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Tuesday, May 19, 2020

प्रधानमंत्री के गांव से आ रहा हूं.. दो माह से नमक रोटी भी नही हुई नसीब: प्रवासी मजदूर

रीवा. कोरोना प्रोटोकाल, लंबा सफर, भूख- प्यास से बेहाल, चेहरे पर मायूषी, घर पहुंचने की बेचैनी गोलू को परेशान कर रही थी। शहर के रहतरा बायपास हाइवे पर स्थित टोल नाका पर गाड़ी खड़ी होते ही गला तर करने के लिए पानी मांगने ल गा। कहां से आ रहे हो के सवाल पर गोलू भडक़ गया। गुस्से में बोला गुजरात से आ रहा हूं। दोबारा पूछने पर बौखलाकर गोलू ने जवाब दिया कि प्रधानमंत्री के गांव से आ रहा हूं। दो माह से भोजन नहीं मिल रहा है। और कुछ...!
गुजरात से 300 किमी पैदल चले:- 
रविवार की शाम 5.20 बजे रतहरा बायापस के टोल नाका पर मालवाक में ठूस-ठूसकर 25 प्रवासी भरे थे। मालवाहक के पिछले हिस्से में बिहार का गोलू कई साथियों के साथ पल्ले पर पैर नीचे की ओर लटकाकर बैठा था। गोलू ने बातचीत के दौरान कहा, गुजरात से आ रहा हूं। लॉकडाउन में एक सप्ताह से ही भूख, प्यास से तड़प रहा हूं। दस दिन पहले बीस साथियों के साथ 300 किमी पैदल चले। पैरों में छाले पड़ गए। एक जून नमक रोटी, दो माह हो गए चबैना भी नसीबन नहीं हुआ। रास्ते में मालवाहक गाड़ी मिली।
गुजरात से बिहार 1782 किमी का है सफर:- 
गुजरात से बिहार 1782 किमी है। पांच दिन से सफर कर रहा हूं फिर भी अभी बिहार नहीं पहुंचे। जबकि निजी वाहन से 34 घंटे का ही सफर है। 120 घंटे बीत गए, अभी बनारस भी नहीं पहुंचे। बिहार पहुंचने में यहां से 521 किमी सफर बाकी है। सरकार सुविधाएं देना तो दूर, रास्ता भटका रहीं हैं। दो दिन तक हाइवे के इधर-उधर, गांव-गांव के रास्ते होकर जैसे-तैसे रीवा तक आ गया हूं। रास्ते में दो जगहों पर खिचड़ी मिली। उसमें भी नमक ज्यादा। होटल नहीं खुले हैं।
टोल नाका पर खाने-पीने वाली सामग्री:- 
टोल नाका पर खाने-पीने वाली सामग्री बेचने के लिए आ जाते हैं। जेब में पैसे नहीं हैं। कंपनी बंद होने के बाद सप्ताहभर भोजन दिया। इसके बाद से भूखे हैं। ये कहानी अकेले मालवाहक पर सवार प्रवासियों की नहीं बल्कि हाइवे पर ट्रक, बाइक, साइकिल, पैदल, मालवाहक, ऑटो टैक्सी आदि वाहनों पर सवार होकर घर जा रहे प्रवासियों के चेहरे पर लचारी, बेबसी साफ झलक रही।
अंकल प्रयागराज कितनी दूर है:-
रतहरा टोल नाका पर ऑटो टैक्सी में सवार दस साल की रिया टोल नाका के कर्मचारी से पूछा अंकल प्रयागराज कितनी दूर है। जवाब दिया अभी 150 किमी। टेक्सी चला रहे प्रयागराज के फूलपुर निवासी अजय चतुर्वेदी कहते हैं के मुंबई में परिवार के साथ रहते हैं। वहां पर टैक्सी चलाकर जीवन यापन करते थे। रिश्तेदारों को मिलाकर दर्जनभर लोग रहते हैं। सभी लोग अलग-अलग काम करते हैं। लॉकडाउन में फंस गए। मुंबई में कोरोना का कहर ज्यादा है। इस लिए परिवार के साथ घर जा राह हूं। छह दिन पहले चले थे, रास्ता इधर, उधर भटका दिया, नहीं तो पांच दिन में प्रयागराज पहुंच जाते। अब 150 किमी बचा है। आधी रात को पहुचं जाएंगे।
बीस रुपए किलो ले लो खीरा:-
टोलनाका पर वाहनों की लंबी कतार के बीच ट्रकों पर सवार प्रवासियों के पीछे-पीछे बच्चे, युवा, बुजुर्ग व महिलाएं खीरा, पानी पाउच, समोसा आदि सामग्रिया लेकर दौड़ पड़ते हैं। जैसे ही वाहन टोल नाका पर खड़ा होता कि सामग्री बेचने के लिए हाथ उठाकर जद्दो-जहद करने लगते हैं। बीस रुपए किलो खीरा, दस रुपए में समोसा, बीस से तीस रुपए बाटल पानी की बिक्री की जा रही है।