रिसर्च डेस्क। कैंसर (Cancer) जैसी बीमारी के ठीक होने की खबर मात्र से ही दुनिया भर में लाखों लोगों की जिंदगी में आशा की किरण दिखाई देने लगती है. अब एक नया शोध इन लोगों के लिए आशा की नई किरण लेकर आया है. एक नए शोध के मुताबिक इंसानी प्रतिरोधक तंत्र का ही एक हिस्सा किसी भी तरह के कैंसर का इलाज कर सकने में सक्षम है. यह बात ब्रिटेन के कार्डिफ विश्वविद्यालय की रिसर्च में सामने आई है. इस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं टीम ने लैब में रिसर्च के दौरान प्रोस्टेट, ब्रेस्ट, लंग और दूसरे तरह के कैंसर को खत्म करने में सफलता पाई है.
नेचर इम्यूनोलॉजी नाम के जर्नल में छपे इस शोध के मुताबिक अभी तक इस रिसर्च का प्रैक्टिकल इंसानों पर नहीं किया गया है. लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि उनकी रिसर्च का प्रैक्टिकल इंसानों पर भी बेहद सटीक साबित हो सकता है.
क्या है रिसर्च का रिजल्ट:-
इस रिसर्च के मुताबिक शरीर का प्रतिरोधक तंत्र कई तरह के इन्फेक्शन को समाप्त करने की क्षमता तो रखता ही है. साथ ही साथ यह कैंसरकारक सेल्स पर भी उतना ही प्रभावी साबित हो सकता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि खून में मौजदू एक टी-सेल होती है जो पूरे शरीर का निरीक्षण करती है और इस बात का खयाल रखती है कि किस तरह के ट्यूमर से निपटा जा सके. रिसर्च टीम के एक सदस्य ने बीबीसी को बताया-'इसके जरिए सभी तरह के कैंसर रोगियों का इलाज संभव हो सकता है. पहले कोई नहीं मानता था कि ऐसा भी संभव हो सकता है. एक अकेली टी-सेल के जरिए सभी तरह के कैंसर से लड़ा जा सकता है.
टी-सेल्स की सतह पर रिसेप्टर होते हैं जिसके जरिए ये सेल अंदाजा लगा सकती है कि हमारे शरीर का कौन सा भाग कैंसरकारक है. दिलचस्प बात ये है कि ये टी-सेल कैंसरकारक सेल्स को तो खत्म करती है लेकिन सामान्य टिस्यू को नुकसान नहीं पहुंचाती. ये सेल ऐसा कैसे कर पाती है, इस बात पर अभी रिसर्च होना बाकी है.
कैसे काम करेगी ये टी-सेल:-
शोधकर्ताओं का मानना है कि इलाज के लिए पहले कैंसर रोगी के शरीर से खून का सैंपल निकाला जाएगा. इसके बाद इन्हें जेनेटिकली मोडीफाई किया जाएगा जिससे टी-सेल्स कैंसरकारी सेल्स को खत्म कर सकें.
हालांकि अन्य विशेषज्ञ शोधकर्ताओं की राय से पूरी तरह सहमत नहीं हैं. स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बेसेल के एक प्रोफेसर के मुताबिक नई रिसर्च में काफी संभावनाएं हैं लेकिन इससे हर तरह का कैंसर ठीक हो जाएगा, ये कहना जल्दबाजी है. वहीं एक विशेषज्ञ का कहना है कि ये अभी बहुत बेसिक रिसर्च है और इसके आधार पर दवाएं बनाना आसान काम नहीं है.
