इनसाइड स्टोरी। पालघर में साधुओं की हत्या के मामले में Zee News लगातार रिपोर्टिंग कर रहा है. 16 अप्रैल की इस घटना पर फिर Zee News ने ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर पड़ताल की है और हर उस व्यक्ति से बात की है, जो इस बड़े मामले की परतें खोलने में मदद कर सकता था. हमने पहले आपको इस मामले के पहले चश्मदीद से मिलवाया था, जो गढ़चिंचले गांव की सरपंच चित्रा चौधरी थीं. इसी गांव के पास दो साधुओं और उनके ड्राइवर की भीड़ ने हत्या कर दी थी. सरपंच चित्रा ने साधुओं की हत्या के पीछे राजनीतिक वजहों की तरफ इशारा किया था. अब पड़ताल में कई औऱ बड़ी बातें सामने निकल कर आई हैं:
धर्मांतरण थ्योरी:-
इस पड़ताल में ये पता चला कि इस आदिवासी इलाके में शराब को राजनीतिक हथियार बनाया गया है. कुछ विशेष राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल अपने समर्थक बनाने और संगठन को मजबूत करने के लिए करते हैं. लेकिन जो लोग, जो संगठन और जो साधु-संत इस इलाके में नशे का विरोध करते हैं, इलाके में जागरूकता फैलाते हैं और सामाजिक सुधार की बात करते हैं. उन्हें दुश्मन की तरह देखा जाता है. Zee News की टीम ने आदिवासियों के बीच काम करने वाले लोगों से बात की है, जो इस आदिवासी इलाके को वर्षों से जानते हैं, उन्होंने पालघर को राजनीतिक वर्चस्व और धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई का मैदान बताया.
स्थानीय जानकारों ने पालघर में वामपंथी दलों और ईसाई मिशनरियों के गठजोड़ की बात बताई, और ये बताया कि हिंदूवादी संगठन और हिंदू साधु संत इन लोगों की आंखों में चुभते हैं. हमें ये भी पता चला है कि ये इलाका ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार और धर्मांतरण करने का बड़ा गढ़ है. इस आदिवासी इलाके में कई Christian missionaries काम करती हैं. इसके अलावा ऐसे संगठनों का समर्थन करने के लिए कई हिंदू विरोधी संगठन भी पालघर में सक्रिय हैं. सवाल यही है कि क्या इन सभी बातों की वजह से पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई? क्य़ा इसी वजह से कल्पवृक्ष गिरी महाराज और सुशील महाराज की जान ले ली गई?
परत दर परत:-
वैसे तो साधुओं की हत्या के पीछे अफवाह को वजह बताया गया था, लेकिन ये बात इतनी साधारण नहीं है. ये सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि पालघर में पहले कभी भीड़ द्वारा हिंसा की ऐसी घटना नहीं हुई. दूसरी बड़ी बात ये है कि किसी को चोर समझ कर पीटना और पीट-पीट कर जान ले लेना...ये दोनों अलग अलग बातें है. साधुओं की हत्या करना और वो भी तब...जब सामने पुलिसवाले खड़े हो...ये मामूली बात नहीं है. इसके पीछे जो भी कारण हैं, वो सब कारण सामने आने चाहिए. इसलिए हम लगातार इस मामले की पड़ताल कर रहे हैं.
हमें पालघर से एक और बड़ी जानकारी मिली . पिछले दो साल से अचानक पालघर के कुछ इलाकों में रावण की पूजा के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसके ज़रिए आदिवासियों को हिंदू मान्यताओं का विरोधी बनाने की कोशिश की जा रही है . कुछ लोग आदिवासियों में ये भ्रम फैला रहे हैं कि आदिवासी रावण के वंशज है और उन्हें रावण की पूजा करनी चाहिए . आदिवासी एकता परिषद जैसे कुछ संगठन पालघर में रावण दहन पर रोक लगाने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाते हैं और रावण को देवता की तरह दिखाने की कोशिश करते हैं.
अब सवाल ये है कि इस आदिवासी इलाके में क्यों ऐसा हो रहा है कि पिछले कुछ वर्ष से रावण की पूजा की जा रही है. क्यों हिंदू देवी देवताओं के बारे में गलत बातें फैलाई जा रही है? क्यों ऐसा हो रहा है कि ईसाई मिशनरियों के साथ-साथ हिंदू विरोधी संगठन सक्रिय हैं. लेकिन ये सभी बातें आपसे छुपाई जा रही हैं. कोई भी आपको इन बातों के बारे में नहीं बता रहा है. पालघर में साधुओं की हत्या को सिर्फ अफवाह से जोड़कर, सिर्फ गलतफहमी से जोड़कर और इसे गलत पहचान (Mistaken Identity) का केस बताकर मामले को दबाने की पूरी कोशिश हो रही है.