Breaking

Friday, January 31, 2020

ग्लेशियर में 15 हजार साल से जिंदा है ऐसे वायरस, जो मचा सकता है दुनिया में तबाही

एजुकेशन डेस्क। चीन में कोरोनावायरस के कारण दुनियाभर में हाहाकार मची हुई है। इसी बीच वैज्ञानिकों ने एक नया शोध जारी किया है, जो दुनिया के बड़े खतरे की और इशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने तिब्बत में 15 हजार साल पुराने वायरस के समूह का पता लगाया है। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में वैज्ञानिकों को ग्लेशियर से एक पुराना वायरस मिला है। यह वायरस हजारों साल पुरानी बीमारियों को वापस ला सकते हैं।
साल 2015 में अमेरिका के वैज्ञानिकों की एक टीम तिब्बत पहुंची थी। टीम यह पता लगाना चाहती थी कि वहां ग्लेशियर के अंदर क्या है। उनके अध्ययन में चीन के उत्तर-पश्चिम तिब्बती पठार पर विशाल ग्लेशियर में 15 हजार साल से फंसे ऐसे वायरस को खोजा गया है, जिनको पहले कभी नहीं देखा गया। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कैसे वैज्ञानिकों ने 28 ऐसे वायरस समूहों की खोज की है, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया। 
कैसे जिंदा हैं, हजारों साल पुराने वायरस:- 
वैज्ञानिकों का कहना है कि बर्फ में दबे होने की वजह से यह वायरस अलग-अलग तरह की जलवायु में भी जीवित रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के पिघलते ग्लेशियरों के कारण इस तरह के वायरस दुनिया में फैलने का खतरा पैदा हो गया है। बर्फ में दबे होने की वजह से यह वायरस हजारों साल से जिंदा हैं, लेकिन बाहर नहीं आ पाए। 
वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे वायरस का इंसानों के संपर्क में आना खतरनाक साबित हो सकता है। ग्लेशियर के दो नमूनों का अध्ययन किया गया। एक ग्लेशियर का टुकड़ा साल 1992 में लिया गया था और दूसरा 2015 में। दोनों नमूनों को ठंडे कमरे में रखा गया था। शोध में बाहरी परत को हटाने के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल किया गया, जबकि दूसरे को साफ पानी से धोया गया। दोनों ही नमूनों में 15 हजार साल पुराने वायरस के पाए गए।
क्या इन वायरसों से निपटन के लिए तैयार है दुनिया:-
दुनिया के कई शोधकर्ताओं ने पहले भी जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता जता चुके हैं, इनके मुताबिक ग्लेशियरों में कई ऐसे वायरस दबे हो सकते हैं जो बीमारियां पैदा कर सकते हैं। ये ऐसे वायरस हैं जिनसे निपटने के लिए आधुनिक दुनिया तैयार नहीं है। 
अगर यह वायरस बाहरी दुनिया में संपर्क में आते हैं तो वे फिर से सक्रिय हो सकते हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लेशियर के कोर तक जाने के लिए तिब्बत के ग्लेशियर पठारों को 50 मीटर (164 फीट) गहराई तक ड्रिल किया। नमूनों में रोगाणुओं की पहचान के लिए माइक्रोबायोलॉजी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। प्रयोग में 33 वायरस समूहों का पता चला, जिनमें 28 वायरस पुराने किस्म के वायरस थे। 
कोल्ड स्प्रिंग लैब के जर्नल 'बायोआर्काइव' में शोधकर्ताओं ने लिखा कि ग्लेशियर की बर्फ के अध्ययन के लिए अल्ट्रा क्लीन माइक्रोबियल और वायरल सैंपलिंग प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया। वायरस की पहचान करने के लिए यह सबसे साफ प्रक्रिया है।
एक चौथाई बर्फ खो चुका है तिब्बत का पठार:-
जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न मंचों से लगातार आवाज उठती रही है, ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने में अब तक कोई कामयाब नहीं मिली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका में ग्लेशियरों का पिघलना बहुत तेज है। साल 1980 की तुलना में यह 2019 में छह गुना तेज हो चुका है। जिसका प्रभाव कई समस्याओं को जन्म दे रहा है। जलवायु परिवर्तन को तिब्बती पठार को प्रभावित करने वाला माना जाता है और यह 1970 के बाद से अपनी एक चौथाई बर्फ खो चुका है। यदि इसे नहीं रोका गया तो शेष दो तिहाई ग्लेशियर सदी के अंत तक खो सकते हैं।
बर्फ से निकलकर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं वायरस:- 
शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से अब इंसानों के लिए खतरनाक वायरस का खतरा पैदा हो गया है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में समुद्री बर्फ सितंबर में पूरी तरह से गायब हो सकती है। अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई, तो पर्यावरण की स्थिति और खराब हो जाएगी। ग्लेशियरों में दबे वायरस बर्फ से निकलकर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं।