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Wednesday, March 18, 2020

महाराज से वफादारी बनाम सियासी भविष्य: फिक्र में फंसे बागी विधायक

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने ज्यातिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से छीन लिया है। लेकिन अब मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाने के लिए उसे सिंधिया समर्थक विधायकों को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट रखने के लिए जबर्दस्त मशक्कत करनी पड़ रही है। कांग्रेसी संकट प्रबंधकों का दावा है कि उनका कुछ बागी विधायकों से संपर्क हुआ है और उन्हें लगता है कि उनके साथ सियासी धोखा हुआ है।
यह जानकारी भाजपा को हो गई है, इसीलिए बागी विधायकों को भोपाल नहीं आने दिया जा रहा है। उधर ज्योतिरादित्य सिंधिया के कदम से कांग्रेस के प्रथम परिवार के तीनों सदस्य सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अभी तक भावनात्मक सदमें में हैं। प्रियंका ने तो आखिरी दिन जब सिंधिया प्रधानमंत्री से मिलने जा रहे थे, उसके पहले भी फोन से मनाने की कोशिश की थी।
मुख्यमंत्री कमलनाथ तमाम तकनीकी और कानूनी दांवपेचों के जरिए सदन में बहुमत परीक्षण के लिए समय लेकर भाजपा की उलझन और बढ़ा रहे हैं, क्योंकि कमलनाथ और उनके सियासी प्रबंधक बागी विधायकों से संपर्क साधने में जुटे हैं।
कमलनाथ के एक संकट प्रबंधक का दावा है कि उसने एक बागी विधायक जो मंत्री भी थे और विधानसभा अध्यक्ष ने जिनका इस्तीफा मंजूर कर लिया है, से फोन पर बात हुई और वह विधायक बेहद पछता रहे हैं।
इस कांग्रेसी नेता के मुताबिक अब उक्त पूर्व मंत्री दूसरे विधायकों को समझा रहे हैं कि सिंधिया के चक्कर में वह अपनी सदस्यता को दांव पर न लगाएं। हालांकि भाजपा नेता इस दावे से इनकार करते हैं और कहते हैं कि सारे बागी विधायक एकजुट हैं और किसी भी कांग्रेसी का उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, अभिषेक मनु सिंघवी समेत जिनसे भी मध्य प्रदेश के सियासी संकट पर बात हुई सबका एक ही जवाब है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ इस संकट से निबटने में सक्षम हैं और वह अपनी सरकार बचा लेंगे।
हालांकि इस आत्मविश्वास का कोई ठोस कारण ये नेता नहीं बताते हैं, लेकिन उन्हें अपने मुख्यमंत्री पर जबर्दस्त भरोसा है। पूर्व मंत्री से फोन से संपर्क होने का दावा करने वाले कांग्रेसी सियासी प्रबंधक के मुताबिक उक्त पूर्व मंत्री का अपना मोबाइल बंद है, लेकिन उसने होटल के एक कर्मचारी के फोन से अपने मित्र इस कांग्रेसी नेता से बात की, जिसमें उसने दावा किया कि कई बागी विधायक मान रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के चक्कर में उनसे भारी गलती हो गई और उन्होंने अपनी पार्टी की अच्छी खासी चलती सरकार और अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया।
इस कांग्रेसी नेता के मुताबिक भाजपा ने भी सिंधिया पर अपना दबाव बढ़ा दिया है। उनकी बागी विधायकों से लगातार बात कराई जा रही है और वह उनसे अपने प्रति वर्षों पुरानी वफादारी का हवाला देकर उनसे डटे रहने का दबाव बना रहे हैं। उधर कांग्रेसी नेता अपने संपर्क सूत्रों के जरिए बागी विधायकों तक ये संदेश पहुंचा रहे हैं कि जब महाराज सिंधिया ने नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस से अपने पिता और अपने दशकों पुराने रिश्तों को तोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया तो वह कैसे अपने लिए वफादारी की दुहाई दे सकते हैं।
लेकिन बागी विधायक एक तरफ अपने राजनीतिक भविष्य और दूसरी तरफ सिंधिया के प्रति अपनी वफादारी के बीच फंसे हैं। इस कांग्रेसी प्रबंधक के मुताबिक यह सारी सूचना उन्होंने मुख्यमंत्री को दी है और मुख्यमंत्री को अपने सूत्रों से भी एसी ही कुछ और सूचनाएं मिली हैं, जिसकी वजह से उनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है और वह सदन में विश्वास मत कुछ दिन रुक कर कराने के लिए सारे दांव आजमा रहे हैं।
उन्हें लगता है कि आखिर कब तक भाजपा इन विधायकों को रोके रखेगी। उधर भाजपा चाहती है कि जल्दी से जल्दी सदन में विश्वास मत परीक्षण हो जाए और बागी विधायक सदन से अनुपस्थित रहें और अगर कमलनाथ सरकार को एक सप्ताह का समय मिल गया तो विधायकों को रोके रखना टेढ़ी खीर होगी।
उधर ज्यातिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में चले जाने से पूरा नेहरू-गांधी परिवार अभी भी सकते में है। 10 जनपथ के करीबी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए यह झटका करीब करीब ऐसा है जैसे कि खुद उनका बेटा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चला गया हो, क्योंकि राजीव सोनिया और माधवराव सिंधिया तब के दोस्त हैं जब ये तीनों लंदन में पढ़ते थे और माधवराव के निधन के बाद सोनिया ने ज्योतिरादित्य को अपने दूसरे बेटे जैसा संरक्षण दिया था।
ज्यातिरादित्य अपने 18 साल के राजनीतिक जीवन में 17 साल सांसद, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा में मुख्य सचेतक, सदन में उपनेता और संगठन में केंद्रीय महासचिव जैसे अहम पदों पर रहे। बीच में उन्हें उत्तर भारत के लिए कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष तक बनाने का विचार आया था, लेकिन जब उनकी भाजपा के साथ सियासी खिचड़ी पकने की खबर सोनिया तक पहुंची तो इस पर अमल रोक दिया गया।
राहुल गांधी के करीबी सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने कभी नहीं सोचा था कि कॉलेज के जमाने उनके दोस्त ज्योति इस हद तक चले जाएंगे कि न परिवार के रिश्तों को मानंगे और न ही विचारधारा की सीमा रेखा को और उन राजनीतिक विरोधियों से जा मिलेंगे जिनके खिलाफ खुद भी हाल तक बोलते रहे हैं।
वहीं प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय होने के बाद अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी के इस कदम पर सहसा भरोसा ही नहीं कर सकीं और उन्होंने सिंधिया के पार्टी से इस्तीफा देने के बाद भी दो बार उनसे फोन पर बात करके उन्हें मनाने समझाने की कोशिश की।
सिंधिया के बेहद करीबी रहे एक सूत्र के मुताबिक पिछले साल मई में लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद से ही अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर असुरक्षित ज्यातिरादित्य सिंधिया ने पहले अरुण जेटली के जरिए भाजपा में जाने की कोशिश की। लेकिन जेटली के निधन से बात अटक गई।
फिर पूर्व कांग्रेसी और अब हरियाणा सरकार में निर्दलीय मंत्री रंजीत सिंह जिनके सिंधिया परिवार से बेहद घनिष्ठ रिश्ते हैं, ने कुछ महीने पहले सिंधिया का मन टटोला जिसमें उन्होंने फिलहाल इंतजार करने को कहा। फिर दो तीन सप्ताह पहले रंजीत सिंह बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बारे में बात की और उनकी हरी झंडी मिलने के बाद दिल्ली में ही फिर ज्योतिरादित्य से बात की।
इस बार ज्योतिरादित्य सकारात्मक थे। तब रंजीत सिंह ने ये बात गृह मंत्री अमित शाह से की। तब शाह ने इस सियासी ऑपरेशन कि जिम्मेदारी अपने विश्वस्त और सिंधिया के दोस्त भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम को दी। जफर ने इसे अंजाम तक पहुंचाया।