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Saturday, April 25, 2020

DNA ANALYSIS: तीसरा 'विश्वयुद्ध' शुरू हो चुका है, क्या आपको इसका अहसास है?

जरा हटके। कोरोना वायरस के दम पर चीन ने पूरी दुनिया के खिलाफ तृतीय विश्वयुद्ध छेड़ दिया है. चीन इस विश्वयुद्ध की तैयारी बहुत पहले से कर रहा था.  चीन इस युद्ध को तीन चरणों में अंजाम तक पहुंचाना चाहता है. इसका पहला चरण है दुनिया को धोखा देना. दूसरा चरण है पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाना और तीसरा चरण है दुनिया के लोगों का दमन और शोषण करना. 
वर्ष 1945 में जापान के हिरोशिमा पर अमेरिका ने जो एटम बम गिराया था उसका द्रव्यमान यानी मास सिर्फ 0.7 ग्राम था. इसी तरह नागासाकी पर गिराए गए एटम बम का द्रव्यमान सिर्फ एक ग्राम था.  ये एक चुटकी नमक के बराबर है । लेकिन परमाणु बम इसी मामूली सी शक्ति को असीम ऊर्जा में बदल देता है जिसका नतीजा सिर्फ और सिर्फ तबाही होता है। इसी तबाही के साथ दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया था।

लेकिन आज 75 वर्षों के बाद दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध में जा चुकी है और आपको इसका पता भी नहीं चला. इस युद्ध के केंद्र में कोई बड़ा हथियार, मिसाइलें या फिर एटम बम नहीं है, बल्कि सिर्फ एक वायरस है. इस वायरस का वजन परमाणु बम के द्रव्यमान से भी लाखों करोड़ गुना कम है. लेकिन इस वायरस में भी दुनिया को तबाह करने की असीम शक्ति समाई हुई है. इसी वायरस के दम पर चीन ने पूरी दुनिया के खिलाफ तृतीय विश्वयुद्ध छेड़ दिया है. चीन इस विश्वयुद्ध की तैयारी बहुत पहले से कर रहा था. चीन इस युद्ध को तीन चरणों में अंजाम तक पहुंचाना चाहता है. इसका पहला चरण है दुनिया को धोखा देना. दूसरा चरण है पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाना और तीसरा चरण है दुनिया के लोगों का दमन और शोषण करना.
चीन इस युद्ध के किस चरण में है ये हम आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले ये समझ लीजिए कि किसी भी बड़े युद्ध या यूं कहें कि विश्वयुद्ध की पहचान क्या होती है. इसकी पहली पहचान होती है, हर तरफ मौत और दुख का पसर जाना. इसकी दूसरी पहचान है अर्थव्यवस्थाओं का दम तोड़ना. तीसरी पहचान है जरूरी चीज़ों की आपूर्ति में कमी आना. चौथी पहचान है नए इलाकों पर कब्ज़ा करना और पांचवी और आखिरी पहचान है नई ताकतों का उदय. 

आप गौर करेंगे तो आपको ये पांचों बातें इस समय आपके आस पास घटित होती दिखाई देंगी. पूरी दुनिया में करीब 27 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. 1 लाख 91 हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और अमेरिका जैसा दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश इस वायरस से ऐसे लड़ रहा है. जैसे वो तीसरी दुनिया का देश है. अमेरिका में 8 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमण हो चुका है और 50 हज़ार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं.
अब आप सोचिए जिस देश को दुनिया का लीडर कहा जाता था, जिस देश के बारे में कहा जाता था कि वो दुनिया की कोई भी समस्या अपनी सैन्य ताकत या फिर पैसों के दम पर सुलझा सकता है. वो देश आज अपने हजारों लाखों लोगों का जीवन नहीं बचा पा रहा. ऐसे में अब पूरी दुनिया में अमेरिका का भला क्या महत्व रह जाएगा? यानी चीन बिना परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए सिर्फ एक कीटाणु के दम पर अमेरिका को घुटनों पर लाने में सफल रहा है. वायरस सीमाएं नहीं देखता और इसकी सबसे ज्यादा मार विकसित और अमीर देशों पर ही पड़ी है. फ्रांस में 21 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इटली में 25 हज़ार से ज्यादा तो ब्रिटेन में 18 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
इतना ही नहीं, अमेरिका समेत दुनिया की बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी दम तोड़ रही हैं. इस वर्ष दुनिया की GDP माइनस 3 रहने का अनुमान है. 1930 के बाद से सबसे बड़ी आर्थिक मंदी दस्तक दे चुकी है. अमेरिका में करीब 2 करोड़ 60 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. अमेरिका में इस समय बेरोजगारी दर 1930 के बाद से सबसे ज्यादा है. फ्रांस जैसे देश में तो प्राइवेट नौकरी करने वाले 50 प्रतिशत लोगों के पास आज रोजगार नहीं है. चीन इस मौके का फायदा उठाकर पूरी दुनिया में निवेश कर रहा है और बड़ी-बड़ी कंपनियां सस्ते दामों पर खरीद रहा है. यानी चीन चाहता है कि आने वाले समय में आपकी तन्ख्वाहें चीन से ही आए.

पूरी दुनिया में लोगों की जान बचाने के लिए जिन उपकरणों और दवाइयों की जरूरत है उनकी भारी कमी हो गई है. चीन अब पूरी दुनिया को घटिया मेडिकल उपकरणों की सप्लाई कर रहा है और उसने इस महामारी के बीच भी मुनाफा कमाने का तरीका ढूंढ लिया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि दुनिया के करीब साढ़े 26 करोड़ लोगों के पास भोजन की भयंकर कमी हो सकती है. एक अनुमान के मुताबिक करीब 55 देश ऐसे हैं जिनके पास इस वर्ष के अंत तक पौष्टिक भोजन की कमी हो जाएगी.
●चीन में पटरी पर लौटने लगा जीवन
चीन में जीवन पटरी पर लौटने लगा है. वहां सब कुछ सामान्य हो रहा है और चीन ने एक छोटे से ब्रेक के बाद अपनी विस्तारवाद वाली नीति का इंजन फिर से रीस्टार्ट कर दिया है. चीन ताइवान पर कब्जा करना चाहता है तो CPEC के बहाने उसने पाकिस्तान को भी अपना उपनिवेश बनाने की तैयारी कर ली है. इसके अलावा, हांगकांग के साथ विवाद और भी इसी का नतीजा है. इतना ही नहीं अब तक चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी पैसे देकर उसे अपनी तरफ करने की कोशिश में लग गया है. दक्षिण चीन सागर में भी चीन ने अपनी गतिविधियां बढा दी है और हाल ही में इस सागर में चीन और अमेरिका के कुछ वार शिप एकदूसरे के सामने आ गए थे और विवाद की स्थिति पैदा हो गई थी. जब पूरी दुनिया एक वायरस से जूझ रही है, तब चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को अंजाम देने में जुटा है. 
और चीन ने अमेरिका से उसकी कुर्सी छीनने की पूरी तैयारी कर ली है. इसके लिए चीन ने अमेरिका के साथ कोई सीधा युद्ध नहीं छेड़ा है बल्कि उसने ये काम आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और तकनीकी आधार पर शुरू कर दिया है. यानी अब दुनिया का शक्ति संतुलन बदलने लगा है और चीन का पलड़ा भारी होने लगा है. 
●चीन की ओर से दिखाई ना देने वाले विश्वयुद्ध
पहला विश्वयुद्ध करीब 4 वर्षों तक चला था. दूसरा विश्वयुद्ध करीब 6 वर्षों तक चला लेकिन ये तीसरा विश्वयुद्ध चीन अभी कम से कम तीन और दशकों तक लड़ना चाहता है. चीन ने इसकी तैयारी 1980 में कर ली थी. ये दिखाई ना देने वाले ऐसा विश्वयुद्ध है जिसे चीन तीन चरणों में अंजाम देना चाहता है. पहला चरण है दुनिया को धोखा देना. 1980 के दशक में चीन में आर्थिक उदारवाद का दौर शुरू हुआ. चीन ने अर्थव्यवस्था के दरवाज़े खोले तो अमेरिका ने उसका हाथ थाम लिया. क्योंकि अमेरिका को चीन जैसे बड़े बाज़ार की जरूरत थी लेकिन ये चीन का धोखा था. उदारवाद के बहाने से चीन ने अपने बहुत सारे लोगों को और छात्रों को अमेरिका जैसे देशों में भेजा. कहा जाता है कि यही Exchange Programmes चीन द्वारा अमेरिका की सीक्रेट टेक्नोलॉजी और सेना की रणनीतियों से जुड़े राज़ चुराने का जरिया भी बने. चीन ने अपने दरवाज़े दुनिया के लिए खोले तो बड़ी-बड़ी कंपनियां चीन आने लगीं.  इससे चीन को नए जमाने की तकनीक हासिल होती गई. 1990 से लेकर 21वीं सदी की शुरुआत तक, जब पश्चिम की ताकतें, मध्य और पश्चिम एशिया के विवादों में उलझी थीं, तब चीन चुप चाप बड़ी शांति से अपनी योजना को अमल में लाता रहा. चीन इन विवादों में नहीं उलझा बल्कि उसने उन देशों में अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू किया जिनकी अर्थव्यवस्थाएं कमजोर थीं. उसने अफ्रीकी देशों से लेकर श्रीलंका, बांग्लादेश, क्यूबा, यूक्रेन, पाकिस्तान, इक्वाडोर और ताजिकिस्तान जैसे देशों में भारी भरकम निवेश किया. 
अफ्रीका में चीन ने वर्ष 2015 तक साढ़े 4 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था जो 2018 तक बढ़कर साढ़े 22 लाख करोड़ रुपये हो गया है. चीन दुनिया का अकेला ऐसा व्यापारी है जो दूसरों को उधार देने के बाद, कभी उधार वापस नहीं मांगता. चीन सिर्फ ये चाहता है कि ये देश कभी उसका उधार चुका ही ना पाएं, ताकि चीन इनके बदले में उन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कब्ज़ा कर ले, उनकी बड़ी बड़ी कंपनियों को कौड़ियों के भाव खरीद ले, बंदरगाहों पर कब्ज़ा कर ले, वहां अपने सैन्य ठिकाने बना ले और उधार के बदले में इन देशों को अंत में अपना उपनिवेश बना ले. 
ये तो हुई छद्म उदारवाद और आर्थिक धोखे की बात लेकिन आधुनिक दुनिया के विश्वयुद्ध सिर्फ इन दो बातों के दम पर नहीं जीते जा सकते.  इनमें मनोविज्ञान और वैचारिक वायरस की भी जरूरत पड़ती है. इसके लिए चीन ने दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज में ऐसे कैंपस खोले, जहां चीन के दार्शनिक विचारों को पढ़ाया जाता है. ये देखकर लोगों को लगता है कि चीन तो बहुत दार्शनिक देश है, उसकी भला क्या महत्वाकांक्षाएं हो सकती हैं लेकिन ये भी चीन का एक बड़ा धोखा है. चीन ने दुनिया के बडे-बड़े थिंक टैंक यही वजह है कि इस महामारी के बावजूद ज्यादातर थिंक टैंक, नीति निर्माता, विश्व की संस्थाएं और विदेशी पत्रकार चीन की आलोचना से बच रहे हैं. 
चीन ने अपनी जिस विचारधारा को पूरी दुनिया में फैलाया उसके अवशेष भारत में भी दिखाई देते हैं. Peopel's Republic Of china के संस्थापक माओ जेडोंग के विचार भारत में भी माओवाद और नक्सलवाद का आधार माने जाते हैं. अब कुछ आंकड़ों की मदद से समझिए कि चीन इस युद्ध को कैसे दूसरे चरण में ले जा चुका है. इस विश्व युद्ध का दूसरा चरण है पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर अराजकता पैदा करना. 27 लाख से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने के बाद और 1 लाख 93 हज़ार से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद दुनिया में फैली अराजकता सबको दिखाई दे रही है लेकिन इस दौरान सबसे ज्यादा फायदा चीन को ही हो रहा है. पूरी दुनिया में जितनी चीज़ों का उत्पादन होता है उसमें से 28.4 प्रतिशत चीन में ही बनाई जाती है. 16.6 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अमेरिका दूसरे नंबर पर है जबकि तीसरे नंबर पर मौजूद जापान की हिस्सेदारी 7.2 प्रतिशत है. दुनिया के कुल उत्पादन में भारत समेत बाकी देशों की कितनी हिस्सेदारी है उसका आंकड़ा इस समय आपकी स्क्रीन पर है. चीन ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को दुनिया की फैक्ट्री बना लिया और अब दुनिया के लिए एक झटके में इस फैक्ट्री पर ताला लगाना संभव नहीं है क्योंकि ऐसा करने पर दुनियाभर में जरूरी चीज़ों की आपूर्ति पूरी तरह बाधित हो जाएगी, जिसके बाद हालात और भयावह हो सकते हैं. 
चीन ने सिर्फ गरीब देशों को ही उधार बांटकर अपना शिकार नहीं बनाया है बल्कि अमेरिका जैसे देश में भी चीन ने यही चाल चली है. अमेरिका पर सबसे ज्यादा उधारी जापान की है. जो करीब 95 लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये के बराबर है. दूसरे नंबर पर चीन है जिसने अमेरिका को 82 लाख करोड़ रुपये उधार दिए हुए हैं. अगर चीन का ये उधार अमेरिका की जनसंख्या के बीच बराबर बांट दिया जाए तो हर अमेरिकी को चीन को ढाई लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे. अब अमेरिका जैसे देशों को डर ये है कि अगर चीन ने अपने ये पैसे निकाल लिए तो फिर अमेरिका की अर्थव्यवस्था और बड़े संकट में चली जाएगी और यहीं से इस विश्व युद्ध का दूसरा चरण शुरू होता है जिसकी झलक आप इन दिनों देख रहे हैं. 
चीन इस युद्ध को वर्ष 2049 तक किसी भी कीमत पर जीतना चाहता है. इसके लिए चीन ने एक योजना बनाई है. मशहूर Political Scientist Graham Allison के मुताबिक इस योजना का पहला चरण 2025 में पूरा होगा जब चीन खुद को टेक्नोलॉजी की दुनिया की महाशक्ति बना लेगा. इसके केंद्र में Artificial Intelligence, Robots और ड्राइवर लेस कारें होंगी. इसके बाद वर्ष 2035 तक चीन दुनिया का Innovation Leader बनना चाहता है.
यानी चीन का इरादा है कि अगले 15 वर्षों में दुनिया के सभी बड़े अविष्कार उसी की ज़मीन पर हों. इसके बाद 2049 तक चीन खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनाना चाहता है. 2049 में ही चीन की कम्यूनिस्ट क्रांति के 100 वर्ष पूरे होंगे और चीन इस डेडलाइन को किसी भी सूरत में मिस नहीं करना चाहता और चीन के लिए ये राह तभी आसान होगी जब दुनिया में अराजकता फैलेगी. अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश घुटने टेक चुके होंगे और तब चीन इस विश्व युद्ध के तीसरे चरण की शुरुआत करेगा जिसमें वो उसकी बात ना मानने वाले देशों का दमन करेगा और शोषण के जरिए अपनी बादशाहत कायम करेगा. 
चीन ने आज से पहले भी जो कुछ हासिल किया वो भी इसी महा योजना का हिस्सा है. वर्ष 2009 तक चीन दुनिया की अर्थव्यवस्था का इंजन बन चुका था. 2011 तक वो Manufacturing Hub बन गया, 2012 में चीन ने खुद को एक बड़े व्यापारिक देश के तौर पर स्थापित कर लिया. 2014 में चीन ने Purchasing Power Parity यानी PPP के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया, 2015 में चीन का मध्यमवर्ग दुनिया का सबसे बड़ा मध्यम वर्ग बन गया औऱ 2016 में तो अरब पतियों की संख्या के मामले में चीन ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया था. चीन इस योजना को कैसे अंजाम दे रहा है. ये हम आपको बता चुके हैं लेकिन वो ऐसा कर क्यों रहा है ये आपको समझना चाहिए. दरअसल चीन दुनिया का सबसे ताकतवर देश बनना चाहता है और इसके लिए जरूरी ये है कि वो दुनिया के बाकी शक्तिशाली देशों को कमजोर कर दें.  Corona Virus की वजह से ठीक ऐसा ही हो रहा है. 
इस महामारी का सबसे ज्यादा असर G-7 देशों पर पड़ा है. इसे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों का समूह भी माना जाता है. G7 में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, जापान और जर्मनी शामिल हैं. ये वो देश हैं जिनके पास दुनिया की GDP का 46 प्रतिशत हिस्सा है और दुनिया की 58 प्रतिशत दौलत भी इन्हीं देशों के पास है लेकिन एक छोटे से वायरस ने इन देशों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है और ये चीन का सपना पूरा होने जैसा है. अब सवाल ये है कि हम जिस तीसरे विश्वयुद्ध की बात कर रहे हैं उसके परिणाम क्या होंगे? इसके लिए चीन इसे तीसरे चरण में ले जाकर दमन और शोषण की नीति पर काम शुरू कर सकता है लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि चीन को कई शक्तिशाली देशों से टकराना होगा. 
कुछ दिनों पहले हमने आपके इतिहास के जनक माने जाने वाले Thucy-dides (थ्यूसी-डिडस) द्वारा लिखी गई एक किताब के बारे में बताया था. जिसका नाम था History of the Pelopo-nnesian War. इस पुस्तक में थ्यूसी-डिडस कहते हैं कि जब एक महाशक्ति के सामने दूसरी शक्ति उभरने लगती है तो दोनों के बीच युद्ध होकर रहता है. इसे Thucy-dides Trap भी कहा जाता है. इस समय दुनिया भी इसी ट्रैप में है. चीन उभरती हुई महाशक्ति है, लेकिन चीन दुनिया के देशों को युद्ध की धमकी नहीं दे रहा बल्कि वो बहुत सब्र के साथ इस बात का इंतज़ार कर रहा है कि दुनिया की अर्थव्यस्था कमज़ोर होती रहे, दुनिया के देश कोरोना वायरस को कंट्रोल करने में जुटे रहें और मौके का फायदा उठाकर चीन इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को कंट्रोल कर लें. इसके लिए वो परमाणु बम नहीं बल्कि विषाणुओं का इस्तेमाल कर रहा है, दुनिया को मिसाइलों का डर नहीं दिखा रहा, बल्कि मनोवैज्ञानिक दबाव का इस्तेमाल कर रहा है. और हो सकता है कि देर सवेर चीन को इसके लिए खून भी बहाना पड़े तो वो पीछे नहीं हटेगा क्योंकि इतिहास गवाह है कि चीन का इरादा हमेशा सिर्फ युद्ध जीतना होता है. चाहे उसे इसके लिए साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल ही क्यों ना करना पड़े.
कोरोना का सबसे ज्यादा असर G-7 देशों पर पड़ा है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, जापान और जर्मनी शामिल हैं. ये वो देश हैं जिनके पास दुनिया की GDP का 46 प्रतिशत हिस्सा है और दुनिया की 58 प्रतिशत संपत्ति भी इन्हीं देशों के पास है. कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा मौतें भी इन्हीं देशों में हो रही हैं और Lockdown की वजह से इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को ही सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है. अमेरिका में तो बेरोजगारी दर 25 प्रतिशत के आसपास पहुंच चुकी है जिसके इस वर्ष के अंत तक तीस प्रतिशत हो जाने की आशंका है. ब्रिटेन में प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले 27 प्रतिशत लोग बेरोजगार हो चुके हैं. फ्रांस भी वर्ष 2008 के बाद सबसे बड़ी मंदी के दौर में पहुंच चुका है. विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना और Lockdown के असर से इटली की अर्थव्यवस्था का साइज इस वर्ष के अंत तक 9 प्रतिशत घट जाएगा. जापान, जर्मनी और कनाडा की अर्थव्यवस्था भी मंदी के दौर में पहुंच चुकी है.