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Wednesday, December 11, 2019

एवरेेस्ट चढ़ने वालों को रास्ता दिखाती हैं 98 सालों से यहां पड़ी 300 से ज्यादा लाशें

एवरेेस्ट की चढ़ाई मेें पहली सफलता साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने हासिल की। ऐसा नहीं है कि इसके लिए पहले प्रयास नहीं किए गए। साल 1921 में इसके लिए पहला असफल प्रयास किया गया था। एवरेस्ट पर चढ़ाई दुनिया के सबसे कठिन और संघर्षपूर्ण कामों में से एक है। एवरेस्ट पर चढ़ने के पहले प्रयास से लेकर अब तक 308 से ज्यादा पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है।एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर (29,029 फीट) है। 
एवरेस्ट चढ़ने के दौरान सबसे ज्यादा मौतें 8000 मीटर (26,000 फीट) और उसके ऊपर से शुरू होती हैं। इसे डेथ जोन कहा जाता है।

एवरेस्ट पर जान गंवा देने वाले पर्वतारोहियों के शव को वापस लाना बेहद मुश्किल होता है और काफी ज्यादा खर्चीला भी। इसलिए उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है। 
पर्वतारोहियों के शव से ही एवरेस्ट पर चढ़ने के रास्ते का पता चलता है। ये शव एवरेस्ट पर फतह करने के लिए भविष्य में आने वाले पर्वतारोहियों के लिए मील के पत्थर का काम करते हैं। इन शवों को देखकर नए पर्वतारोहियों को सही रास्ते का पता चल पाता है।एवरेस्ट पर करीब 98 सालों से ये लाशें पड़ी हैं। लेकिन ये सड़ती नहीं हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है यहां का तापमान। एवरेस्ट का न्यूनतम तापमान -16 डिग्री से लेकर - 40 डिग्री तक रहता है। इस तापमान में मरे हुए पर्वतारोहियों के शव खराब नहीं होते। वे सालों साल उसी अवस्था में रहते हैं।