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Tuesday, September 17, 2019

10 साल तक एक ही कंपनी को टेंडर, अरबों के इस घोटाले में MP के बिजली अफसरों पर कसा शिकंजा

जबलपुर. मध्य प्रदेश पॉवर जनरेशन कंपनी में 2004 से कोयले की लाइज़निंग के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे हुए और किसी को इसकी खबर भी नहीं हुई. 10 साल तक एक ही कंपनी को 19 बार कोयले की लाइज़निंग के नाम पर टेंडर जारी किए गए. हर बार टेंडर की प्रक्रिया में 3 कंपनियां भाग लेती रहीं, लेकिन ठेका हर बार एक ही कंपनी को गया. भारतीय प्रतिस्पर्धा जांच आयोग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा बताता है कि बोली की हेराफेरी कर बिडिंग कंपनियों (Bidding companies) ने सरकार को अरबों की चपत लगाई लेकिन बिजली महकमे के अधिकारियों ने इस पर कभी आपत्ति नहीं जताई.
10 साल तक एक ही कंपनी को टेंडर:-
इस साल 26 हज़ार मिलियन यूनिट बिजली बनाने वाली एमपी पॉवर मैनेजमेंट कंपनी प्रदेशवासियों को 24 घंटे बिजली देने के सरकार के दावे को मुकम्मल करने की दिशा में काम कर रही है. इस साल 206 लाख यानी 2 करोड़ 6 लाख मिट्रिक टन कोयले के दम पर कंपनी ने इस मुकाम को हासिल किया है. जो कोयला प्रदेश को अर्से से पॉवर दे रहा है, उसी कोयले के नाम पर कई अरबों की काली कमाई कर पैसे भी बनाए गए:-
जांच रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों ने आपसी सहमति के आधार पर बिड प्राइस कम ज्यादा किए
प्रतिस्पर्धा जांच आयोग की रिपोर्ट में खुलासा:-
भारतीय प्रतिस्पर्धा जांच आयोग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में एक ही कंपनी ने लगने वाली बोली में हेराफेरी कर 10 साल में 19 बार कोयले के लाइज़निंग टेंडर हासिल किए. आयोग की जांच के मुताबिक, नायर कोल सर्विसेस लिमिटेड को 2004 से 2014 तक 19 बार कोयले की लाइज़निंग के टेंडर मिले और हर बार सबसे कम बिड नायर कोल सर्विसेस लिमिटेड (NCSL) को ही मिली. जांच रिपोर्ट में इस बात की प्रबल संभावना जताई गई कि कोल सप्लाई स्कैम के इस खेल में बिजली महकमे के अधिकारी भी शामिल रहे होंगे.
हर बार यही कंपनियां बिड में भाग लेती रहीं लेकिन ठेका नायर कंपनी को ही मिला.
कोल सप्लाई स्कैम के इस खेल में  शामिल कंपनियां 
- मेसर्स नायर कोल सर्विसेस लिमिटेड
- मेसर्स करम चंद थापर एंड ब्रदर्स
- मेसर्स नरेश कुमार एण्ड कंपनी प्राईवेट लिमिटेड
- मेसर्स अग्रवाल एण्ड एसोसिएट्स
> हर बार यही कंपनियां बिड में भाग लेती रहीं लेकिन ठेका नायर कंपनी को ही मिला.
> भारतीय प्रतिस्पर्धा जांच आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों के बीच कुछ ई मेल भी मिले जो इस बात को बताते हैं कि कंपनियों ने आपसी सहमति के आधार पर बिड प्राइस कम और ज्यादा किए.
> आंकड़ों के मुताबिक साल 2002-2003 में एक करोड़ 15 लाख 685 मिट्रिक टन कोयला पॉवर जनरेटिंग कंपनी को सप्लाई हुआ, जबकि 2009- 2010 में ये आंकड़ा बढ़कर 1 करोड़ 21 लाख 67 हज़ार मिट्रिक टन हो गया. फिलहाल 2 करोड़ मिट्रिक टन से ज्यादा कोयले की डिमांड  को पूरा किया गया है.
महकमे के अफसरों की मिलीभगत:-
भाजपा शासन में हुए इस पूरे घोटाला मामले में पूर्व कैबिनेट मंत्री अजय बिश्नोई इस बात को कह रहे हैं कि इसमे किसी सरकार का कोई दोष नहीं है. इस तकनीकी बात को पकड़ना किसी मंत्री के बस का नहीं है. बिजली महकमे के अधिकारी मिल जुलकर इस खेल को खेलते रहे. भारतीय प्रतिस्पर्धा जांच आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक कोयले की लाइज़निंग के लिए ये कंपनियां पूरे देश में यही काम कर रही हैं.