भोपाल. मध्यप्रदेश में कमल नाथ की सरकार बने करीब 11 माह से ज्यादा का वक्त हो गया है। कमल नाथ की सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा तुलसी सिवालट को दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्री खुद प्रदेश में डेंगू और बाकि बीमारियों से बचने के लिए लोगों को सलाह दे रहे हैं। मंत्रीजी इन दिनों जलजमाव की निकासी एवं डेंगू और मलेरिया से बचाव के लिए खुद ब्लीचिंग पाउडर और फोगिंग करते नजर आ रहे हैं। मंत्री जी तो अपने काम से सुर्खियां बटोर रहे हैं पर उनके विभाग में क्या हो रहा है शायद उन्हें उसकी जानकारी नहीं है। मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदतर होती जा रही है और मंत्री जी इसे सुधारने की बजाए ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कर रहे हैं।
सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट:-
मध्यप्रदेश विधानसभा में जुलाई में सरकार के द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति खराब है।इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 47 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर 33 प्रति हजार है। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि यहां 52.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। तो मध्यप्रदेश में कुपोषण एक गंभीर समस्या है। कुपोषण के आंकड़े मध्यप्रदेश के लिए भयावक हैं। कुपोषण के मामले में श्योपुर जिला सरकार के लिए चिंता का विषय है।
लकवा के मरीज भी बढ़े:-
मध्यप्रदेश में बीते दो सालों पहले तक गुलियन बेरी सिंड्रोम यानी नसो का लकवा 10 लाख में से एक व्यक्ति को होता था। लेकिन अब प्रदेश में इसके मरीज बढ़ गए हैं। बीते दो सालों से राजधानी भोपाल में हर महीने 4 से पांच मरीज लकवा से पीड़ित आ रहे हैं। जुलाई 2019 तक हर महीने मध्यप्रदेश में दो से तीन मरीज लकवे के अकेले राजधानी भोपाल में पाए गए हैं।
डॉक्टरों की कमी से जुझता प्रदेश:-
मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की कमी है। जुलाई 2019 तक मध्यप्रदेश में 2249 विशेषज्ञ, 1677 मेडिकल ऑफिसर और 43 दंत चिकित्सकों के पद रिक्त पड़े हैं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में 3969 डॉक्टरों के पद रिक्त पड़े हैं।
प्रदेश में कहां कैसी बीमारी:-
ग्वालियर संभाग में खनन बड़ी मात्रा में होता है। ऐसे में यहां कई ऐसी बीमारियां हैं जो खनन के कारण हो रही हैं। इस इलाके में टीबी, कुपोषण, खाद्य सुरक्षा के मामले सबसे ज्यादा है।
छतरपुर क्षेत्र में दूषित पानी बड़ी परेशानी है। जिसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है।
इंदौर संभाग में भी पानी से जुड़ी बीमारियां हैं। फ्लोराइड युक्त पानी से करीब 12 जिले प्रभावित हैं। यहां मलेरिया का भी प्रकोप है। सतना-सीधी-बैतूल और रीवा जिले में मलेरिया की संख्या ज्यादा है।
आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति:-
हाल ही में भाजपा विधायक सीताराम आदिवासी को अपनी बेटी के इलाज के लिए करीब 8 घंटे तक सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों का इंतजार करना पड़ा लेकिन डॉक्टर नहीं पहुंचे। जब एक विधायक को ऐसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है तब फिर प्रदेश की आम जनता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। एमबीबीएस डॉक्टर गांवों में सेवाएं देने को तैयार नहीं हैं। आदिवासी इलाकों की परेशानियां भी गंभीर हैं। आलीराजपुर, झाबुआ, सिवनी, धार जैसे इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदतर है। ग्रामीण इलाकों तक जननी एक्सप्रेस नहीं पहुंच पाती है। समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण से मातृ या शिशु मृत्यु दर अन्य क्षेत्रों की तुलना में अलीराजपुर में सबसे ज्यादा है। बडबानी जिला भी लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के कारण स्थिति खराब है।
आयुष्मान योजना का हाल:-
मध्यप्रदेश में गरीब प्रदेशों की श्रेणी में आता है। केन्द्र सरकार के द्वारा गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान योजना शुरू की गई। लेकिन मध्यप्रदेश में आयुष्मान योजना की स्थिति भी ठीक नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, मध्यप्रदेश में करीब 1860 निजी अस्पताल हैं। सरकारी अस्पताल करीब 640 हैं। लेकिन प्रदेश में कुल 429 अस्पताल ही आयुष्मान योजना से जुड़ पाएं हैं। इनमें से केवल 350 सरकारी अस्पताल ही आयुष्मान योजना से जुड़ पाए हैं। प्रदेश के केवल 50 फीसदी अस्पताल ही आयुष्मान योजना से जुड़े हैं।
मिलावट खोरी का नारा पर कार्रवाई नहीं:-
'जब तक है सिलावट नहीं होगी मिलावट' और 'शुद्ध के लिए युद्ध' प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने ये नारा दिया है। लेकिन प्रदेश में मिलावट खोरी अभी भी खत्म नहीं हुई है। मिलावट के खिलाफ कई एक्शन लिए गए लेकिन उन मामलों में किसे सजा हुई या कौन गिरफ्तार हुआ ये अभी तक जनता के सामने नहीं आया।
स्वास्थ्य मंत्री नाली में करवा रहे छिड़काव:-
इन सारी समस्याओं के बीच मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट नालों में छिड़काव कर रहे हैं और लोगों को जागरूरक बना रहे हैं, लेकिन जिन आधारभूत सुविधाओं से प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा बेहतर हो सकती हैं उनकी तरफ स्वास्थ्य महकमे का कोई ध्यान नहीं हैं।