ग्वालियर। मध्य प्रदेश के एक मजबूत स्तंभ को कांग्रेस आज खो चुकी है। वह भी ऐसा नहीं कि वह राजनीति से गायब हो गया हो, बल्कि इस तरह की अब वहीं उनका विरोधी भी बन गया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं ग्वालियर राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की भले ही सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस की ओर से तमाम तरह के आरोप उन पर लगाए गए हों, यहां तक कि उन्हें कांग्रेस से निकाले जाने की तक बात कही गई हो, लेकिन प्रदेश के कई नेता व कार्यकर्ता भी ये मानते हैं कि सिंधिया का कांग्रेस से जाना कांग्रेस को जितना नुकसान पहुंचाएगा। उसकी भरपाई अगले 20 सालों तक होनी मुश्किल है। वहीं कुछ जानकार सिंधिया के कांग्रेस से जाने को कांग्रेस के लिए ज्यादा नुकसान नहीं मानते। राजनीति के जानकार डीके शर्मा की मानें तो सिंधिया का भाजपा में जाना जहां मप्र में काफी हद तक कांग्रेस की जड़े खोदने का काम करेगा, वहीं भाजपा को इसका अत्यधिक लाभ मिलेगा।
कांग्रेस पार्टी को ये होंगे नुक़सान:-
सिंधिया राजवंश के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया पिता माधवराव की मृत्यु के बाद से ही यानि पिछले 18 वर्षों से कांग्रेस से जुड़े हुए थे। इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात ये भी है कि राहुल गांधी ने जब आगे आकर पार्टी की कमान संभाली, तो सिंधिया उनकी टीम के अहम सदस्यों में से थे। जानकार बताते है कि राहुल गांधी और सिंधिया को संसद में साथ चलते, बातें और विचार-विमर्श करते कई बार देखा गया है। यहां तक की दोनों कई कार्यक्रम तक साथ ही में अटेंड करते, इसके अलावा नीतिगत विषयों पर भी आपस में चर्चा करते थे। वहीं कुछ दिल्ली से जुड़े सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि करीब 2 दशक पहले तक दिल्ली की सड़कों पर कभी कभी सिंधिया और राहुल एक साथ ही एक ही वाहन में इधर से उधर जाते भी दिख जाते थे।
इसके अलावा मनमोहन सरकार के समय केंद्र में मंत्री रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्य प्रदेश के चंबल, ग्वालियर और गुना वाले इलाक़े में अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है। इसके अलावा इंदौर, विदिशा, राजगढ़ में भी उनके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता।
सिंधिया राजवंश का प्रभाव:-
एक वक़्त था जब यह राजपरिवार ग्वालियर इलाक़े में कम से कम 50 विधानसभा सीटों पर हार-जीत तय करता था। वहीं मध्यभारत की करीब 85 सीटों को प्रभावित करता था। दरअसल ग्वालियर का जयविलास महल आजादी के बाद रजवाड़ों की राजनीति का एक प्रमुख केंद्र रहा है। देश के मध्य में स्थित अलग-अलग रियासतों को जोड़कर जब मध्य भारत नाम का एक राज्य बनाया गया तो, ग्वालियर परिवार के मुखिया जीवाजीराव इसकी धुरी थे।
कांग्रेस भी थी सिंधिया परिवार के प्रभाव से परिचित:-
वैसे तो जीवाजीराव की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया परिवार के प्रभाव के कारण कांग्रेस चाहती थी कि जीवाजीराव कांग्रेस में शामिल हो जाएं, जबकि कहा जाता है कि उनका झुकाव दूसरे दल की ओर था। खैर इन सबके जीवाजी तो राजनीति से दूर रहे, लेकिन उनकी पत्नी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने काफी मानोमनव्वल के बाद कांग्रेस के टिकट पर 1957 में गुना से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। यहीं से सिंधिया परिवार की भारतीय राजनीति में एंट्री हुई।
कांग्रेस ख़त्म हो जाएगी:-
राजनीति के जानकार डीके शर्मा का कहना है ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ देने से कांग्रेस ख़त्म हो जाएगी, ऐसा नहीं है लेकिन इससे उसे गहरा धक्का ज़रूर लगा है। यहां तक की कई क्षेत्रों में वह काफी सिमट जाएगी, वहीं यह भी मुमकिन है कि कई क्षेत्रों में वह अपना खाता ही नहीं खोल सके। ये भी मुमकिन है कि कई नेता चुनावों में अपनी जमानत तक नहीं बचा सकें। राजनीति के कई जानकार ये भी मानते है कि अभी कांग्रेस और उसके समर्थक सिंधिया के इस्तीफ़े को तवज्जो न देने का अभिनय कर रहे हैं, लेकिन मन ही मन वो सभी जानते हैं कि ये उनके लिए कितना बड़ा नुक़सान है। इसी को देखते हुए गांधी-सिंधिया परिवार के करीबी रहे हैं कांग्रेसी नेता नटवर सिंह ने यहां तक कह दिया कि सिंधिया के जाने से कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा है और यदि वे अभी सोनिया गांधी के पास होते तो उन्हें सलाह देते कि सिंधिया को बुलाकर उनसे बात करें।
खुद पुराने कांग्रेसी भी मानते हैं बढ़ा नुकसान:-
यहां तक की पुराने कांग्रेसी नटवर सिंह ने एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए यहां तक कह दिया कि सिंधिया के जाने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है और बीजेपी को फायदा। उन्होंने कहा कि मुझे जो नजर आ रहा है उसमें साफ दिख रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में साइडलाइन कर दिया गया था, इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ी। उन्होंने ये तक कहा कि सिंधिया को मध्य प्रदेश का अध्यक्ष नहीं बनाया ना उनसे सलाह मशविरा किया अगर इतने बड़े नेता का सम्मान नहीं होगा तो दूसरी पार्टी में जाएंगे ही।
भाजपा को ये होगा फायदा:-
मध्यप्रदेश की राजनीति से जुड़े जानकारों की मानें तो सिंधिया को अपने पाले में लाकर भाजपा अपने दो मक़सद पूरा कर सकती है, इसमें पहला है मध्य प्रदेश में सत्ता की वापसी और दूसरा दो राज्यसभा की सीट। वहीं कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने यहां बुलाकर भाजपा कांग्रेस को ये संदेश भी देना चाहेगी कि कांग्रेस मोदी-शाह की रणनीति के चलते कितनी कमज़ोर हो चुकी है। वहीं भाजपा में सिंधिया के शामिल होने से भाजपा के लिए कांग्रेस के अन्य नेताओं को भी पार्टी की तरफ़ लाने का रास्ता आसान हो जाएगा, या यूं कहें हो भी चुका है, क्योंकि माना जा रहा है कि जल्द ही कई कांग्रेस शासन में रहे मंत्री व विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है।
इसके साथ ही ये भी माना जा रहा है कि ग्वालियर, चंबल, गुना, अशोकनगर सहित कई क्षेत्रों में कांग्रेस अब भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकेगी।