दिल्ली। मिजोरम, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित छत्तीसगढ़ में हुये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा हो गई है। इसमें कांग्रेस को जहां मिजोरम में अपनी 10 वर्ष पुरानी सरकार से हाथ धोना पड़ा तो तेलंगाना में भी जनता उसे नकार दिया। मगर भारतीय जनता पार्टी शासित मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जो सफलता हाथ लगी वो बाकई कांग्रेस के लिये राजनीतिक दृष्टींकोण से बड़ी सफलता है जिसके दूरगामी परिणाम अवस्यंभावी हैं। मप्र. और छत्तीसगढ़ में भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार थीं जबकि राजस्थान गत 2013 में के में मिली थी तब इसका श्रेय पार्टी ने और तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, डा. रमन सिंह और बंसुधरा राजे ने पार्टी के सन् 2014 के प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन गये नरेन्द्र मोदी को दिया था। सच कहा जाये तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उदय इन्ही तीन प्रदेशों को जीत लेने के बाद से ही शुरु हुआ था। मगर अब ऐसा लगता नहीं है कि भविष्य में भी प्रधानमंत्री मोदी उदयीमान बने रहेंगे? क्योंकि अब 2018 में भाजपा इन तीनों ही प्रदेशों में हार की गति को प्राप्त गई है और करीब पांच साल से निर्विघ्न रुप से देश में विचरण कर रहे अश्व मेघ घोड़ों की नकेल हार के परिणामों ने कस दी है। इन पांच राज्यों की सीरीज में जहां कांग्रेस ने 3/2 से सीरीज अपने नाम कर ली वहीं प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी प्रमुख अमित शाह की जोड़ी 0 पर ही मैच से ही बाहर हो गई और उसे विपक्ष में ही बैठने पर संतोष करना पड़ा। ऐसे में ठीक पांच साल पहले इन हिंदी भाषी तीन राज्यों में “कांग्रेस मुक्त भारत ” का उदघोष करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके जोड़ीदार अमित शाह को अपने इस महत्वाकांक्षी सपने को अन्य बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना की तरह मुआत्तिल कर देना चाहिए। क्योंकि अब ये फिलहाल निकट भविष्य में संभव होता दिखाई नहीं दे रहा है। बकौल प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक चुनाव सभाओं में कि ‘कांग्रेस अब मात्र पीपीएम (पंजाब, पांडूचैरी और मिजोरम) पार्टी होकर रह गई है। क्योंकि यह ठीक है कि मिजोरम कांग्रेस के हाथों से फिसल गया है मगर पंजाब और पांडूचैरी के साथ-साथ अब कर्नाटक, मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी राज्य जो भाजपा की जमीनी आधार हैं भी कांग्रेस से जुड़ गए हैं जिन्हें फिलहाल चार-पांच वर्ष तक कोई खतरा नहीं है। ये सच है कि राज्यों में हुई इस हार के लिए पार्टी का कोई भी नेता प्रधानमंत्री और अमित शाह की जोड़ी को जिम्बेदार नहीं ठहरायेगा?क्योंकि यहां भी कांग्रेसी संस्कृति स्थापित हो गई है कि यदि किसी नगर निगम या विधानसभा का चुनाव जब कांग्रेस जीत जाती थी तो वो जीत सोनिया गांधी के सफल नेतृत्व की जीत मानी जाती थी और हार सिर्फ और सिर्फ स्थानीय या प्रादेशिक नेतृत्व की होती थी। इस लिये पार्टी और पार्टी के कद्दावर नेताओं के स्वर बुलंद हो गये हैं कि हार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, डा. रमन सिंह और बंसुधरा राजे की नैतिक जिम्बेदारी है और तीनों पूर्व मुख्यमंत्री ने इसे ठीक कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की स्वीकार भी कर लिया है। सच यह भी है कि लगभग तीन दर्जन सभा प्रधानमंत्री द्वारा किये जाने के बावजूद पहली दफा प्रधानमंत्री केवल टीवी चैनल और अखबारों तक ही सीमित रहे, वे आम उन मानस की चर्चा का विषय तो कतई नहीं हुये। ऐसा ही हाल भाजपा सुप्रीमों अमित शाह का भी हुआ लेकिन स्टार प्रचारक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरुर अखबार और चैनलों के बाहर लोगों की चर्चा के जरुर केन्द्र रहे।मगर वे भी किसी जनहित या जनता को कल्याणकारी वीजन बताने के लिए नहीं बल्कि अपने बेतूके बयानों के लिए। हनमान जी दलित आदिवासी थे और जो अली के साथ है वो कांग्रेस को वोट दे और जो बजरंग वली के साथ है वो भाजपा के साथ आये। भाजपा को अब अपने बेतूके बयानों से बाहर आना चाहिए और जनता को परेशानियों से निजात दिलाने के लिए ठोस काम करना चाहिये जब ही ‘कांग्रेस मुक्त भारत का सपना शायद सच हो जाये?इधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस हार से कोई बहुत ज्यादा उत्साहित न होकर जनता के निर्णय को समझें, परखें और उसके हित में चलें। इसके साथ ही गांधी के पास जनता का विश्वास जीतने का सुनहरा अवसर है कि जनता से किये अपने वादों को दिये गये समय में पूरा करें क्योंकि जनमत उनके लिए जिम्बेदारियों का बड़ा बोझ है।