जरा हटके डेस्क। उत्तर कोरिया को दुनिया का सबसे अलग-थलग देश कहते हैं। बाकी दुनिया से इसके रिश्ते बहुत सीमित हैं। लोगों की आवाजाही पर तमाम तरह की पाबंदियां हैं। दुनिया के बहुत से देशों से उत्तर कोरिया का ताल्लुक ही नहीं है। पर क्या आप को ये पता है कि ऐसा ही एक देश यूरोप में भी था? था, इसलिए क्योंकि अब उस देश ने अपने दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए हैं। यूरोप का उत्तर कोरिया कहा जाने वाला ये देश है अल्बानिया। वही अल्बानिया, जहां मदर टेरेसा की पैदाइश हुई। यूनान का ये पड़ोसी देश कई दशक तक कम्युनिस्ट तानाशाही से प्रशासित होता रहा था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही कम्युनिस्ट नेता एनवर होचा ने यहां अपनी तानाशाही हुकूमत कायम कर ली थी। स्टालिनवादी ये नेता अजीब किस्म की सनक और खब्त का शिकार था। एनवर का इरादा अपने देश को तरक्की की नई पायदान पर बैठाना था। मगर इसके लिए वो विशुद्ध कम्युनिस्ट नीतियों पर चलना चाहते थे।कम्युनिस्ट सिद्धांतों से एक पग भी पीछे न हटने की जिद के चलते एनवर होचा ने एक के बाद एक साम्यवादी देशों से भी रिश्ते तोड़ लिए।
पहले उन्होंने पड़ोसी साम्यवादी देश युगोस्लाविया से 1948 में ताल्लुक खत्म किए। फिर, 1961 में सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट सिद्धांतों से समझौता करने का आरोप लगाकर रिश्ते तोड़ लिए। 1979 में जब चीन ने उदारवादी आर्थिक नीतियां लागू कीं, तो अल्बानिया ने चीन से भी नाता तोड़ लिया। एनवर ने आरोप लगाया कि ये सारे वामपंथी देश अपनी समाजवादी विचारधारा से भटक गए हैं। तमाम देशों से दूरी बना लेने की वजह से अल्बानिया पूरी तरह से बाकी दुनिया से कट गया था। इस दौरान एनवर को लगता था कि पूरी कायनात उसकी हुकूमत के खिलाफ साजिश कर रही है और अल्बानिया पर परमाणु बम से हमला होने वाला है। कभी दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी से मुकाबला करने वाले एनवर होचा का मानना था कि अल्बानिया को तबाह करने के लिए सोवियत संघ और अमेरिका ने हाथ मिला लिया है। एनवर की सोच ठीक वैसी ही थी, जैसी आज किम जोंग उन की है। किम को भी लगता है कि तमाम देश बस उत्तर कोरिया के खिलाफ साजिश रच रहे हैं।सत्तर और अस्सी के दशक में एनवर ने अल्बानिया की राजधानी तिराना में एक विशाल बंकर बनाने का आदेश दिया।
उनका मानना था कि जब उनके देश पर एटमी हमला होगा, तो वो अपने जनरलों और सलाहकारों के साथ उस विशाल बंकर में छुप कर हमलावर देशों से मुकाबला करेंगे। इस बंकर का नाम दस्तावेजों में 'फैसिलिटी 0774' रखा गया। 1972 से 1978 के बीच जमीन के नीचे इस बंकर को तामीर किया गया। ये मिशन इतना खुफिया था कि आज भी अल्बानिया के बहुत से लोगों को इसके अस्तित्व के बारे में पता नहीं है। अस्सी के दशक में एनवर होचा का राज खत्म हो गया। अब इस बंकर को सैलानियों के लिए खोला गया है। पास से गुजरने वाली सड़क से भी इस विशाल बंकर के होने का एहसास नहीं होता है। पहाड़ियों को काटकर इस बंकर तक पहुंचने की सुरंग बनाई गई है। यहां जाने का सिर्फ यही रास्ता है। इस सुरंग की लंबाई फुटबॉल के दो मैदानों के बराबर है। अंदर जाने पर आप को जहां-तहां पानी जमा दिखता है। करीब दो सौ मीटर पैदल चलने के बाद आप इस बंकर की पार्किंग में पहुंचते हैं। यहीं से आपको इस बंकर की मेन इमारत दिखती है, जो किसी बड़े सरकारी संस्थान जैसी लगती है। जमीन के भीतर ये इमारत करीब पांच मंजिल की गहराई में बनाई गई है। आज इसे 'बंक आर्ट-1' नाम दिया गया है। परमाणु हमले की सूरत में एनवर और उसके सलाहकार इसी बंकर में छुपने का इरादा रखते थे। इस बंकर में खिड़कियां नहीं हैं। अंदर घुसते ही अजीब सी कैफियत होती है। अगर पश्चिमी देशों या साम्यवादी ताकतों ने अल्बानिया पर हमला किया होता, तो इस बंकर में उन्हें जिंदगी गुलजार मिलती। एनवर के दौर के रक्षा विभाग के सारे अधिकारियों के लिए यहां रहने का इंतजाम था। बंकर में करीब 300 लोगों के रहने की व्यवस्था थी। इस बंकर में गाइड का काम करने वाली आर्तेमिसा मूको कहती हैं कि यहां रहने वाले लोगों को साल भर तक न खाने-पीने की कमी होती, न पानी की। इस बंकर को बेहद खुफिया तरीके से बनाया गया था। एनवर होचा की उस दिन की तस्वीर यहां की दीवारों में टंगी हैं। 1985 में अपनी मौत से पहले एनवर ने महज कुछ रातें ही यहां गुजारी थीं। इस बंकर में एनवर के लिए अलग ही इंतजाम था। शानदार बेड था। उनके सचिव का ऑफिस था। डीजल से चलने वाले शॉवर वाला एक हम्माम भी यहां था। उनका निजी कमरा गहरे रंग की लकड़ी से सजाया गया था। इसके अलावा बंकर में प्रधानमंत्री, आर्मी चीफ, रक्षा मंत्री जैसे बड़े ओहदे वालों के लिए रहने का भी इंतजाम था। यहां ज्यादातर कमरे लकड़ी के बने हुए हैं। 1991 यहां साम्यवादी शासन खत्म हो गया और लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हो गई। अगले छह सालों तक अल्बानिया ने बहुत उठा-पटक देखी।
1997 में चिट फंड घोटाले में लोगों के हजारों करोड़ डूब जाने के बाद अल्बानिया में सरकार के खिलाफ बगावत हो गई। इस दौरान हिंसा में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए, कई सैनिक ठिकानों को भी लूट लिया गया। फैसिलिटी 0774 भी इनमें से एक थी। इस बंकर को आखिरी बार 1999 में सेना ने एक अभ्यास के दौरान इस्तेमाल किया था। इसके बाद से ये बंकर देख-रेख के अभाव में यूं ही पड़ा रहा। 2014 में इटली के कलाकार कार्लो बोलिनो ने इस जगह को टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर विकसित करने की सोची। कार्लो चाहते थे कि दशकों तक अलग-थलग रहे अल्बानिया के इतिहास का ये पन्ना भी दुनिया के सामने आए। तभी से यहां 'बंक आर्ट-1' खोलने के प्लान पर काम होने लगा। उस साल अल्बानिया के संस्कृति मंत्रालय ने देश की आजादी के 70 सालों का जश्न मनाने के लिए लोगों से आइडिया मांगे थे। उस वक्त तक अल्बानिया में सैलानियों के लिए कुछ भी नहीं था। जब पहली बार कार्लो बोलिनो ने ये बंकर देखा, तो ये रहस्य और रोमांच से भरा अड्डा लगा था। ऐसा लगता था कि अल्बानिया के इतिहास का एक दौर यहां ठहरा हुआ है। 2014 में इस बंकर को पहली बार जनता के लिए एक महीने के लिए खोला गया। एक महीने में 70 हजार अल्बानियाई नागरिक इसे देखने आए। आर्तेमिसा म्यूको कहती हैं कि अल्बानिया के लोगों को इस बंकर की विशालता का अंदाजा ही नहीं था। वो इसे देखकर बहुत प्रभावित हुए। उनके लिए ये बंकर गुरूर करने वाली बात थी। कार्लो बोलिनो ने इस बंकर के कई कमरों को आर्ट गैलरी की तरह विकसित करना शुरू किया है। इन कमरों में साम्यवादी शासन के दौर की तस्वीरें और कलाकृतियां लगाई जा रही हैं। उस दौर के फर्नीचर और दूसरे साजो-सामान यहां नुमाइश के लिए रखे गए हैं। अब तक 100 से ज्यादा कमरों की मरम्मत की जा चुकी है। बाकी के कमरों में अभी भी लोगों के जाने की मनाही है। बंकर का एक हिस्सा अभी भी रक्षा मंत्रालय के पास है। करीब ही सेना का एक अड्डा भी है। इसलिए बाकी के हिस्से को जनता के लिए नहीं खोलने का फैसला किया गया है।
कार्लो बोलिनो कहते हैं कि तहखाने में होने की वजह से इसकी मरम्मत और निखार का काम बहुत चुनौती भरा काम था। नमी की वजह से दीवारों और फर्नीचर को नुकसान होता है। कार्लो कहते हैं कि वो अल्बानिया के लोगों को साम्यवादी तानाशाही के दिनों को याद रखना सिखाना चाहते थे। इसलिए उस दौर की तमाम मशीनें, जैसे एयर प्यूरीफायर और कचरा फेंकने के डिब्बे जिन पर लाल सितारे बने हुए हैं, वो यहां बचाकर रखे गए हैं। वो गैस मास्क भी यहां पर रखे गए हैं जो कभी सोवियत संघ ने अल्बानिया को दिए थे। ये बंकर इतना बड़ा है कि यहां के हॉल में सैकड़ों लोग इकट्ठे किए जा सकते थे। किसी हमले की सूरत में एनवर होचा और उनके मातहत यहां सैकड़ों लोगों को अपने देश के लिए लड़ने के लिए उकसा सकते थे। बंकर में एक बार भी है, जहां पर अब रॉक और जैज संगीत बजता है। दिलचस्प बात ये है कि एनवर के राज में दोनों तरह के संगीत पर पाबंदी थी। आगे चलकर यहां भी कंसर्ट आयोजित करने की योजना है। कार्लो बोलिनो अब बंकर के दक्षिणी हिस्से में तस्वीरों की प्रदर्शनी लगाना चाहते हैं। वो यहां एक थिएटर खोलने का भी इरादा रखते हैं। बंक आर्ट-1 की शोहरत दूर-दूर तक फैल रही है। अमेरिका, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड तक से लोग तिराना आ रहे हैं। साम्यवाद के काले दौर के बावजूद इस बंक आर्ट 1 को राजनैतिक रूप से निरपेक्ष रखने की कोशिश की गई है। एनवर के राज में करीब 5550 लोगों कों मौत के घाट उतार दिया गया था, जबकि 25 हजार लोगों को कैद कर के रखा गया था, लेकिन इस म्यूजियम में इस बात का जिक्र नहीं होता। आर्तेमिसा कहती हैं कि यहां पर कम्युनिस्ट शासन के दोनों पहलू दिखाए गए हैं। अब ये जनता को तय करना है कि वो किस पहलू को देखना चाहती है।




