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Saturday, March 21, 2020

कमलनाथ अपने बूते बीजेपी से लड़ते रहे, सोनिया और राहुल ने भी नहीं दिया साथ! आखिर क्यों.?

दिल्ली। फ्लोर टेस्ट से पहले ही मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दोपहर करीब एक बजे राज्यपाल से मुलाकात की और अपना इस्तीफा सौंप दिया। कमलनाथ के इस्तीफे से पहले ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने यह संकेत दे दिए थे कि हमारे पास बहुमत नहीं है। इस पूरे सियासी ड्रामे के बीच एक चीज देखने को मिली कि दिल्ली में बैठे बड़े नेता मध्यप्रदेश की घटनाक्रम पर चुप रहे।
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के साथ ही बीजेपी की दिल्ली से भोपाल तक की टीम एक्टिव हो गई। पहले सिंधिया को अपने पाले में लाने से पहले उनके समर्थक विधायक और मंत्रियों को बेंगलुरू में शिफ्ट कर दिया। उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की दिल्ली में अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। अगले दिन सिंधिया बीजेपी के हो गए।
कमलनाथ खुद ही लगे रहे:-
वहीं, मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ सिंधिया के बगावत के बाद खुद ही अपनी सरकार को बचाने के लिए लगे रहे। दिग्विजय सिंह बैठकों में शामिल जरूर होते रहे लेकिन उनका कोई भी दांव पेंच काम नहीं आया। गुरुग्राम से कुछ विधायकों को वापस लाने में वो जरूर कामयाब रहे लेकिन सरकार नहीं बचा पाए। सिंधिया खेमे के इस्तीफा देने वाले विधायकों में कमलनाथ से ज्यादा दिग्विजय सिंह को लेकर नाराजगी थी। बेंगलुरू में वह उनसे मिलने गए लेकिन वह मिले नहीं।
कमलनाथ लगातार बीजेपी के प्रयासों को असफल करने की कोशिश में लगे थे। बीजेपी खेमे में भी उन्होंने अपने बूते सेंधमारी की कोशिश की लेकिन एक-दो विधायक को ही अपने पाले में करते दिखे। बाद में अपने विधायकों को जयपुर भेज दिया। सीएम हाउस में करीबी मंत्रियों और विधायकों के साथ बैठक करते रहे लेकिन सरकार बचाने में सफल नहीं हुए। सबसे बड़ी बात यह रही कि इतनी बड़ी संख्या में विधायक मध्यप्रदेश से बेंगलुरू चले गए। मगर सरकार की इंटेलिजेंस एंजेसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी।
दिल्ली रही निष्क्रिय:-
बीजेपी आलाकमान जहां इस प्रकरण को लेकर एक्टिव थी। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से दिल्ली में कोई सुगबुगाहट भी नहीं थी। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। राहुल ने सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाने को लेकर प्रतिक्रिया दी थी। मगर पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं ने अपनी राय नहीं रखी। यहीं नहीं दिल्ली में कोई आक्रमक अंदाज भी नहीं दिखाया। देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सरकार जाने का किसी को कोई गम ही नहीं है।
खेल बिगड़ने के बाद कुछ नेता पहुंचे भोपाल:-
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दीपक बावरिया हैं, विधायक टूट कर चले गए और सरकार गिर गई लेकिन बावरिया भोपाल में एक्टिव नहीं दिखे। मीडिया से जरूर फोन पर बार करते रहे मगर कमलनाथ को अपने भरोसे छोड़ दिया। जयपुर में विधायकों के शिफ्ट किए जाने के बाद उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत, पवन बंसल और मुकुल वासनिक जरूर भोपाल आए लेकिन खानापूर्ति के लिए। यहां भी नेताओं का कोई आक्रमक अंदाज नहीं दिखा।
गुटबाजी हावी:-
कमलनाथ का ताज पहले दिन से कांटों भरा था। एक तो बीजेपी की कोशिश भी सरकार को अस्थिर करने की थी। मगर वहा ज्यादा परेशान अपनों से रहे हैं। सरकार में सभी गुट के लोगों अपनी दखलदांजी चाहते थे। इस वजह हमेशा सरकार विवादों में रही। कभी दिग्विजय सिंह की दखलअंदाजी को लेकर मंत्रियों ने सवाल उठाए तो कभी सिंधिया गुट के मंत्री महाराज की अनदेखी को लेकर नाराज रहे। दिल्ली में बैठी केंद्रीय नेतृत्व ने कभी भी इन विवादों का पटाक्षेप नहीं किया।