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Sunday, February 16, 2020

ज्योतिरादित्य सिंधिया आखिर क्यों हैं इतने खफा, चुनावी हार या सरकार में दखलदांजी

भोपाल। आखिर पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया नाराज क्यों हैं? मुख्यमंत्री कमलनाथ से उनकी दूरी की वजह क्या है? ऐसी क्या मजबूरी आ गई जो उन्हें सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने का एलान करना पड़ा? इस नाराजगी की वजह यह तो नहीं कि सूबे की सियासत में वे क्या अलग थलग पड़ते जा रहे हैं? इन सारे सवालों का एक ही जवाब है कि कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। यह पहला मौका नहीं है, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी का इजहार किया हो। प्रदेश सरकार के सवा साल के कार्यकाल में वे कई बार सवाल उठा चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी की वजह लोकसभा चुनाव में मिली हार को तो माना ही जा रहा है, साथ-साथ 15 साल बाद सत्ता में आई पार्टी की सरकार में सीमित दखलंदाजी भी मुख्यवजह मानी जा रही है।
सरकार में जितनी तवज्जो पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को मिलती है ज्योतिरादित्य सिंधिया को उस मुकाबले कम ही तवज्जो मिल पाती है। विधानसभा चुनाव 2018 और उसके पहले शिवराज सरकार को गिराने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भोपाल में सत्याग्रह किया और चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी संभाली थी। लोकसभा चुनाव में हार मिलने के बाद अपवादों को छोड़ दें तो उन्होंने अपने आपको संसदीय क्षेत्र तक सिमटा लिया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने की सवा साल की अवधि में उन्होंने वचन पत्र को लेकर दूसरी बार सरकार को घेरा है। पहले पूरी तरह से किसान कर्ज माफी नहीं हो पाने पर घेराबंदी की थी।
दो दिन पहले टीकमगढ़ जिले में हुए एक जलसे में अतिथि विद्वानों को लेकर उन्होंने पार्टी के वचन पत्र को ग्रंथ बताते हुए कहा कि अगर उसके मुताबिक काम नहीं हुआ तो वे सड़क पर उतर जाएंगे। सिंधिया ने सरकार के शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में बड़े माफिया पर कार्रवाई नहीं होने पर भी नाराजगी जताई थी। इसी तरह महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनाव और अभी दिल्ली चुनाव परिणाम पर भी वे पार्टी को आत्मचिंतन की जरूरत बता चुके हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया 2018 में केंद्र की राजनीति से प्रदेश की राजनीति की तरफ शिफ्ट होने की कोशिश मंे जुटे दिखाई दे रहे थे, लेकिन राज्य में सरकार बनने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर होना पड़ा तो उनके चेहरे पर निराशा का भाव दिखाई दिया। हालांकि सरकार में उन्होंने अपने समर्थकों को मंत्री पद दिलाने में कोई कमी नहीं रखी। इसके बाद वे राज्य की राजनीति से दूर होने लगे। लोकसभा चुनाव में जब वे अपनी ही पुराने सहयोगी से हार गए तो उनके विरोधी प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को मौका मिल गया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार में दखलंदाजी बढ़ गई। कहा जाता है कि सरकार में नौकरशाहों की पदस्थापना हो या सरकारी संस्थाओं में राजनीतिक अशासकीय नियुक्तियां, दिग्विजय सिंह समर्थकों के काम आसानी से हो जाते हैं। इससे सिंधिया को बड़ा धक्का लगता रहा है।
सोनिया गांधी करेंगी फैसला:-
शनिवार शाम ग्वालियर पहुंचे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साफ किया कि प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष के बारे में कोई निर्णय पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ही करेंगी। फिलहाल सरकार का फोकस निकाय-पंचायत चुनााव पर है।