दिल्ली। पुलवामा में हुए आतंकी हमले में हमारे कई सैनिकों ने अपने प्राण दे दिए। वे सड़क पर चलती बस में किए गए धमाके में मार दिए गए। कुछ ऐसी ही स्थिति आज से करीब 77 वर्ष पहले 1942 में भी बनी थी। वह समय भारत की स्वतंत्रता के लिए चल रहे आंदोलन का था और आजाद हिंद फौज के सैनिकों के साथ ठीक वैसा ही हादसा होने वाला था, जैसा कि पुलवामा में सैनिकों के साथ हुआ।
अभी आतंकी ने हमला किया, जबकि उस समय अंग्रेजों के टैंक हमला करने वाले थे। किंतु न जाने कैसे नेताजी सुभाषचंद्र बोस को कुछ देर के लिए झपकी लगी और उन्हें कोई सपना आया। सपने में उन्होंने देखा कि कुछ दूर आगे अंग्रेजों के टैंक मिलेंगे और वे हमला कर देंगे।
इसके बाद नेताजी ने तुरंत अपने मोटरसाइकिल दस्ते को भेजा और 'जांबाज' नामक टुकड़ी के सैनिकों को रास्ता बदलने को कहा। टीम ने रास्ता बदला और अंततः वे बच गए।
किस्सा सन् 1942 के उस दौर का है, जब नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के जवानों और रानी झांसी रेजिमेंट की लड़ाका बहनों के काफिले के साथ रंगून से बैंकॉक की ओर घने जंगल में से गुजर रहे थे। नेताजी ने सुरक्षात्मक दृष्टि से करीब 100 सैनिकों की टुकड़ी को आगे भेज दिया था, जो रात के घने अंधकार में जंगल में रास्ता खोजती जा रही थी। यह दस्ता सड़क किनारे-किनारे पैदल चल रहा था और पीछे के साथियों को रास्ता साफ होने का संकेत दे रहा था।
रात जब आधी हुई तो काफिला कुछ देर विश्राम के लिए रुका। चूंकि नेताजी दो दिन से सोए नहीं थे, इसलिए उन्होंने आधे घंटे की छोटी नींद ली। इसी नींद में उन्हें सपना आया। वे तुरंत जागे और आगे जा रही अपनी टुकड़ी को रास्ता बदलने की सूचना पहुंचाई। टुकड़ी ने रास्ता बदला और जंगल में छुपी अंग्रेजी सेना व अंग्रेजों के टैंक वहां आ गए। यदि वे तुरंत रास्ता न बदलते तो सबके सब मारे जाते।