भोपाल. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। वहीं, गैर भाजपा शासित राज्यों ने घोषणा की है कि वह अपने राज्य में नागरिकता संशोधन कानून को लागू नहीं करेंगे। इसी के साथ भाजपा सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने बड़ा बयान देकर मध्यप्रदेश में एक नई बहस छेड़ दी है। होशंगाबाद लोकसभा सीट से भाजपा सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा- सीएए लागू नहीं करने पर राज्य की सरकारें बर्खास्त हो सकती हैं। राज्य की सरकारों को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इस बयान के बाद सियासी अटकलें भी तेज हो गई हैं।
मध्यप्रदेश में तीन बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन:-
मध्यप्रदेश में अभी तक तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। प्रदेश में पहली बार 30.04.1977 से 23.06.1977 तक राष्ट्रपति शासन रहा। प्रदेश में दूसरी बार, 17.02.1980 से 09.06.1980 तक राष्ट्रपति शासन लगा था। तीसरी बार 15.12.1992 से 06.12.1993 तक राष्ट्रपति शासन लगा था।
मध्यप्रदेश में हो रहा है नागरिकता संशोधन कानून का विरोध:-
नागरिकता संशोधन कानून का विरोध मध्यप्रदेश में हो रहा है। मध्यप्रदेश के सीएम कमल नाथ भोपाल में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भोपाल में पैदल मार्च कर चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की थी कि मध्यप्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी लागू नहीं होगा।
क्या है धारा 356:-
संविधान की धारा 356 में राष्ट्रपति शासन का उल्लेख है। संविधान की धारा 356 में कई ऐसे बिंदुओं का उल्लेख किया गया है जिस कारण राज्य की सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। धारा 356 के अनुसार राष्ट्रपति देश के किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। राष्ट्रपति को अगर लगता है कि राज्य सरकार, भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है तो वो स्वत: फैसला लेकर राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं।
इन परिस्थितियों में लगता है राष्ट्रपति शासन
यदि विधानसभा चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिला हो और कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हो।
अगर किसी राज्य में किसी पार्टी को बहुमत मिलता है पर वह सरकार बनाने से इंकार कर दें और बाकि दल भी सरकार बनाने के लिए गठबंधन ना करें।
यदि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संवैधानिक कानूनों को पालन नहीं किया तो।
राज्य सरकार में आंतरिक अशांति बढ़ जाए और सरकार उसे नियंत्रित नहीं कर सके।
यदि राज्य सरकार संविधान के द्वारा दिए गए संवैधानिक दायित्यों का निर्वाह नहीं करती है तो।
केन्द्र का विषय है नागरिकता:-
जानकारों के अनुसार, भारत का नागरिक कौन होगा और कौन नहीं यह तय करना केन्द्र का अधिकार है। राज्यों के पास इसका कोई अधिकार नहीं है। संविधान में भी नागरिकता को लेकर यह प्रावधान है कि नागरिकता देने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है राज्य सरकार के पास नहीं। संविधान में राज्य और केन्द्र के कामों का बंटवारा किया गया है। कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिसमें केन्द्र और राज्य दोनों के पास अधिकार हैं। लेकिन नागरिकता का अधिकार संविधान के अनुसार केन्द्र के पास है। जो मुद्दे केन्द्र के अंतर्गत आते हैं अगर वो राज्यसभा और लोकसभा में पास होते हैं और राष्ट्रपति उस विधेयक पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो वह कानून का रूप ले लेता है और फिर उसे सभी राज्यों को लागू करना पड़ता है।