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Thursday, September 26, 2019

भारत की इस धार्मिक नगरी में भगवान राम नहीं रावण की पूजा के साथ शुरू होता है दशहरा उत्सव, निकलती है लंका नरेश की भव्य बारात- VIDEO

प्रयागराज. उत्तर प्रदेश का प्रयागराज देश में एक ऐसा शहर है जहां रावण की बारात निकाले जाने की परम्परा है. बुधवार की रात जब रावण हाथी पर बैठकर अपनी बारात लेकर निकला तो उसे देखने के लिये सड़कों पर लोगों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा. प्रयागराज की सैकड़ों वर्ष पुरानी कटरा रामलीला कमेटी की ओर से पूरे वैभव के साथ रावण के कुनबे की शोभा यात्रा निकाली गई. कटरा राम लीला की ओर से निकाली गई रावण बारात में इस बार खास तौर पर रावण के लिए डेढ़ लाख की पोशाक मथुरा से तैयार कर मंगाई गई थी, जिसे पहन कर हाथी पर सवार होकर रावण प्रयागराज की सड़कों पर निकला. इस शोभायात्रा में हाथी-घोड़े के साथ ही कई शहरों से आए बैंड भी लाइटिंग के साथ बारात की शोभा को बढ़ा रहे थे.
प्रयागराज की सड़कों पर बुधवार को निकली बारात कोई आम बारात नहीं, बल्कि यह बारात लंकापति रावण की थी. रावण की बारात अपने आप में विश्व की एक अनोखी बारात मानी जाती है, जिसमें रावण हाथी पर बैठकर बारात में शामिल होता है. इस बारात में ढोल-नगाड़ों के साथ राक्षसों का वेष धारण करके उसके गण और परिवार के लोग बाराती बनते हैं. साथ ही बैंड बाजा, हाथी-घोड़े और हजारों की संख्या में रावण के भक्त भी शामिल होते हैं. यह बारात भव्य श्रृंगार के बाद भारद्वाज मुनि के मंदिर से उठती और पूरे शहर का भ्रमण करती है.
रावण पूजा से होती है दशहरा उत्‍सव की शुरुआत
देश के दूसरे हिस्सों में भले ही दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम (Lord Ram) की आराधना के साथ होती हो, लेकिन धर्म की नगरी प्रयागराज में इसकी शुरुआत रावण पूजा और रावण की बारात से ही होती है. शारदीय नवरात्र से शुरू होने वाले प्रयागराज के दशहरा उत्सव में सबसे पहले मुनि भारद्वाज के आश्रम में लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है. इसके बाद रावण की ऐसी भव्य व अनूठी बारात निकलती है जो दुनिया में दूसरी किसी भी जगह देखने को नहीं मिलती.

चांदी के सिंहासन पर बैठता है रावण:-
करीब एक किलोमीटर लम्बी इस अनूठी और भव्य बारात में महाराजा रावण हाथी पर रखे चांदी के सिंघासन पर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं. प्रयागराज की श्री कटरा रामलीला कमेटी उत्तर भारत की इकलौती ऐसी संस्था है, जहां दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम के बजाय महाराजा रावण की पूजा के साथ होती है. महाराजा रावण को यहां उनकी विद्वता के कारण पूजे जाने की परम्परा सालों से चली आ रही है.
रावण के बारात से जुड़ी है पुरानी परंपरा:-
धर्म नगरी में रावण बारात निकाले जाने के पीछे एक पुरानी मान्यता भी है. कहते हैं कि जब भगवान राम, रावण वध कर के अयोध्या लौट रहे थे तो उनका पुष्पक विमान यहीं प्रयागराज में भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुका था. लेकिन, भगवान राम ने जब माता सीता के साथ भारद्वाज मुनि से मिलने का प्रयास किया तो ऋषिवर ने उनसे मिलने से मना कर दिया था, क्योंकि भगवान राम से एक ब्राह्मण यानी रावण की हत्या हो गई थी और उनके ऊपर एक ब्रह्म हत्या का पाप था.
इस पर भगवान राम ने भारद्वाज ऋषि से क्षमा मांगी और प्रायश्चित स्वरुप प्रयागराज के शिव कुटी घाट पर एक लाख बालू के शिव लिंगो की स्थापना की. साथ ही भगवान राम ने इसी जगह पर रावण से हत्या की क्षमा भी मांगी थी और रावण को यह वरदान दिया की प्रयागराज में रावण की पूजा होगी और उस की बारात और शोभा यात्रा भी निकाली जायगी. तब से इस तरह धूम धाम से यह बारात निकाली जाती है. रावण बारात निकाले जाने की परम्परा सैकड़ों वर्षों से इसी तरह से चली आ रही है.