शिवपुरी (मध्यप्रदेश) "हो सकता है आप सब अपने अपने कामो मे व्यस्त हो और मंदी पर विचार भी नही करना चाहते क्योकी अभी आपकी दाल और प्याज सस्ती है पर
क्या आपको पता है बडे़ बड़े अर्थशास्त्री मंदी होना स्वीकार कर रहे है पर एक परिभाषा मे वास्तविक कारण नही बता पा रहे।"
--- आइए घुमाऊ फिराऊ बातो से इतर जरा बिना आकडो़ के भी वास्तविकता खोज कर देखे क्या है बिस्किट ,चाकलेट और आटोमोबाइल आदी मे मंदी का कारण ???
आम आदमी के लिए यह मंदी अभी बेअसर है पर कबतक तबतक की उसका पेट्रोल 80-85 पार न हो और दाल प्याज 200-300 रूपए किलो न हो, होटल मे फ्री की प्याज प्लेट बंद हो जाए ,सिलेंडर 1000 न पंहुचे जैसा थोडा़ कुछ अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जी की की सरकार में हुआ था यहां तक की महंगी प्याज ने अटल जी तक को चुनाव मे भारी नुकसान दिया था।
पर हमे जान लेना चाहिए यह मंदी भविष्य की असरुक्षा से उपजी है और हमारी बदलती प्राथमिकताओ से जैसे आज से कुछ वर्षो पहले तक बच्चो की खुशी बिस्किट चाकलेट क्रेक्स खाने मे थी पर आज अधिकांश बच्चे मोबाइलो मे इतने खो जाते है की उन्हे कब सुबह से श्याम हो जाती है पता भी नही लगता और वह गेम खेलने मे मिलने वाले कोइंस से ही पेट भर लेते है खाने और खिलोनौ की ख्वाइश वाले बच्चो की प्राथमिकता बदल चुकी है
उसी तरह बडो़ का हाल है एक समय युवाओ मे जूते कपडो़ का क्रेज यह था की परिस्थिति केसी भी हो हर त्योहार 2 जोडी़ से कम कपडो़ मे काम नही बनता था दूसरा मित्र केसे कपडे़ कहा से लाया इसमें बडा़ दिमाग लगाते थे और नए कपडो़ जूतो ,हेयरस्टाइल का फेशन आया वेसे ही चल दिए अपनी हेसियत के बाजार और उसके बाद थोडा़ युवा पहनावे से हटकर भारत मे बढते खानपान में चाउमीन मंचुरियन पर टूटा फिर विदेशी निवेश से आई बर्गर, पिस्जा kfc, पर टूटा मानो यहां खा लिया तो अन्य से थोडा़ खास हो गए पर आज यह भी उतने खास दमखम से नही चल रहा।
उसके बाद आता है सेटल्ड मिडिल क्लास जिनसे भारत की अर्थव्यस्था चलती है मिडिल क्लास आदमी को एक समय ऐसी होड़ लगी की एक घर एक गाडी़ होनी ही चाहिए पर धीरे धीरे यह होड़ खत्म पर आगयी व्यक्ति ने एहसास किया की जीवन की कमाई की किश्ते पुरी घर मे ही लगा देंगे तो बाकि सब केसे होगा वही कार की किश्ते चुकाते हूए एहसास हुआ की कार लेने से सुविधा कम दुविधा ज्यादा है किश्तो पर ब्याज भी दो मंहगी सर्विस , ड्राईवर रखो अलग, साथ ही पार्किंग का झमेला भी और जरा फूट गई तो लेने के देने पड़ जाए उससे बेहतर उसने बस ट्रेन और ओला ऊबर की कार और रेपिडो की बाइक को माना
"यूज एण्ड लीव" इस्तेमाल करो और झंझट खत्म
यकीन मानिए लोगो की तनख्वाह बढी भ्रष्टाचार भी पर लोगो की प्राथमिकता बदल चुकी है अब मनोरंजन की नाव मे सवार है बच्चो से लेकर युवा तक
एक बडे़ वर्ग को 400 ka रिचार्ज करवा कर सीरीज देखने को NETFLIX ,Amazon prime और वीडियो गेम की मेम्बरशिप भरने से लेकर मूवी की 250 रूं की टिकिट लेना है पता है न saaho जैसी मूवी ने दो दिन मे 150 करोड़ कमा लिए बचे समय मे यूटूब पर tvf ,vv ki vines,amit badhana की नयी नयी विडियो उसकी प्राथमिकता है साथ ही घर से वह बाहर निकलना नही चाहता न उसे कुछ खास बाइक चलाने का शोक बचा है न कार का उसे तो pubg मे "winner chicken dinner" का इंतजार है और उसे तो नकली वाली बंदूक से धाए धाए करने मे ही मजा रहा है, न ही बाहर जाकर खाने का शोक रहा है उतना बस अब तो घर बेठे जोमेटो और स्वीगी के आकर्षक आफर मे नए नए नाम वाली डिश घर पर ही मंगवा ली जाती है वेसे भी इनकी डिलिवरी 24 घंटे चालू है ।
न ही इस वर्ग को हजारो करोड़ टर्नोवर वाली बिस्किट के अलावा कर्ज लेकर प्लांट सेटअप कर 50 तरह के समान बेच कर मोटे टर्नोवर के इंतजार मे बैठी पारले जी जैसी कम्पनी के 5 रूपए के बिस्केट की चिंता है ।
आपको याद होगा एक समय flipkart or snapdeal का जलजला यू था की रातो रात चौगुनी तरक्की करता गया पर आज वेसी स्थिति नही है बाजारो की रोनक छीनने वाले आनलाइन बाजार मे खोजबीन करके युवा ऊब गया है
और चलिए इस पर भी विचार करे की भारत मे जब जब नई टेक्नोलोजी आई लोगो ने धडा़धड़ अपनायी जेसे की कुछ समय दम से बाइक सेक्टर चला तो , कभी वाशिंग मशीन ,टी व्ही बिच गई पर इन सब चीजो की एक सीमा है एक दम आई जरूरत की टेक्नोलेजी को व्यक्ति हर साल बार बार तो लेगा नही
मात्र मोबाइल टेक्नोलोजी है जो रोज नए फीचर और नई कीमतो के दम पर लोगो को जेब ढीली करने पर मजबूर कर रही है वेसे भी लोगो मोबाइल से इतना जुड़ गए की उसके बिना जीवन ही अधुरा लगता है
अतीत को नजर अंदाज कर इन विभिन्न सेक्टरो को होल्ड करने वाले भूल गए की
"बाजार मे स्थिरता कभी नही होती " बडा़ लोन लेकर जोश मे नए प्रोजेक्ट प्लांट मे इनवेस्टमेंट तो कर दिया पर जरा बिक्री कम हुई तो सरकार पर ठीकरा फोड़ दिया क्यो भाई सरकार टेक्स भी न ले gst तो अनेक की जगह एक और आसान टेक्स है सरकारे हमेशा छोटे उद्दमीयो को सब्सिडी और लोन के फायदे देती है पर अगर इन हजारो करोड़ के टर्नवारो वालो से भी टेक्स न ले तो केसे चलेगा????
और हां नई टेक्नोलोजी वाली विदेशी कार कम्पनी Kia seltos और mg hector की बुकिंग देखिए जरा 1 -1 दिन मे इतनी बुकिंग हो गयी की उन्हे अपने प्लांट और युनिट बढाने पर विचार करना पड़ रहा है दोनो ने 10 लाख से ऊपर की कीमत मे कारे बाजार मे उतारी है तब यह हाल है
--और इन सबके बाद मुद्दा है बढती जनसंख्या और उसके सर पर सवार होकर आती बेरोजगारी दरअसल भारत मे सरकारी नौकरी की ख्वाहिश रखने वालो में एक बडा़ प्रतिशत उनका भी है जो कुछ सरकारी विभागो मे बढती तनख्वाह ,ऊपरी कमाई और मक्कारी से प्रभावित होकर पलके बिछाए नौकरी का इंतजार कर रहै है सब तो नही पर कई माँ बाप भी यही चाहते है मक्कारो की फौज मे शामिल हो बढिया तनख्वाह मिल जाए
"हींग लगे न फिटकरी रंग भी चौखा आए"
--शिक्षा व्यवस्था अपनी दुर्दशा मे है डि ग्री लेकर फौज तैयार है पर योग्यता के नाम पर ज्यादातर की बत्ती गुल। कोई ने जुगाड़ से डि ग्री ली है तो कोई ने माँ बाप के दबाव में ,कोई जरा इंग्लिश सीख कर ही खुदको ज्ञानी समझ रहा है
अब प्राइवेट वाले योग्यता अनुसार नौकरी देते है डिग्री देखकर नही इसलिए वहा काम करने मे अहंकार आडे़ आ रहा है की कैसे छोटी नौकरी करलें।
--दर असल सर्वाधिक युवा जनसंख्या प्रतिशत वाला यह देश मक्कारी भरे बूढे़ युवाओ का देश भी बन जाएगा यदि 30-35 की उम्र तक भी युवाओ का बडा़ वर्ग घर पर बेठै बेठै netflix और amazon की फ्री वाली मेम्बरशिप की जुगाड़ करता रहेगा और whatsapp पर मेसेज शेयर करता रहेगा की "इस लिंक पर जाकर यह app डाउनलोड कर मुझे भी 50 रूपए मिलेंगे और भाई तुझे भी
और वोटरकार्ड और दो फोटो के आधार पर नौकरी बटने का इंतजार करता रहेगा जेसे बाप दादाओ के समय नौकरी मिल भी जाती थी ।
--जनसंख्या विस्फोट रोकने के लिए कानून तो लाना ही होगा पर कुछ हद तक तो बढती जनसंख्या बुराई भी है पर हल भी है क्योकी बढती जनसंख्या रोजगार को भी जन्म देती है बहुत बडी़ जनसंख्या की जन्म से लेकर मृत्यु तक की जरूरतो के लिए भी तो बडी़ संख्या मे छोटे बडे़ व्यापारी और सर्विस सेक्टर में लोगो की जरूरत होगी न
--जरूरी है की भीड़ बनकर कभी MBA कभी IIt ,NEET,upsc मे भिड़ जाने से पहले अपने अंदर की योग्यता क्षमता और पसंद को पहचाने और युवा पीढी़ भविष्य की संभावनो मे विचार कर खुद को किसी भी मनपसंद क्षेत्र मे निपूर्ण बनाए जरुरत पडे़ तो जरा प्राइवेट नौकरी से घबराए नही और फिर धीरे धीरे कुछ छोटे व्यापार से अपने पैरो पर खडा़ होकर ओर लोगो भी रोजगार देने मे कदम बढाए इन्ही मे से निकलेंगे वह उद्दमी जिनके आइडिया ,इनोवेशनऔर नव उद्दम से हम वैश्विक स्तर पर हमारे निर्यात को बढा सकेंगे क्योकी ज्यादा जनसंख्या में ज्यादा केलिवर और क्षमता वाले युवा भी है पर उन्हे खुद को पहचानना होगा और साबित करना होगा अपने रास्ते खुद बनाने होंगे और देश विश्व मे कभी अर्थव्यवस्था मे कमजोर न पड़ेगा।
लेखक:- अनमोल शिवहरे, शिवपुरी