राजस्थान। देश की रक्षा में शहीद होने वाले जवानों की कमी नहीं है, जहां दुश्मन आंख उठाता है तो यह जवान अपनी जान पर खेल कर ना सिर्फ अपनी भारत माता की आन बचाते हैं वहीं जरूरत पड़ने पर खुद की जान न्यौछावर भी कर देते हैं। देश के लिए शहीद होने से पहले एक बार भी वो ये नहीं सोचते कि घर में बैठे उनके पत्नी और बच्चों के अलावा बूढ़े-माता पिता को कौन देखेगे। वो इस उम्मीद में शहीद हो जाते हैं कि जिन लोगों के लिए वो शहीद हो रहे हैं वो उनके परिवार का ख्याल रखेंगे। शहीदों की इन शहादतों की कईं कहानियां हैं और इनमें से कुछ तो ऐसी हैं जिन्हें सुनकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे।
ऐसी ही एक कहानी है राजस्थान के अलवर जिले के शहीद लाल हंसराज गुर्जर की। हंसराज गुर्जर बीएसएफ के जवान थे और 2018 में सीमा पर देश की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। हंसराज जिस दिन शहीद हुए वो उनकी ड्यूटी का आखिरी दिन था और उसके अगले ही दिन वो छुट्टियों में घर आने वाले थे। उनके घर आने के कारण उनका वो 15 दिन का बेटा था जिसे उन्होंने अब तक नहीं देखा था और अब वो उसके जन्म के बाद होने वाले कुआं पूजन कार्यक्रम में आने वाले थे।
13 जून 2018 का वो दिन था जब पाक रमजान महीने में पाकिस्तान ने सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन शुरू कर दिया। इस दौरान सीमा पर राजस्थान के अलवर जिले के जवान हंसराज गुर्जर तैनात थे। हंसराज अलवर जिले की बनासूर तहसील में पड़ने वाले हरसौरा इलाके के मुगलपुरा गांव के रहने वाले थे। महज 28 साल के हंसराज का जन्म 20 अगस्त 1990 को हुआ था और वो कश्मीर के रामगढ़ सेक्टर में 62वीं बटालियन की डेल्टा कंपनी में तैनात थे।
15 दिन पहले जन्मा था बेटा उसे देखने आना था:-
हंसराज 15 दिन पहले ही पिता बने थे उनके घर बेटे ने जन्म लिया था। उसके कुआं पूजन का मुहूर्त निकला था और सैनिक पिता अपने बच्चे को पहली बार उसके कुआं पूजन में देखने की हसरत लिए अपने घर आने की तैयारी कर रहा था। तभी 13 जून को दुश्मन की एक गोली सीमा पार से आई और हंसराज गुर्जर के सीने को छलनी कर गई। बेटे के कुआं पूजान और उसके चेहरे को पहली बार देखने की चाह लिए पिता शहीद हो गया। यह खबर जैसे ही उनके गांव पहुंची तो जिस घर में सैनिक बेटे के आने की तैयारी हो रही थी वहीं उसके अंतिम सस्कार का सामान जुटने लगा। जिस घर में नन्हें मेहमान के आने की खुशी मनाई जाने वाली थी उसी घर की दहलीज लांघने से पहले उस नन्हें मेहमान के पिता शहीद हो गए।
दुश्मन की एक गोली छलनी कर गई सारे अरमान:-
दुश्मन की उस गोली ने जहां एक तरफ एक पिता की हसरतों का कत्ल कर दिया वहीं दूसरी तरफ एक मासूम नवजात को पिता का मुंह देखने से पहले ही अनाथ कर दिया। 14 जून को जब हंसराज की पार्थिव देह गांव पहुंची तो हर सख्स वीर जवान के अमर होने के नारे लगा रहा था। घर में जहां बेटे को खोने का गम था तो उसकी शहादत का गर्व भी। बूढ़े पिता के हाथ जवान बेटे की देह पर लिपटा तिरंगा लिए हटे तो वो दुखद मंजर भी सामने आया जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।
जिस 15 दिन के बेटे के कुआं पूजन के लिए हंसराज घर आने वाले थे उसी 15 दिन के बेटे ने अपने शहीद पिता की चिता को मुखाग्नि दी। जिस मासूम ने अब तक ठीक से आंखें भी नहीं खोली थी उसी ने अपने पिता की चिता को जब आग दी तो वहां मौजूद हर शख्स अपने आंसू नहीं रोक सका। ये विधि का विधान ही है कि दुनिया में आने के बाद भी ना पिता अपने बेटे को जिंदा रहते देख सका और ना बेटा अपने पिता को जिंदा देख सका।
