफिसर ने बोला कि ऐसे में ओटीटी नियमों के बारे में आर्थिक पक्ष उतना जरूरी नहीं रह गया है। उन्होंने कहा, 'अब ओटीटी नियमों में सुरक्षा बड़ा मामला बन गया है। बड़ा सवाल अब ये है कि सुरक्षा चिंताओं का निवारण कैसे किया जाना है, अन्य देश सुरक्षा संबंधी चिंताओं से कैसे निपट रहे हैं, नियमों से जुड़ी समस्या अब सीमित हो चुकी है व अब यह उतनी जटिल व बड़ी नहीं है जितनी पहले थी। '
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने पिछले वर्ष ओटीटी कंपनियों को नियामकीय ढांचे के दायरे में लाने के लिए एक परिचर्चा लेटर पेश किया था। बाद में इनमें से कई मंच सरकार की निगरानी के दायरे में आ गए व सरकार का सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों में भी परिवर्तन का प्रस्ताव है ताकि इन कंपनियों के लिए बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।