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Tuesday, April 21, 2020

कोटा से लौटे छात्रों की मार्मिक आपबीती: पानी पीकर मिटाई'भूख', पुलिस का था डर.. यूं कटे खौफ के दिन

राजस्थान के कोटा में फंसे यूपी के लगभग 7500 छात्र वापस लाए गए तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। इनमें से अधिकांश बच्चों की उम्र 16 से 18 साल है। ये बच्चे बस से उतरते ही अपने पैरंट्स से चिपककर खूब रोए तो किसी ने घर फोन करके जल्द ही घर पहुंचने की खबर सुनाई। छात्रों ने यहां आकर जब आपबीती सुनाई तो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। किसी को गरीबों के लिए बंटने वाले खाने से पेट भरना पड़ा तो किसी को पानी पीकर। छात्रों ने बताया कि वह कोटा पढ़ाई करने गए थे, लेकिन वहां पढ़ाई छोड़कर उन्हें दिन रात अपनी जिंदगी और परिवार की चिंता रहती थी।
आयुष वर्मा ने बताया कि वह अक्टूबर में अपने घर से कोटा वापस लौटे थे। वह वहां किराए का कमरा लेकर रह रहे थे। बाहर मेस में खाना खाकर पेट भरते थे। लॉकडाउन के बाद मेस बंद हो गईं। उनके खाने के लाले पड़ गए। बाहर जाकर किसी भी हॉस्टल के मेस से खाना मिल जाता था तो पेट भरते थे। कई बार तो पुलिसवाले रोक लेते और बड़ी मुश्किल से छोड़ते थे।
घरवालों से बोल देते थे झूठ, खाना खा लिया:-
आशुतोष शर्मा ने बताया कि उसे जब कहीं खाना नहीं मिलता तो वह गरीबों को बंटने वाला खाना लाइन लगाकर ले आता था। घरवाले दुखी न हों तो उनसे झूठ बोल देता था कि सब अच्छा चल रहा है। कभी-कभी कुछ भी खाने को नहीं मिलता तो पानी पीकर ही सो जाता था। वह भगवान से मनाता था कि बस किसी तरह घर पहुंच जाऊं।
नहीं मिलता था भरपेट खाना:-
अनामिका वर्मा ने बताया कि लॉकडाउन के बाद ज्यादातर ने मेस बंद कर दिया था। पूरे एरिया में सिर्फ उसके हॉस्टल की एकमात्र ही मेस खुली थी। कई छात्र वहां आकर खाना लेते थे। सब्जियां नहीं मिल रही थीं तो खाने की गुणवत्ता भी गिर गई थी। खाने से पेट नहीं भरता था लेकिन बाहर से भी कुछ मंगाने का साधन नहीं था। पास में जो बिस्किट, नमकीन या मम्मी का बनाया नाश्ता था, वह भी खत्म हो गया था। पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, दिनभर खाने और घर की चिंता रहती थी।
पानी पीकर सो जाता:-
शिवा ने बताया कि वह जनवरी में वापस कोटा गए थे। वह वहां पीजी में रह रहे थे। लॉकडाउन के बाद एक-एक करके सारी मेस बंद होने लगी थी। खाने की गुणवत्ता खराब हो गई। भरपेट खाना भी नहीं मिल रहा था। कभी-कभी पानी पीकर ही सो जाते थे। वहां किराया भी देने की समस्या हो रही थी। उन्हें वॉर्डन ने भी नोटिस दे दिया था कि अगर कुछ हुआ तो उन लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
आधा पेट खाना, नहीं लगता था पढ़ने में मन:-
श्वेताराज पाण्डेय ने बताया कि हॉस्टल के खाने में कटौती कर दी गई। सुबह का नाश्ता कम कर दिया गया। खाना भी कम कर दिया गया। शाम का नाश्ता तो बंद कर दिया गया। घरवाले भी बहुत टेंशन में थे। दिन भर हॉस्टल में रहने के कारण ज्यादा भूख लगती थी लेकिन खाना कम मिलता था। बस दिनरात भगवान से मनाती थी कि किसी तरह घर पहुंच जाऊं।
वॉर्डन ने कहा, हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं:-
इसी तरह सुरभि और हर्षित प्रकाश सिंह के साथ भी हुआ। हर्षित ने बताया कि उनके यहां तो पीजी में ओपन मेस बंद कर दी गई। सीमित खाना दिया जाता था। वॉर्डन ने एक फॉर्म दे दिया था, जिसमें उन लोगों से भराया था कि अगर कुछ होता है तो उन लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। ऐसे में वह और ज्यादा टेंशन में आ गए थे।