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Tuesday, November 26, 2019

फेफड़ों की इस बीमारी से हर साल 15 लाख लोगों की होती है मौत, जानें इसके लक्षण व बचाव

नई दिल्‍ली। 68 वर्षीय सुरेंद्र कुमार अपने बेटे का सहारा लिए खांसते हुए मेरे क्लीनिक पहुंचे। उस वक्त सांस लेने में उन्हें दिक्कत हो रही थी। चेकअप और जांचों के निष्कर्ष से पता लगा कि वह क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से ग्रस्त हैं और कई महीनों से खांसी का इलाज भी चल रहा था। वह धूमपान की लत के शिकार थे और पिछले कई महीनों से खांसी, सांस में तकलीफ और बलगम बनने की शिकायत से ग्रस्त थे। रोगी ने मुझसे पूछा कि मैं कितने दिनों में ठीक हो जाऊंगा?
इस पर मैंने जवाब दिया कि आपको जो रोग है, उसे काबू में तो रखा जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त (क्योर) नहीं किया जा सकता। यह सुनकर रोगी के चेहरे पर निराशा नजर आयी, लेकिन मैंने जब रोगी को यह बताया कि सीओपीडी से पीड़ित लोगों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम के अंतर्गत व्यायाम, रोग का प्रबंधन और उसकी काउंसलिंग भी की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वह बीमारी के होते हुए भी सामान्य जिंदगी जी सकता है, तब उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। मैंने उन्हें यह भी बताया कि इस कार्यक्रम के जरिए किस तरह रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है। 15 लाख लोगों की प्रतिवर्ष दुनियाभर में मौतें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से होती हैं। वहीं भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख लोगों की मौतें सीओपीडी से होती हैं।
लक्षणों के बारे में:-
पीड़ित व्यक्ति की सांस फूलती है।
सबसे पहले रोगी को खांसी आती है।
खांसी के साथ बलगम भी निकलता है।
रोगी द्वारा थकान महसूस करना और उसके वजन का कम होते जाना।
तेज खांसी आने से पीड़ित व्यक्ति को कुछ समय के लिए बेहोशी भी आ सकती है।
बीमारी की गंभीर स्थिति में रोगी को सांस अंदर लेने की तुलना में सांस बाहर छोड़ने में ज्यादा वक्त लग सकता है।
मुख्य तौर पर यह बीमारी 40 साल के बाद ही शुरू होती है, लेकिन कभी-कभी इस उम्र से पहले भी व्यक्ति सीओपीडी से ग्रस्त हो सकता है।
रोगी लंबी अवधि तक गहरी सांस नहीं ले पाता। कालांतर में यह स्थिति बिगड़ती जाती है। व्यायाम करने के बाद तो मरीज की हालत और भी बिगड़ जाती है।
सीओपीडी की गंभीर अवस्था कॉरपल्मोनेल की समस्या पैदा कर सकती है। कॉरपल्मोनेल की स्थिति में हृदय पर दबाव पड़ता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हृदय द्वारा फेफड़ों को रक्त की आपूर्ति करने में उसे अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है। कॉरपल्मोनेल के लक्षणों में एक लक्षण पैरों और टखने में सूजन आना है।
बेहतर है बचाव:-
धूल, धुएं और प्रदूषित माहौल से बचें।
रसोईघर में गैस व धुएं की निकासी के लिए समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
डॉक्टर के परामर्श से हर साल इंफ्लूएंजा की और न्यूमोकोकल (न्यूमोनिया से संबंधित) वैक्सीनें लगवानी चाहिए। धूमपान कर रहे व्यक्ति के करीब न रहें। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब धूमपान करने वाला धुआं छोड़ता है, तो धूमपान न करने वाले व्यक्ति के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। जांच की बात सीओपीडी की सबसे सटीक जांच स्पाइरोमीट्री नामक परीक्षण है।
क्या है कारण:-
डॉक्टर का कहना है कि ‘सीओपीडी’ का एक प्रमुख कारण धूमपान है। अगर रोगी इस लत को नहीं छोड़ता, तो उसकी बीमारी गंभीर रूप अख्तियार कर सकती है। धूमपान से कालांतर में फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। फेफड़ों में सूजन आने लगती है, उनमें बलगम जमा होने लगता है। फेफड़े की सामान्य संरचना विकारग्रस्त होने लगती है। वहीं जो महिलाएं ग्रामीण या अन्य क्षेत्रों में चूल्हे पर खाना बनाती हैं, उनमें सीओपीडी से ग्रस्त होने के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं। वहींजो लोग रासायनिक संयंत्रों में या ऐसे कार्यस्थलों में कार्य करते हैं, जहां के माहौल में कुछ नुकसानदेह गैसें व्याप्त हैं, तो यह स्थिति सीओपीडी के जोखिम को बढ़ा सकती है। इसी तरह सर्दी-जुकाम की पुरानी समस्या भी इस रोग के होने की आशंका को बढ़ा देती है।
इन बातों पर दें ध्यान:-
प्राथमिक लक्षण:सांस गहरी न ले पाना, खांसी आना और बलगम बनना। कारण: प्राथमिक कारण धूमपान करना है। इससे फेफड़ों में सूजन आ जाती है। अस्थमा(दमा) तो नियंत्रित हो जाता है, लेकिन दमा की तुलना में सीओपीडी को नियंत्रित करना कहीं ज्यादा मुश्किल है। कालांतर में यह रोग बद से बदतर हो जाता है।
कैसे काबू करें:-
धूमपान छोड़ें। वैक्सीनें लगवाएं। रोग से पीड़ित लोगों के पुनर्वास की जरूरत होती है। अक्सर रोगी को ‘इन्हेल्ड ब्रांकोडाइलेटर्स’ की जरूरत पड़ती है। कुछ पीड़ित लोगों को लंबे समय तक दी जाने वाली ऑक्सीजन थेरेपी से लाभ मिलता है। रोग की गंभीर स्थिति में फेफड़े के प्रत्यारोपण की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
इलाज के बारे में:-
सीओपीडी को नियंत्रित करने में स्टेरॉयड इनहेलर्स और एंटीकॉलीनेर्जिक टैब्लेट्स की भूमिका महत्वपूर्ण है। अधिकतर दवाएं इनहेलर के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। कभी-कभीकभी सीओपीडी की तीव्रता बहुत बढ़ जाती है,जिसे ‘एक्यूट एक्सासरबेशन’ कहते हैं। इस स्थिति का मुख्य कारण फेफड़ों में जीवाणुओं का संक्रमण होता है। इस संक्रमण के चलते फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी के बलगम का रंग बदल जाता है, जो सफेद से हरा या पीला हो जाता है। रोगी तेजी से सांस लेता है और उसके हृदय की धड़क न बढ़ जाती है। यहीं नहीं, ‘एक्यूट एक्सासरबेशन’ की स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती और कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। सीओपीडी में मौत होने का मुख्य कारण यही स्थिति होती है। इस गंभीर स्थिति में रोगी को बाईपैप थेरेपी और ऑक्सीजन दी जाती है।

(डॉ.एस.पी.राय, पल्मोनोलॉजिस्ट, कोकिलाबेन हॉस्पिटल, मुंबई), (डॉ.बरनाली दत्ता, चेस्टफिजीशियन, मेदांता दि मेडिसिटी, गुरुग्राम)