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Monday, December 16, 2019

तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकने के 2 घंटे बाद भी जिंदा रहा था यह शख्स, पढ़िए- यह चौंकाने वाली स्टोरी

नई दिल्ली। फांसी की सजा के दौरान फंदे पर दोषी के लटकने के चंद सेकेंड बाद ही दोषी दम तोड़ देता है, लेकिन दिल्ली में एक हैरान करने वाला मामला सामने आ चुका है, जिसमें एक दोषी फांसी के फंदे पर लटकने के बाद 2 घंटे तक जिंदा रहा था। यह मामला रंगा-बिला के रंगा से जुड़ा है। पढ़िए दिल्ली की तिहाड़ जेल में वर्ष, 1982 में हुआ यह चौंकाने वाला मामला।
फांसी पर लटकने के दो घंटे बाद भी जिंदा था रंगा:-
तिहाड़ जेल में कई वर्ष तक कार्यरत रहे सुनील गुप्ता ने ब्लैक वारंट नामक अपनी किताब में लिखा है कि तिहाड़ में वर्ष 1982 में रंगा और बिल्ला को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया था। फंदे पर लटकाने के दो घंटे बाद जब चिकित्सक फांसी घर में यह जांच करने गए कि दोनों की मौत हुई या नहीं तो पाया गया कि रंगा की नाड़ी (पल्स) चल रही थी। बाद में रंगा के फंदे को नीचे से खींचा गया और उसकी मौत हुई।
हरि नगर के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में फोरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ.बीएन मिश्र बताते हैं कि फांसी के दौरान गर्दन की हड्डियों में अचानक झटका लगता है। झटके से गर्दन की सात में से एक हड्डी, जिसे सेकेंड वर्टिब्रा कहा जाता है, उसमें से ऑडोंट्वाइड प्रोसेस नामक हड्डी निकलकर स्पाइनल कॉर्ड में धंस जाती है। इसके धंसते ही शरीर न्यूरोलॉजिकल शॉक का शिकार हो जाता है और तुरंत शरीर की नियंत्रण क्षमता समाप्त हो जाती है। इससे उसकी तुरंत मौत हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया चंद सेकेंड में ही हो जाती है।
डॉ. मिश्र बताते हैं कि फांसी की सजा से हुई मौत को फोरेंसिक भाषा में ज्यूडिशियल हैंगिंग कहा जाता है, वहीं खुदकशी के मामले में फांसी लगाने से जो मौत होती है उसमें अधिकांश मामलों में गर्दन व सांस की नली दबने या दोनों के एक साथ दबने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बंद हो जाता है और दो से तीन मिनट में मौत हो जाती है। यदि हत्या के इरादे से किसी को फंदे से लटकाया जाता है तो होमिसाइडल हैंगिंग कहा जाता है। वहीं कुछ मामलों में दुर्घटनावश भी रस्सी या तार में गर्दन के उलझने से मौत हो जाती है। सभी मामलों के अपने-अपने लक्षण हैं।
यह था रंगा-बिल्ला केस
मामला चार दशक पहले 1978 का है। आर्मी अफसर के बच्चे गीता और संजय ऑल इंडिया रेडियो में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जा रहे थे। गोल डाकखाने के पास 26 अगस्त, 1978 को लिफ्ट देने के बहाने रंगा और बिल्ला ने उन्हें कार में बिठा लिया। बाद में दोनों बच्चे जब वापस नहीं आए तो शिकायत दर्ज हुई। तीन दिन बाद 29 अगस्त को दोनों बच्चों की डेडबॉडी मिली। उसमें पता चला कि गीता की हत्या से पहले रेप किया गया था। पता चला कि रंगा-बिल्ला नाम के दो लोगों ने यह हैवानियत की थी। पुलिस ने दोनों को 8 सितंबर, 1978 को ट्रेन से गिरफ्तार कर लिया था। बाद में दोनों को 31 जनवरी 1982 को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।
बता दें कि इन दिनों निर्भया मामले में चारों दोषियों अक्षय, पवन, मुकेश और विनय की फांसी को लेकर चर्चा गरम है। दरअसल, निचली अदालत के बाद दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi high Court) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) भी फांसी की सजा पर मुहर लगा चुका है। अब कुछ कानूनी अड़चन के साथ ही राष्ट्रपति के पास गई दया याचिका पर निपटारा होना ही बाकी है। इस सब प्रक्रिया के होने के बाद चारों दोषियों को फांसी के लिए डेथ वारंट जारी कर दिया जाएगा।