दिल्ली। साल 2018 खत्म हो चुका है और 2019 शुरू हो गया है. साल के शुरू होते ही लोग कई बड़े प्रण लेते हैं जिससे उनकी जिंदगी बेहतर हो सके. और बेहतर जिंदगी जीने का सपना हर आदमी देखता है, लेकिन कम लोग ही उसे पूरा कर पाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह फाइनेंशियल प्लानिंग की कमी है. अधिकांश लोग भविष्य की फिक्र किए बगैर पूरे पैसे खर्च कर डालते हैं. इससे आखिर में उन्हें भारी निराशा का सामना करना पड़ता है. नियंत्रित खर्च, पर्याप्त बचत और सही निवेश से ही अच्छे भविष्य की ठोस बुनियाद रखी जा सकती है. आज हम आपको ऐसे कुछ उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको नए साल में अमीर बना सकते हैं..
साल 2018 खत्म हो चुका है और 2019 शुरू हो गया है. साल के शुरू होते ही लोग कई बड़े प्रण लेते हैं जिससे उनकी जिंदगी बेहतर हो सके. और बेहतर जिंदगी जीने का सपना हर आदमी देखता है, लेकिन कम लोग ही उसे पूरा कर पाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह फाइनेंशियल प्लानिंग की कमी है. अधिकांश लोग भविष्य की फिक्र किए बगैर पूरे पैसे खर्च कर डालते हैं. इससे आखिर में उन्हें भारी निराशा का सामना करना पड़ता है. नियंत्रित खर्च, पर्याप्त बचत और सही निवेश से ही अच्छे भविष्य की ठोस बुनियाद रखी जा सकती है. आज हम आपको ऐसे कुछ उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको नए साल में अमीर बना सकते हैं..
आय का 10 फीसदी बचत जरूरी-
अपने खर्च को हमेशा इस तरह मैनेज करना चाहिए, ताकि कुल कमाई की कम से कम 10 फीसदी रकम बचाई जा सके. अगर करियर के शुरुआती दिनों से ही प्लानिंग, बचत और सही जगह पर निवेश की आदत लग जाए तो सफर आसान हो जाता है. धीरे-धीरे बचत का अनुपात अपनी आय के 50 फीसदी तक ले जाना चाहिए.
आय का 10 फीसदी बचत जरूरी-
अपने खर्च को हमेशा इस तरह मैनेज करना चाहिए, ताकि कुल कमाई की कम से कम 10 फीसदी रकम बचाई जा सके. अगर करियर के शुरुआती दिनों से ही प्लानिंग, बचत और सही जगह पर निवेश की आदत लग जाए तो सफर आसान हो जाता है. धीरे-धीरे बचत का अनुपात अपनी आय के 50 फीसदी तक ले जाना चाहिए.
खर्च पर नियंत्रण-
सेविंग के लिए खर्च पर नियंत्रण जरूरी है. इसे वैज्ञानिक तरीके से देखना चाहिए. सबसे पहले बुनियादी जरूरतों और इच्छाओं में फर्क करना जरूरी है. इसके साथ ही खर्चों में प्राथमिकता और उनके लिए जरूरी रकम तय करें. इसके लिए खर्चों को मोटे तौर पर चार हिस्सों में बांटा जा सकता है.
खर्च पर नियंत्रण-
सेविंग के लिए खर्च पर नियंत्रण जरूरी है. इसे वैज्ञानिक तरीके से देखना चाहिए. सबसे पहले बुनियादी जरूरतों और इच्छाओं में फर्क करना जरूरी है. इसके साथ ही खर्चों में प्राथमिकता और उनके लिए जरूरी रकम तय करें. इसके लिए खर्चों को मोटे तौर पर चार हिस्सों में बांटा जा सकता है.
रोज होने वाले जरूरी खर्च में कटौती-
राशन, किराया, लोन की किश्त, शिक्षा, बिजली बिल, टेलीफोन और इंश्योरेंस के प्रीमियम आदि ऐसे खर्च हैं, जिनसे अधिक समझौता नहीं किया जा सकता है. हालांकि स्मार्टनेस दिखाकर इन्हें अच्छे से पूरा करके भी पैसा बचाया जा सकता है. करियर की शुरुआत में आय का करीब 70 से 80 फीसदी तक खर्च इन्हीं पर होता है. लेकिन जैसे-जैसे महंगाई दर की तुलना में आय बढ़ती है, वैसे-वैसे कुल आय की तुलना में खर्च का अनुपात घटता चला जाता है.
कभी-कभार होने वाले जरूरी खर्च में कटौती-
इस श्रेणी में वे खर्च आते हैं, जो कभी-कभार होते हैं. इनमें यात्रा, शादी या अन्य पारिवारिक आयोजन, चिकित्सा खर्च, कपड़े और जूते और अन्य सामाजिक जिम्मेदारियां शामिल हैं. इन्हें टालना तो कठिन होता है, लेकिन स्मार्टनेस का फंडा यहां भी लागू होता है. यानी सही प्लानिंग से आप यहां भी कुछ पैसे बचा सकते हैं यानी 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.' अगर इन ज़रूरतों पर अधिक खर्च करेंगे तो आपको अपने निवेश या अन्य कीमती चीजों को बेचना पड़ेगा या फिर किसी तरह का लोन लेना पड़ सकता है.
कभी-कभार होने वाले जरूरी खर्च में कटौती: इस श्रेणी में वे खर्च आते हैं, जो कभी-कभार होते हैं. इनमें यात्रा, शादी या अन्य पारिवारिक आयोजन, चिकित्सा खर्च, कपड़े और जूते और अन्य सामाजिक जिम्मेदारियां शामिल हैं. इन्हें टालना तो कठिन होता है, लेकिन स्मार्टनेस का फंडा यहां भी लागू होता है. यानी सही प्लानिंग से आप यहां भी कुछ पैसे बचा सकते हैं यानी 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.' अगर इन ज़रूरतों पर अधिक खर्च करेंगे तो आपको अपने निवेश या अन्य कीमती चीजों को बेचना पड़ेगा या फिर किसी तरह का लोन लेना पड़ सकता है.
टाले जा सकने वाले कुछ खर्च-
कई नियमित खर्च भी अनिवार्य किस्म के नहीं होते. इस तरह के खर्चों पर जितना अधिक नियंत्रण रखा जाए, वेल्थ क्रिएशन के लिए वह उतना ही बेहतर है. इन खर्चों में मल्टीप्लेक्स जाना, रेस्टोरेंट्स में खाना, डिजाइनर कपड़े पहनना आदि शामिल हैं. मूवी देखने के मामले में वीक डेज में मॉर्निंग शो को प्राथमिकता देना, रेस्टोरेंट्स के मामले में ऑफर्स का उपयोग करके भी बचत की जा सकती है.
टाले जा सकने वाले कुछ खर्च-
कई नियमित खर्च भी अनिवार्य किस्म के नहीं होते. इस तरह के खर्चों पर जितना अधिक नियंत्रण रखा जाए, वेल्थ क्रिएशन के लिए वह उतना ही बेहतर है. इन खर्चों में मल्टीप्लेक्स जाना, रेस्टोरेंट्स में खाना, डिजाइनर कपड़े पहनना आदि शामिल हैं. मूवी देखने के मामले में वीक डेज में मॉर्निंग शो को प्राथमिकता देना, रेस्टोरेंट्स के मामले में ऑफर्स का उपयोग करके भी बचत की जा सकती है.
स्टेटस सिंबल वाले खर्च-
कुछ खर्च सिर्फ स्टेटस सिंबल के लिए किए जाते हैं. इनमें कटौती करना बेहद आसान है. अपनी आय के अनुसार उपयोगिता का ख्याल रखना चाहिए, यानी जहां ज़रूरी हो, सिर्फ वहीं खर्च करें. इससे काफी पैसे बचाए जा सकते हैं. इन खर्चों में महंगे गैजेट्स, लग्जरी कार, ब्रांडेड कपड़े, फुटवेयर्स, महंगे गिफ्ट, स्पा, पार्लर आदि हो सकते हैं.
स्टेटस सिंबल वाले खर्च-
कुछ खर्च सिर्फ स्टेटस सिंबल के लिए किए जाते हैं. इनमें कटौती करना बेहद आसान है. अपनी आय के अनुसार उपयोगिता का ख्याल रखना चाहिए, यानी जहां ज़रूरी हो, सिर्फ वहीं खर्च करें. इससे काफी पैसे बचाए जा सकते हैं. इन खर्चों में महंगे गैजेट्स, लग्जरी कार, ब्रांडेड कपड़े, फुटवेयर्स, महंगे गिफ्ट, स्पा, पार्लर आदि हो सकते हैं.
आय-व्यय का अनुपात-
आदर्श तौर पर आय का एक तिहाई हिस्सा सामान्य खर्च पर, एक तिहाई हिस्सा लोन चुकाने, बचत और निवेश में इस्तेमाल होना चाहिए और शेष एक तिहाई हिस्सा खास परिस्थितियों के लिए रखा जाना चाहिए. तीसरे हिस्से में से जहां तक संभव हो, उसे बचत और निवेश में इस्तेमाल करना चाहिए.
आय-व्यय का अनुपात-
आदर्श तौर पर आय का एक तिहाई हिस्सा सामान्य खर्च पर, एक तिहाई हिस्सा लोन चुकाने, बचत और निवेश में इस्तेमाल होना चाहिए और शेष एक तिहाई हिस्सा खास परिस्थितियों के लिए रखा जाना चाहिए. तीसरे हिस्से में से जहां तक संभव हो, उसे बचत और निवेश में इस्तेमाल करना चाहिए.