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Monday, March 16, 2020

सत्ता की बाजी पलटी तो हर फैसले में होगा ज्योतिरादित्य सिंधिया का दखल

भोपाल। मध्यप्रदेश के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम में श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया नए सिरे से प्रासंगिक हो गए हैं। राज्य में 1967 का इतिहास दोहराने की तैयारी हो रही है और अगर निशाना सटीक रहा तो अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की तरह ही श्रीमंत कांग्रेस की बाजी पलटने में एक अहम किरदार साबित होंगे। भाजपा के हर फैसले में उनका दखल बढ़ेगा। राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ सरकार को सोमवार को बहुमत साबित करने का पत्र लिखकर परीक्षा की कसौटी पर खड़ा कर दिया है। यह दिन कांग्रेस के साथ ही भाजपा के भविष्य के लिए भी सर्वाधिक अहम है। इस अहमियत को आधार देने में श्रीमंत की ही सबसे अहम भूमिका है। कांग्रेस में उनके समर्थक 22 विधायकों ने कमलनाथ सरकार गिराने की बुनियाद तैयार कर दी है। सिंधिया तो भाजपा में शामिल हो गए हैं, लेकिन अब उनके समर्थकों के लिए भी नई राह खुलेगी।
निस्संदेह भाजपा को संजीवनी देने वाले अपने सहयोगियों को प्रतिष्ठित करने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। सिंधिया का दखल सिर्फ दल की राजनीति में ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि अगर भाजपा की सरकार बनती है तो सरकार के साथ ही नौकरशाही में भी उनके चहेतों को प्रतिष्ठित किया जाएगा। यही वजह है कि संगठन, सरकार और नौकरशाही के केंद्र में शिवराज सिंह चौहान की ही तरह सिंधिया भी आ गए हैं।
भाजपा ने ले लिया बदला:-
कांग्रेसियों ने उनके पुत्र और 1971 में पहली बार गुना से सांसद बने माधवराव सिंधिया को ही अपना मोहरा बना लिया। वह राजमाता और जनसंघ से विद्रोह कर 1980 में कांग्रेस में शामिल हुए और जीवन पर्यंत कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव में पराजित भी किया पर भाजपा ने ज्योतिरादित्य को अपने साथ जोड़कर 40 वर्षों बाद अपना बदला ले लिया। अब अपनी दादी की तरह ही श्रीमंत भी मास्टर स्ट्रोक चलाने के लिए तैयार हैं।
राजमाता ने 52 साल पहले गिराई थी कांग्रेस सरकार:-
मध्य प्रदेश और राजस्थान की राजनीति में इस परिवार का बोलबाला है। यह अजब संयोग है कि सिंधिया 18 वर्षों तक कांग्रेस की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भगवा ध्वज लहराने आए हैं, जबकि उनकी दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया भी 1957 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर शिवपुरी से लोकसभा का चुनाव जीती थीं और बाद में वह जनसंघ में शामिल हो गईं। विधायकों के सहयोग से 1967 में मप्र में कांग्रेस की डीपी मिश्र सरकार को गिरा दिया था। गोविंद नारायण सिंह सीएम बने थे। इतिहास ने करवट ली और वही दृश्य पुन: उपस्थित हो गया।