फीचर डेस्क। आपने नटवर लाल का नाम और ठगी के कारनामे सुने होंगे लेकिन ये कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसका ठगी के मामले में कोई सानी नहीं था। पांच भाषाएं बोलने वाले इस शख्स को कम से कम 47 नामों से जाना गया। इनमें विक्टर लुस्टिग, चार्ल्स ग्रोमर, अलबर्ट फिलिप्स, रॉबर्ट जॉर्ज वेग्नर जैसे नाम शामिल हैं। हमने अब तक आपको इनका असली नाम नहीं बताया है, क्योंकि सच कहें तो हमें भी नहीं पता। ये वो शख्स था, जो कई दशकों तक जांच एजेंसियों की आंखों में किरकिरी बना रहा। एफबीआई ने इस ठग को विक्टर लुस्टिग कहा है, लेकिन ये नाम इसके 47 नामों में से एक ही है। इस ठग की कहानी में जब जब एफबीआई का नाम आता है तो कहानी अपने आप दिलचस्प हो उठती है। ब्रिटिश पत्रकार जैफ मेश ने इस किस्से पर 'हैंडसम डेविल' नाम की किताब लिखी है। जैफ बताते हैं, 'जब भी वो एफबीआई से भाग रहा होता था तो अपना पीछा करने वाले एजेंट्स का मज़ाक उड़ाने के लिए उनके नाम से होटलों में कमरे बुक करने और उनके नाम पर जहाजों की सवारी किया करता था।' एफबीआई के दस्तावेज के मुताबिक वह एक अक्तूबर, 1890 को होस्टाइन में पैदा हुआ था। होस्टाइन पहले अस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य था और अब इसे चेक गणराज्य के नाम से जाना जाता है। लेकिन ये भी सबसे ज्यादा कही जाने वाली बात ही है। जैफ बताते हैं, 'उसने हमें इतनी कहानियां सुनाईं कि हम आज भी ये तक नहीं जानते कि वो पैदा कहां हुआ था। मैंने एक स्थानीय इतिहासकार से इस बारे में बात की लेकिन यहां के दस्तावेजों में उसके इतने नामों में से कोई भी पंजीकृत नहीं है। वो यहां था ही नहीं!' अमेरिका में 1920 का दशक खूंखार गैंगस्टर अल कपोनी और जैज के लिए जाना जाता है। ये वो दौर था जब पहला महायुद्ध खत्म हुआ था, अमेरिका अपने चढ़ान पर था। डॉलर के आने और जाने की स्पीड बेहद तेज थी। इसी दौर में अमेरिका के 40 शहरों के जासूसों ने इस ठग को अल सिट्राज निकनेम दिया था। सिट्राज एक स्पैनिश शब्द है जिसका अर्थ घाव होता है। और, ये नाम इस शख्स के बाएं गाल पर एक चोट के निशान की वजह से मिला था जो उसे पेरिस में उसकी एक महबूबा से मिला था। ये साल 1925 की बात है। अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के एजेंट जेम्स जॉनसन के संस्मरण के मुताबिक, विक्टर लुस्टिग मई के महीने में पेरिस पहुंचा। लुस्टिग ने पेरिस के एक लग्जरी होटल में मैटल वेस्ट इंडस्ट्री के बड़े उद्योगपतियों के साथ एक मीटिंग का आयोजन किया। इस मीटिंग के लिए लुस्टिग ने खुद को फ्रांसीसी सरकार का अधिकारी बताकर सरकारी स्टांप के साथ पत्र भिजवाया। लुस्टिग ने इस मीटिंग में कहा, 'इंजीनियरिंग से जुड़ी असफलताओं, खर्चीली मरम्मत और कुछ राजनीतिक समस्याएं जिन्हें मैं आपके साथ साझा नहीं कर सकता, की वजह से एफिल टावर का गिरना आवश्यक है।' उसने कहा, 'टावर सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाएगा।' इस मीटिंग में मौजूद किसी भी व्यापारी ने लुस्टिग के इस प्रस्ताव पर शक नहीं किया क्योंकि उन्होंने समझा कि ये फ्रांसीसी सरकार का एक कदम है। कुछ सूत्रों का कहना है कि उसने ऐसा एक बार फिर किया। वह होटल में छिपा रहा और जब उसे पता चला कि वो एक बार फिर ऐसा कर सकता है तो उसने एक बार फिर ऐसा कर दिखाया। विक्टर लुस्टिग ने अपनी जिंदगी में ऐसे कई किस्सों को अंजाम दिया जिसने कई सरकारों की रातों की नींद हराम कर दी। जेलों को तोड़ना उसके लिए बाएं हाथ का खेल था। लेकिन, आखिर में अमेरिकी सरकार ने उसे एक अल्काट्राज जेल में रखा, जहां साल 1947 में 11 मार्च को शाम के आठ बजकर 30 मिनट पर उसकी मौत निमोनिया से हुई। वो सबसे खर्चीला और शानशाही से रहने वाला ठग था लेकिन उसकी मौत के सरकारी दस्तावेज में उसे सिर्फ नौसिखिया सेल्समैन कहा गया।