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Wednesday, March 6, 2019

दुष्कर्म-हत्या के मामले में फांसी की सजा पाए छह दोषी सुप्रीम कोर्ट से बरी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पांच लोगों की हत्या और एक महिला तथा उसकी बेटी के बलात्कार के मामले में मौत की सजा पाए छह दोषियों को मंगलवार को बरी करते हुए कहा कि जेल में बंद व्यक्तियों को गलत तरीके से फंसाया गया था। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में अपने दस साल पुराने फैसले की समीक्षा करते हुए यह बात कही।
सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की पुलिस की जांच पर असंतोष जताते हुए महाराष्ट्र सरकार को उन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए जिनकी ''कमियों'' की वजह से असली दोषी आजाद घूम रहे हैं। जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अपने फैसले में राज्य सरकार को छह आरोपियों में से प्रत्येक को पांच लाख रुपये देने के निर्देश दिए। ये साल 2003 से जेल में बंद हैं।
पीठ ने सत्र अदालत से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि यह धनराशि इनके पुनर्वास में इस्तेमाल की जाए। यह मामला जून, 2003 का है। अंकुश मारुति शिंदे, राज्य अप्पा शिंदे, अंबादास लक्ष्मण शिंदे, राजू महासू शिंदे, बापू अप्पा शिंदे और सूर्या उर्फ सुरेश पर पांच लोगों की हत्या करने और एक महिला (जो जीवित है) और उसकी 15 वर्षीय बेटी (जिसकी मौत हो गई) का बलात्कार करने का आरोप था।
पांच हत्याओं के दो दोषी भी बरी पीठ ने एक अन्य मामले में साल 2012 में लूट और एक ही परिवार की पांच महिलाओं की हत्या करने के जुर्म में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से फांसी की सजा पाने वाले दो दोषियों को भी मंगलवार को बरी कर दिया।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के अप्रैल 2015 के आदेश को चुनौती देने वाली दिगंबर वैष्णव और गिरधारी वैष्णव की अपीलों पर सुनवाई की। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई मौत की सजा बरकरार रखी थी। पीठ ने कहा कि मामले के रिकॉर्ड के साथ-साथ पेश किए गए सबूतों पर गौर करने से यह साबित करना मुश्किल है कि दोनों ने अपराध को अंजाम दिया था। अदालत ने कहा कि नाबालिग गवाह की गवाही से यह साफ है कि वह मामले की प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी।
छह लोगों की हत्या के दोषी की सजा बरकरार जस्टिस सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2012 में दो नाबालिगों समेत एक ही परिवार के छह सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति को मिली मौत की सजा की पुष्टि करते हुए मंगलवार को कहा कि उसने ''अत्यधिक क्रूरता'' के साथ अपराध को अंजाम दिया जिसने समाज की ''सामूहिक चेतना'' को हिला दिया।
पीठ ने खुशविंदर सिंह की अपील को खारिज कर दिया जिसने एक निचली अदालत द्वारा उसे मौत की सजा बरकरार रखने वाले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2013 के फैसले को चुनौती दी थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार सिंह ने पीड़ितों के घर में रखे 37 लाख रुपये और गहने चुराने के लिए अपराध को अंजाम दिया था। उसके घर से 36.70 लाख रुपये बरामद किए गए थे। पुलिस ने बताया कि उसने परिवार के सभी सात सदस्यों को मारने की कोशिश की थी लेकिन उनमें से एक बच गया और उसने शिकायत दर्ज कराई।