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Friday, January 24, 2020

जानें शराब पीने के बाद आपके शरीर और दिमाग में क्या होने लगता है, कैसे होता है रासायनिक बदलाव

पिछले साल दिल्ली और देश में शराब पीने को लेकर एक सर्वे हुआ. भारतीय सांख्यिकी संस्थान के इस सर्वे से ये पता लगा कि दिल्ली के लोग हर महीने छह करोड़ रुपए की शराब गटक जाते हैं. इसकी मात्रा करीब पांच लाख लीटर होती है. वहीं अगर देश की बात करें तो ये मात्रा 4.5 करोड़ लीटर की होती है यानि करीब 410 करोड़ की शराब. फिर इससे हमें ढेर सारी बीमारियां भी होती हैं. जैसे ही शराब शरीर के अंदर जाती है, पूरे शरीर के अंदर रासायनिक बदलाव होते हैं. दिमाग और अंगों पर असर पड़ता है. ये किस तरह होता है और अक्सर ये कितनी गंभीर स्थिति तक पहुंच जाता है.
एक बार घूंट निगलने के बाद, शराब को तेजी से रक्त में घुल जाती है और शरीर के सभी हिस्सों में पहुंतची है. अगर प्रेगनेंट महिला शराब पीती है तो वह शिशु तक भी पहुंचती है.
दरअसल गले में उतरते ही यह शराब पहुंचती है आपके पेट में जहां 10% एल्कोहल सोख ली जाती है. बाकी की शराब छोटी आंत में जाती हैं जहां खून की नलियों में इसे सोख लिया जाता है. हमारा लीवर 15 मिलीग्राम/प्रति घंटा शराब ही चयापचय (मेटाबॉलाइज़) कर पाता है. यानि इतनी मात्रा की मदीरा को ही ऊर्जा में बदला जा सकता है. इसके ऊपर अगर आपने पी तो शराब शरीर में जमने लगेगी और आपका शरीर नशे के संकेत देने लगेगा.
लीवर ठीक है तो शरीर ठीक है. यकृत या लीवर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त का निर्माण करती है. पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र तथा पित्तवाहिनी द्वारा ग्रहणी , तथा पित्ताशय में चला जाता है. पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह मुख्य स्थान है. लीवर में गड़बड़ी है तो जानलेवा बीमारियों को दावत दे सकती है. लीवर को स्वस्थ रखने में शहद पानी भी अहम भूमिका निभाता है.
शराब आपके लीवर में दो एनज़ायम्स की बदौलत मेटाबॉलाइज़ होती है - ADH और ALDH. सबसे पहले शराब को मेटाबॉलाइज़ करने का काम ADH करता है जो इसे एसिटैलडीहाइड में बदलता है. एसिटैलडीहाइड एक जहरीला मिश्रण होता है. हमारे वो सिरदर्द से भरे हैंगओवर की वजह इसे ही माना जाता है. खैर, तो एसिटैलडीहाइड को फिर ALDH, एसिटिक एसिड यानि विनेगर में मेटबॉलाइज़ करता है. दो ड्रिंक के बाद नशे के लक्षण थोड़े नजर आने लगते हैं. इसी वजह से आप कुछ ऐसा करने लगते हैं जो आप होश में शायद ही करें जैसे अपने बॉस से जरूरत से ज्यादा फ्रेंडली होने की कोशिश.
लेकिन शराब हमसे ये सब करवा कैसे लेती है?
हमारे दिमाग में होते हैं गाबा न्यूरोन्स, जिन्हें हम स्टॉप न्यूरोन्स भी कह सकते हैं और ग्लूटोमैटर्जिक या गो न्यूरोन्स जो हमसे काम करवाती है. शराब इन दोनों न्यूरोन्स पर असर डालती है और कुल मिलाकर हमारे दिमाग के काफी ज्यादा हिस्से में काम ठप्प पड़ जाता है. इसमें से एक हिस्सा है प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स यानि दिमाग के आगे का हिस्सा. यह काफी सक्रिय होता है लेकिन शराब इसे भी काम का नहीं छोड़ती.
शराब तो वैसे भी सेहत के लिए हानिकारक है लेकिन खाली पेट तो यह और भी नुकसान पहुंचाती है. इसके सेवन से पेट में जलन होने लगती है, जिसकी वजह से खाना ठीक से पचता नहीं है.
लेकिन शराब पीने के बाद अच्छा क्यों लगता है?
क्योंकि शराब उन न्यूरोन्स को सक्रिय करता है जो हमें अच्छा महसूस करवाते हैं. इसे डोपामीन फील गुड न्यूरोट्रांसमीटर कहते हैं जो शराब के असर का हमें बार बार एहसास दिलाता है और हम एक और ड्रिंक के लिए भागते हैं. और तीन चार ड्रिंक्स के बाद यानि शरीर में 50 मिलीग्राम शराब के जमा होने के बाद तो फिर जो होता है, वही होता है. नशे के और दूसरे असर भी दिखाई पड़ने लगते हैं जैसे पैर लड़खड़ाना.
दस ड्रिंक्स के बाद तो हालत बदतर होते चले जाते हैं. उल्टी, जी घबराना, कुछ याद नहीं आना, ठीक से बोल नहीं पाना, हायपरथर्मिया जब तापमान 104 डिग्री से ऊपर चला जाता है. हायपोवेंटीलेशन जब हम बहुत ही धीमी गति पर सांस ले पाते हैं जिसकी वजह से खून में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है. इन सब हालातों से बचने के लिए जरूरी है कि शराब पीते वक्त अपने दिमाग का साथ न छोड़ें.
शरीर  में कब तक रहती है शराब:-
अगर आपने शराब यानि अल्कोहल का इस्तेमाल किया है, तो इसका पता मूत्र की जांच में चल जाता है और इसकी मौजूदगी मूत्र में 3 से 5 दिन तक रहती है.  वहीं, खून में ये 10 से 12 घंटे रह जाती है जबकि बालों की अगर जांच हो, तो 90 दिनों तक शराब का असर रहता है.