ग्वालियर। सोनचिरैया का नाम सुना है। कहते हैं अब चंबल में दिखाई नहीं देती। विलुप्त हो गई है। कैसी दिखती है, मैंने तो नहीं देखी। मैंने क्या ग्वालियर-चंबल अंचल के आसपास किसी ने नहीं देखी दशकों से। लेकिन यहां सोनचिरैया को रहने के लिए बड़ा खासा अभयारण्य जरूर बना रखा है। थोड़ा बड़ा नहीं, खूब बड़ा, यूं मान लो कि यही कोई 500 वर्ग किलोमीटर का होगा। कई जिलों को इसकी सीमाएं छूती हैं। हालांकि जबसे यह बना है तबसे सोनचिरैया ने किसी को दर्शन नहीं दिए। लेकिन इन सोनचिरैया के चक्कर में कई की जवानी बीत गई। न सोनचिरैया लौटी और न शहनाई बजी...।
लखनपुरा में रहने वाले विजेंद्र गुर्जर जैसे यहां 690 लोग हैं, जिनकी यही कहानी है। सोनचिरैया के संरक्षण-संवर्द्धन में कोई खलल न पड़े इसे लेकर अभयारण्य अधिनियम के तहत कई कड़े नियम हैं। सबसे बड़ी पाबंदी यह कि इस क्षेत्र में कोई निर्माण कार्य नहीं होगा। इस कारण अभयारण्य के दायरे में पड़ने वाले 15 गावों में विकास नहीं हो पाया है। न तो सड़कें बनी हैं न पानी की व्यवस्था है। लोग जैसे-तैसे जीवन गुजार रहे हैं।
अब इतना कष्टमय जीवन है तो कोई बाप क्यों अपनी लाडो को यहां ब्याहेगा। सो एक-एक करके यहां कुंवारों की फौज तैयार हो गई है। गाहेबगाहे इस अभयारण्य का दर्जा खत्म करने की खबरें पढ़कर इनके अरमान जाग जाते हैं। गांवों में गुर्जरों की लगभग 6000 आबादी है, यहां पर लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन और खेती का है।
400 लोग हुए 40 के पार-
गुर्जरों के 15 गांवों में लड़कों की शादी नहीं होने से यह कुवांरों के गांव कहलाने लगे हैं। 690 युवा कुंवारे हैं तो इनमें से कई की उम्र 40 के पार हो चुकी है। हमने गिनती की तो यह 400 के पार पहुंची। इन 15 गांवों में विवाहितों की संख्या 103 निकली।
30 साल में उजड़ सकते हैं गांव-
परिवार पलायन कर रहे हैं। सुख साधनों की तलाश में वे शहर और दूसरे जिलों का रुख कर रहे हैं। वहीं जिन युवाओं की उम्र निकल चुकी है उनका वंश नहीं बढ़ पाएगा। इसके चलते गांव के ग्रामीण आशंका जताते हैं कि यह गांव आने वाले तीस साल में उजाड़ हो जाएंगे।
प्रशासन को सौंपी है कुंवारों की लिस्ट-
हूनपुरा, गोढपुरा, सुरनाकी, झाला, नयागांव, फतेहपुरा, चंदूपुरा, कालाखेत, पिरा का पुरा, सीडना का पुरा, रेडाकी, गुर्जा, लखनपुरा आदि गांवों के लोगों ने जिला प्रशासन को 690 कुंवारों की लिस्ट सौंपकर विरोध जताया। मांग की कि इन गांवों में सड़क और पानी की व्यवस्था की जाए। हालांकि अफसरों की मजबूरी है। उनका कहना है कि जब तक अभयारण्य का दर्जा खत्म (डीनोटिफिकेशन) नहीं होता, हम कुछ नहीं कर सकते। इन क्षेत्रों में जंगली जानवरी काफी तादाद में मिलते हैं, जिसमें नील गाय, हिरण, भालू और तेंदुआ आदि शामिल हैं। बस नहीं मिलती तो- सोनचिरैया।