एजुकेशन डेस्क। स्वामी विवेकानन्द की जयंती 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है। आज से 157 साल पहले 1863 में 12 जनवरी को कोलकाता में विवेकानंद का जन्म हुआ था। तब उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया था। विवेकानंद ने दुनिया को भारत की युवा शक्ति का परिचय दिया और हमेशा युवाओं को उनकी शक्ति का एहसास कराया। वह देश के सभी युवाओं के लिए प्रेरणा रहे हैं। इस युवा दिवस के मौके पर हम आपको ऐसे ही कुछ युवाओं के बारे में जिनकी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा है। इन युवाओं के विचार और प्रेरणादायक संघर्ष आपमें नई ऊर्जा भर देंगे।
आयशा चौधरी:-
साल 1996 में गुरुग्राम में इनका जन्म ऑटो इम्यून डिफिशिएंसी डिसऑर्डर के साथ हुआ था। जिसके कारण महज छह महीने की उम्र में उनका बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ा था। लेकिन उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। इस ट्रांसप्लांट के बाद आयशा को पल्मनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary Fibrosis) नामक गंभीर बीमारी हो गई।
इस बीमारी के कारण आयशा के फेफड़ों में ऐसी कोशिकाएं विकसित होने लगीं, जिससे आयशा को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। इन कोशिकाओं ने त्वचा को सख्त और मोटा कर दिया, जिससे आयशा के फेफड़ों तक ऑक्सीजन ठीक से पहुंच ही नहीं पा रही थी।
बेहद छोटी उम्र में आयशा जिंदगी और मौत को करीब से देख रही थी। फिर आयशा की मां ने उनका ध्यान किताबों की तरह आकर्षित किया। एक इंटरव्यू में आयशा की मां ने बताया है कि उसे हमेशा लिखना पसंद था। फरवरी 2014 की बात है जब वह बिस्तर पर पड़ी थी। मैंने उसे ह्यू प्राथर की एक किताब दी और कहा कि इस किताब की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं। इस पर आयशा ने जवाब दिया - मैं ह्यू प्राथर से बेहतर लिख सकती हूं।
महज 18 साल की उम्र में आयशा लेखिका बन गईं। उनकी किताब 'माय लिटिल एपिफैनीज' (My Little Epiphanies) को साल 2015 में जयपुर लिटरेरी फेस्ट में रिलीज किया गया था। लेकिन अपनी किताब की सफलता देखने के लिए ज्यादा दिनों तक वह जीवित नहीं रह सकीं।
2014 तक आयशा के फेफड़ों के ऑक्सीजन लेने की क्षमता 35 फीसदी थी, जो 2015 में 20 फीसदी रह गई। 24 जनवरी 2015 को आयशा की मृत्यु हो गई।
ओपरा विनफ्रे:-
एक अमेरिकी मीडिया उद्योजक, अभिनेत्री, निर्माता व लिपिकार हैं। उनका टॉक शो बेहद लोकप्रिय हुआ। शो को कई पुरस्कार मिले और इतिहास का सबसे ज्यादा रेटिंग वाला टीवी शो बन गया था। एक समय में ओपरा दुनिया की अकेली अश्वेत महिला अरबपति थीं। आज भी वह विश्व की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं।
ओपरा विनफ्रे कहती हैं कि एक काम करिए जो आपको लगता है आप नहीं कर सकते। असफल होइए। फिर से कोशिश करिए। दूसरी बार बेहतर कीजिए। जो लोग कभी ठोकर नहीं खाते, वह वे होते हैं जिन्होंने कभी ऊंचाई की चढ़ाई न की हो। ये आपका पल है, इसे पूरी तरह अपना बनाइए।
मलाला युसुफजई:-
इनका का जन्म 12 जुलाई 1997 को हुआ। मलाला को बच्चों के अधिकारों की कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है। वह पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर में रहती थी।
13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में किसी और नाम से बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गई। अक्तूबर 2012 में मात्र 14 साल की आयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, जिससे वे बुरी तरह घायल हो गई और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गई।
वर्ष 2009 में न्यूयार्क टाइम्स ने मलाला पर एक फिल्म भी बनाई थी। स्वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी।
अक्टूबर 2012 में स्कूल से लौटते वक्त उन पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गई। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली। बाद में इलाज के लिए उन्हें ब्रिटेन ले जाया गया जहां डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद उन्हें बचा लिया गया।
मलाला को साल 2011 अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन किया गया। इसके साथ ही उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार (2013), साखारफ (सखारोव) पुरस्कार (2013), मैक्सिको का समानता पुरस्कार (2013), संयुक्त राष्ट्र का 2013 मानवाधिकार सम्मान (ह्यूमन राइट अवॉर्ड), नोबेल पुरस्कार(2014)
सौम्या शर्मा:-
इन्होंने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली (National Law University - NLU Delhi) से कानून की पढ़ाई की है। उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पहली बार 2017 में दी। एनएलयू से पढ़ाई पूरी होने के तुरंत बाद। तब सौम्या की उम्र 22 साल थी। उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली। लेकिन मुख्य परीक्षा से करीब एक हफ्ते पहले से उन्हें बुखार हो गया।
सौम्या बताती हैं कि पूरे सप्ताह मेरा बुखार नहीं उतरा। परीक्षा के दिन भी तापमान 102 से नीचे नहीं जा रहा था। कभी-कभी तो 103 डिग्री तक पहुंच रहा था। मुझे दिन में तीन बार स्लाइन ड्रिप चढ़ाई जा रही थी। यहां तक कि परीक्षा के बीच के ब्रेक में भी मुझे ड्रिप चढ़ी थी।
बता दें कि सौम्या की सुनने की क्षमता भी काफी कमजोर है। वह हीयरिंग एड की मदद के बिना ठीक से सुन नहीं पातीं। लेकिन सौम्या ने इसका फायदा यूपीएससी परीक्षा में नहीं उठाया। उन्होंने सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन किया था।
साफिन हसन:-
गुजरात के सूरत जिले के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता हीरे की एक यूनिट में नौकरी करते थे।
एक बार जब प्राइमरी स्कूल में कलेक्टर आए थे तो सब उन्हें सम्मान दे रहे थे। ये देखकर उस वक्त साफिन को आश्चर्य हुआ। इस विषय पर साफिन ने अपनी मौसी से पूछा तो उन्होंने बताया कि कलेक्टर किसी जिले का राजा होता है। एक अच्छी पढ़ाई करके कलेक्टर बना जा सकता है। तभी साफिन ने कलेक्टर बनने की ठान ली।
साफिन हसन ने बताया कि 2000 में उनका घर बन रहा था।उनके माता-पिता दिन में मजदूरी और रात में घर के लिए ईंट ढोते थे। उसी दौरान मंदी के चलते माता-पिता की नौकरी चली गई।
उसके बाद उनके पिता ने घर चलाने और बच्चों को पढ़ाने के लिए घरों में इलेक्ट्रीशिन का काम करने के साथ-साथ रात में ठेला लगाकर उबले अंडे और ब्लैकटी बेची।
यूपीएससी के पहले प्रयास के समय उनका एक्सीडेंट हो गया था। फिर भी वे परीक्षा देने गए। बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। लेकिन आखिरकार उन्हें सफलता मिली। देश के सबसे कम उम्र के इस आईपीएस अधिकारी को जामनगर में नियुक्ति दी गई है।
आरोही पंडित:-
भारत की आरोही पंडित ने अकेले प्लेन उड़ाते हुए दो महासागरों को पार किया, वो ऐसा करने वाली दुनिया की पहली महिला पायलट हैं। महज 23 साल की आरोही एक छोटे से एयरक्राफ्ट में अकेले दुनिया की सैर पर निकली थी।
प्रशांत महासागर पार करने के लिए आरोही ने एक लाइट स्पोर्ट्स एयरक्राफ्ट (LSA) में अलास्का से उड़ान भरी थी। फिर रूस में लैंड करने के बाद आरोही ने अपने एयरक्राफ्ट से उतरीं।
आरोही पंडित ने साल 2019 में मई के महीने में अपनी पहली बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। अकेले उड़ान भरकर अटलांटिक महासागर पार करने वाली वह महिला महिला बनी थीं।
ये टूर करते हुए आरोही ने कई वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं। इतना ही नहीं, आरोही ने दुनिया की पहली ऑल-वीमेन टीम बनाई है जो लाइट स्पोर्ट्स एयरक्राफ्ट (LSA) में पृथ्वी की परिधि का चक्कर लगाएगी। इस टीम का नाम है माही (MAHI)।
इस टूर से पहले आरोही को कई टेस्ट भी पास करने पड़े। उनकी सात महीने की ट्रेनिंग हुई। भारत, ग्रीनलैंड, साइबेरिया और इटली में उन्हें महासागरों, बर्फ, हाई एल्टीट्यूड जैसे क्षेत्रों में उड़ान भरने की ट्रेनिंग दी गई। इसके जरिए उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को भी जांचा-परखा गया।
रजत कुमार:-
युवाओं के रोल मॉडल हैं। दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद होनहार छात्र मुंह से पेन पकड़कर खुद परीक्षा देता है। उसने आज तक राइटर नहीं लिया। राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (नीट) उत्तीर्ण करने के बाद अब कुल्लू जिले के आनी का रजत नेरचौक मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करेगा। डॉक्टर बनने के बाद रजत पैरों से स्टेथेस्कोप पकड़कर मरीजों को चेक करेंगे।
रजत ने राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा-2019 में 150 अंक हासिल कर अपने मजबूत इरादे जाहिर कर दिए थे। अब रजत का चयन लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक के लिए हुआ है। रजत ने शारीरिक विकलांग स्टेट कोटे में 14वां रैंक हासिल किया था।
रजत पढ़ने-लिखने के अपने सारे काम पांव और मुंह के सहारे बिना किसी की मदद से करता है। रजत ने हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला द्वारा आयोजित परीक्षा में विज्ञान संकाय में 500 में से 404 अंक हासिल किए थे। रजत ने सभी परीक्षाएं अपने मुंह से पेन पकड़ कर बिना किसी की मदद से लिखी है।
दसवीं की बोर्ड परीक्षा में भी रजत ने 700 में से 613 अंक हासिल किए थे। रजत मुंह से पेंट ब्रश पकड़कर बेहतरीन चित्रकारी भी करता है। स्कूल में पेंटिंग की हर प्रतियोगिता रजत ने ही जीती है।
जब रजत चौथी कक्षा में पढ़ता था। तब एक दिन घर की छत के पास बिजली की एचटी लाइन से उसे जोरदार करंट लगा, जिससे उसके दोनों हाथ कंधे के बिलकुल पास से काटने पड़े थे। इसके बावजूद रजत ने हिम्मत नहीं हारी और मुंह और पांव से पेन पकड़कर लिखने का अपना कारवां जारी रखा।
अंबरीश मित्रा:-
झारखंड के एक गरीब परिवार में पैदा हुए। उनके पिता चाहते थे कि वो अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर इंजीनियर बनाएं, मगर अंबरीश पढ़ाई में बिलकुल अच्छे नहीं थे। कई बार फेल होने के बाद किसी तरह उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की।
वे पढ़ाई में कमजोर थे पर कंप्यूटर में उनका रुझान ज्यादा था। हर पेरेंट्स की तरह उनके पिताजी भी उन पर पढ़ने का दबाव बनाते थे जो उनको बिलकुल पसंद नहीं था। उन्होंने घर छोड़ने का फैसला ले लिया और 15 साल की उम्र में भागकर दिल्ली आ गए
उन्होंने अखबार बेचकर पेट पालने के बारे में सोचा। शायद उन्हें पता नहीं था कि यही अखबार उन्हें करोड़ों की कंपनी का मालिक बना देगा। अखबार बेचते-बेचते उनकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी जिसने उनकी जिंदगी ही बदलकर रख दी। उस विज्ञापन में बिजनेस का आइडिया मांगा गया था और सबसे अच्छा आइडिया देने वाले को 5 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की गई थी।
अंबरीश ने अपना आइडिया दिया और उस आइडिया के लिए उन्हें 5 लाख रुपये बतौर इनाम दिया गया। इस पैसे से उन्होंने खुद का बिजनेस शुरू किया।
उन्होंने 2011 में ब्लिपर नाम की एक कंपनी बनाई जो मोबाइल फोन के लिए ऑगमेंटेड रियलिटी एप बनाती थी। इस कंपनी ने सॉफ्टवेयर की दुनिया में धमाल ही मचा दिया और जगुआर, यूनिलीवर, नेस्ले जैसी दिग्गज कंपनियों के साथ टाइ-अप किया।