भोपाल. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के लिए उपचुनाव (Bye-election) का रण किसी अग्नीपथ से कम नहीं है. मध्य प्रदेश में आने वाले समय में वैसे तो 24 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, लेकिन इनमें से 22 सीटें वे हैं जहां से सिंधिया समर्थक विधायकों ने इस्तीफे दिए थे और बाद में बीजेपी (BJP) में शामिल हो गए. इनमें से अकेले 16 सीटें ग्वालियर चंबल संभाग की हैं. अब इन सीटों पर जीत दर्ज करना सिंधिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि उपचुनाव की जीत ही सिंधिया के दबदबे और बीजेपी में उनकी जगह को मजबूत करेगा. इन सबके बीच कोरोना आपदा ने समीकरण पूरी तरह से बदल दिए हैं. दो महीने का वक्त उपचुनाव के लिए बिना प्रचार के निकल चुका है. मंत्रिमंडल विस्तार भी अब तक नहीं हो पाया है. ऐसे में यह सवाल भी खड़े होने लगे हैं कि कहीं सिंधिया समर्थकों के सब्र का बांध टूट तो नहीं रहा है. सियासत के जानकार अब यह कह रहे हैं कि उपचुनाव सिंधिया के लिए सबसे बड़ा अग्निपथ है.
सिंधिया समर्थकों की भोपाल दौड़:-
उपचुनाव की लड़ाई से पहले सिंधिया समर्थकों का भोपाल दौड़ का सिलसिला जारी है. वह भी तब जबकि सिंधिया यहां मौजूद नहीं हैं. उपचुनाव के दावेदार लगभग सभी सिंधिया समर्थकों ने पिछले दिनों बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री सुहास भगत और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अलग-अलग चर्चा की है. सभी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिर उपचुनाव में बीजेपी अपने संभावित बागियों को कैसे संभालेगी? क्योंकि अगर सभी सिंधिया समर्थकों को बीजेपी से टिकट मिला तो क्या जिन बीजेपी नेताओं के खिलाफ उन्होंने पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था वह मैदान छोड़कर जाएंगे ?
अपनों के साथ बीजेपी के बागियों को साधना:-
सिंधिया के सामने अब दोहरी चुनौती है. पहले तो उन्हें अपने सभी समर्थकों को साध कर रखना है और उपचुनाव की रणनीति तैयार करनी है. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के उन संभावित बागियों को भी साधने की चुनौती होगी जो चुनाव में सिंधिया समर्थकों का खेल खराब कर सकते हैं. ऐसे में सिंधिया के सामने एक और बड़ा अग्निपथ यह भी है कि वह अपने समर्थकों की उपचुनाव में राह को कैसे आसान बनाएंगे क्योंकि अकेले ग्वालियर की 16 सीटों पर बीजेपी के कई दिग्गजों ने सिंधिया समर्थकों से पिछले विधानसभा चुनाव में हार का स्वाद चखा था.