भोपाल। राजधानी समेत पूरे प्रदेश में करीब 15 हजार किमी सड़कें बारिश के चलते खराब हुई हैं। इनमें से कुछ सड़कों पर पानी निकासी के इंतजाम नहीं थे इसलिए ये जर्जर हो गई। ऐसी स्थिति को देखते हुए लाेक निर्माण विभाग(पीडब्ल्यूडी) सड़क बनाने में व्हाइट टॉपिंग तकनीक का उपयोग करेगा।
विभाग का दावा है कि इस तकनीक में करीब 20 साल तक सड़कें खराब नहीं हाेंगी और सरकार का हर साल के मेंटेनेंस का खर्चा भी बचेगा। विभाग ने इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इसे सरकार को भेजकर बजट मांगने की तैयारी है। इस बार प्रदेश में बारिश की वजह से ज्यादा सड़कें खराब हुई थी। विभाग भोपाल जैसे ऐसे शहरों को चिह्नित कर रहा है, जहां कि सड़कें पानी की वजह से खराब होती हैं और उसमें गड्ढे हो जाते हैं। लेकिन, यह सड़कें धंसती नहीं हैं। व्हाइट टाॅपिंग का उपयोग ऐसी ही सड़कों पर किया जाना है।
एक किमी पर 33 लाख अधिक खर्च:-
व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बनी सड़क सामान्य डामर रोड की तुलना करीब ढाई गुना महंगी है। अधिकारियों के मुताबिक 7 मीटर चौड़ी एक किलोमीटर टूलेन डामर रोड पर 22 लाख रुपए खर्च आता है। अगर व्हाइट टॉपिंग तकनीक से इसे बनाने पर करीब 55 लाख प्रति एक किमी के हिसाब से बनेगी।
मेंटेनेंस पर नहीं होगा भारी-भरकम खर्च:-
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि व्हाइट टॉपिंग तकनीक के तहत डामर रोड पर बेस मजबूत कर छह इंच कांक्रीट किया जाता है। यह तकनीक दक्षिण भारत के राज्यों सहित कई नेशनल हाइवे पर उपयोग में लाई जा रही है। भोपाल में भी ऐसी सड़कें हैं, जहां हमेशा पानी भरने की समस्या होती है और बार-बार सड़कें खराब हाेती हैं, वहां इसका उपयोग होगा। अन्य शहरों और हाईवे को भी चिह्नित कर इसे प्रयोग में लाएंगे। लेकिन, इसमें शर्त यह है कि सड़कें भार की वजह से धंसे नहीं। यह तकनीक बहुत कारागर है और इसमें केवल एक बार खर्च करने के बाद बार-बार मेंटेंनेस की जरूरत नहीं पड़ेगी। गौरतलब है कि कुछ समय पहले मुख्यमंत्री ने एक बैठक में ऐसे विकल्पों पर काम करने के लिए कहा था, जिन्हें अपनाने से सड़कें लंबे समय तक चलें। साथ ही हर साल सड़कों के मेंटेनेंस पर भारी-भरकम राशि खर्च करने की जरूरत न पड़े।
यह तकनीक भोपाल समेत कई शहरों के लिए मुफीद:-
व्हाइट टॉपिंग तकनीक भाेपाल सहित कई शहरों ऐसे शहरों के लिए मुफीद है जहां हर साल सड़कें खराब होती हैं। इसके लिए विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। राशि आवंटन होने पर इस पर काम करेंगे। इस तकनीक से बनी सड़कें लंबे समय तक चलती हैं। बार-बार मेंटेनेंस पर पैसा खर्च नहीं होता। कई नेशनल हाइवे पर भी इसका उपयोग हुआ है। इसमें सामान्य डामर की सड़क पर छह इंच कांक्रीट रोड तैयार की जाती है।
-आरके महेरा, प्रमुख अभियंता, लोक निर्माण विभाग-