नई दिल्ली। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC / ST Act) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना पुराना फैसला वापस ले लिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनिर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना करीब डेढ़ साल पुराना फैसला वापस लिया है। इसके बाद यह कानून फिर से काफी सख्त हो गया है।
अब इस कानून के तहत क्या प्रावधान लागू होंगे? क्या था कोर्ट का पुराना फैसला, जिसे वापस लेना पड़ा? अब कोर्ट को अपना फैसला वापस लेकर दोबारा नियम क्यों बदलने पड़े? इन सभी सवालों के जवाब हम आगे बता रहे हैं।
क्या है एससी / एसटी एक्ट:-
यह कानून अनुसूचित जाति व जनजाति (Sc and ST) के लोगों की सुरक्षा के लिए 1989 में बनाया गया था। इसका मकसद है एससी व एसटी वर्ग के लोगों के साथ अन्य वर्गों द्वारा किया जाने वाला भेदभाव, और अत्याचार को रोकना। इस कानून में एससी व एसटी वर्ग के लोगों को भी अन्य वर्गों के समान अधिकार दिलाने के प्रावधान बनाए गए। इन लोगों के साथ होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई। साथ ही एससी-एसटी वर्गों के साथ भेदभाव या अन्याय करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान किया गया।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला:-
20 मार्च 2018... जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी / एसटी एक्ट मामले में बिना जांच के तत्काल एफआईआर और गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने बड़े पैमाने पर इस कानून के गलत इस्तेमाल किए जाने की बात मानी थी। फैसला दिया था कि इस कानून के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। न ही तुरंत एफआईआर की जाएगी। शिकायत मिलने के बाद अधिकतम सात दिनों के अंदर डीएसपी स्तर पर मामले की जांच की जाएगी।
कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया था, ताकि शुरुआती जांच में ये पता चल सके कि किसी को झूठा आरोप लगाकर फंसाया तो नहीं जा रहा।
फिर कोर्ट ने क्यों बदला फैसला:-
2018 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद एससी-एसटी समुदाय के लोगों ने देशभर में बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए। कोर्ट व सरकार का विरोध किया। उनका कहना था कि संसद ने मनमाने ढंग से इस कानून को लागू कराया है। कोर्ट में इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थीं।
अब क्या हो गए हैं नियम:-
कोर्ट द्वारा पुराना फैसला वापस ले लेने के बाद अब फिर से एससी-एसटी कानून के तहत की गई शिकायतों के मामले में बिना जांच तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज हो सकेगी। आरोपी शख्स की तुरंत गिरफ्तारी भी हो सकेगी। यह फैसला सुनाते हुए मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने कहा कि 'एससी-एसटी वर्ग के लोगों को अभी भी देश में भेदभाव और छुआछूत जैसी चीजों का सामना करना पड़ रहा है। अभी भी उनका सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए उनका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।'