ग्वालियर. क्या ग्वालियर के महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया अब अपने लिए नई राजनीतिक जमीन तलाश रहे है? ये सवाल अंदरूनी सियासी हलकों में चल रहा है. दरअसल, 1998 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ग्वालियर लोकसभा सीट से जयभान सिंह पवैया से हारते-हारते बचे थे. कहते हैं कि माधवराव ने इस जीत को भी अपनी शिकस्त माना था. इसके बाद उन्होंने ग्वालियर से कभी न लड़ने की ठान ली और गुना चले गए. 1998 से बड़ी शिकस्त अब ज्योतिरादित्य को गुना में मिली है, तो क्या इस बार माधवराव के बेटे गुना से चुनाव न लड़ने का मन बना चुके हैं. जबकि सिंधिया की ग्वालियर में लगातार सक्रियता देखकर तो यही लगता है.
सिंधिया को मिली करारी शिकस्त:-
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में सिंधिया राजपरिवार के ज्योतिरादित्य को गुना सीट से करारी शिकस्त मिली. इस हार ने सिंधिया परिवार ही नहीं बल्कि कांग्रेस को भी हिलाकर रख दिया था. गुना में करारी हार मिलने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक जमीन बदल सकते हैं. सियासी हलकों में ये खबर उठ रही है कि वह ग्वालियर में चुनावी जमीन तलाश रहे हैं. सवा लाख वोट की हार के बाद सिंधिया शायद ही गुना से चुनाव लड़ें.
ग्वालियर में राह होगी आसान
>> 2002 से 2019 तक सिंधिया ने गुना से 5 चुनाव लड़े, चार जीते एक में हार मिली.
>>गुना से करारी शिकस्त के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे सुरक्षित सीट पर दांव लगाएंगे.
>> ग्वालियर लोकसभा में सिंधिया का वर्चस्व है. जबकि इस बार नरेंद्र सिंह तोमर ने भी ग्वालियर छोड़ दिया है.
>>मराठी और शहरी वोटरों में महल और सिंधिया के प्रति सम्मान आज भी कायम है.
>>प्रदुम्न सिंह, इमरती देवी, मुन्ना लाल गोयल जैसे कद्दावर समर्थकों के सहारे ग्वालियर में जीत की जमीन तलाश सकते हैं सिंधिया.
>>कांग्रेस के सबसे बड़े दावेदार अशोक सिंह चार चुनाव लगातार हारे हैं. इसी वजह से सिंधिया के लिए यहां कोई चुनौती नहीं है.
>>1998 में माधवराव जब ग्वालियर में जयभान सिंह से हारते-हारते बचे तो फिर यहां से चुनाव नहीं लड़े.
सिंधिया को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के अपने-अपने दावे:-
बीजेपी का दावा है कि गुना में जनता ने राजशाही को नकार दिया है, जिसके चलते सिंधिया को हार मिली है. आज के राजनीतिक दौर में जनसेवक चाहिए. बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता राजेश सोलंकी का कहना है कि गुना हो या ग्वालियर सिंधिया के सामने बीजेपी हमेशा बड़ी चुनौती देगी. जबकि कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि बीजेपी में सिंधिया का खौफ है यही वजह है सिंधिया के गुना या ग्वालिय़र से चुनाव लड़ने को लेकर बीजेपी चिंतित है. राजनीति में हार-जीत चलती है. 1984 में अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज हार गए थे. कांग्रेस का दावा है कि सिंधिया जहां से भी चुनाव लड़ेंगे जीत दर्ज करेंगे.
चुनाव से पहले बड़े राजनीतिक फैसले भी ले सकते हैं सिंधिया:-
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि 2002 से लेकर 2018 तक चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो गुना में सिंधिया की लोकप्रियता लगातार कम हुई और वह 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार तक पहुंच गई. राजनीतिक जानकार प्रदीप मांडरे का मानना है कि हार के बाद सिंधिया ग्वालियर में चुनाव लड़ने के लिए जमीन मजबूत कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव में साढे चार साल का वक्त है और वह वर्तमान में पीसीसी चीफ की दौड़ में हैं. जबकि पीसीसी चीफ न बनने की सूरत में सिंधिया अपने भविष्य के लिए बड़े राजनीतिक फैसले भी ले सकते हैं. हालांकि इस पद के लिए सिंधिया और उनके समर्थकों ने ताकत झौंक रखी है, तो अगला चुनाव जीतने के लिए सुरक्षित सीट टटोलने का दौर भी चल रहा है.