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Monday, March 16, 2020

दादी विजयाराजे से मत कीजिए महाराज ज्योतिरादित्य की तुलना, तकलीफ होती है वरिष्ठ नेता'

नई दिल्ली। भाजपा के नेताओं को राजमाता विजयाराजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तुलना अखर रही है। राजमाता विजयाराजे के साथ काम कर चुके पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है कि दोनों की कोई तुलना नहीं। हालांकि राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी पहले कांग्रेसी थीं। उन्हें राजनीति में पंडित जवाहर लाल नेहरू लाए थे। टिकट दिया था, सांसद बनी थीं और इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस छोड़ गई थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके पिता माधवराव सिंधिया की हवाई दुर्घटना में मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी राजनीति में लेकर आई थीं। टिकट दिया था। वह पार्टी में सोनिया गांधी के बेटे जैसे माने जाते थे और सोनिया गांधी के कार्यवाहक अध्यक्ष रहते हुए सिंधिया ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
विजयाराजे बनाम ज्योतिरादित्य:-
विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी तो उस समय किसी दल में शामिल नहीं हुई थीं। उनकी नाराजगी का कारण सीधे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। विजयाराजे तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा प्रिवीपर्स की समाप्ति जैसे कदम से नाराज थीं। वह सरगुजा (छत्तीसगढ़) में पुलिस की कार्रवाई से नाराज थीं और छात्र आंदोलन को आधार बनाकर इस्तीफा दिया था। इसका मुख्य कारण तत्कालीन म.प्र. के पत्रकार, कवि हृदय और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा थे। राजमाता ने कांग्रेस के 37 विधायकों तोड़कर कांग्रेस के ही नेता को मुख्यमंत्री बनवाया था। बाद में जनसंघ में शामिल हुई थीं। उन्होंने जनसंघ को तन, मन, धन तीनों से खड़ा किया। भाजपा की संस्थापक रहीं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता का कहना है कि ज्योतिरादित्य का मामला बिल्कुल अलग है। इन्होंने महत्वाकांक्षा और निजी हितों के टकराव में कांग्रेस पार्टी छोड़ी है। सूत्र का कहना है कि ज्योतिरादित्य जब लोकसभा में पहली बार चुनकर आए थे तब युवा और बिल्कुल लड़के से लगते थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी ने पालकर बड़ा किया। 2004 में केंद्र में यूपीए सरकार बनने के बाद वह मंत्री बनाए गए। दस साल तक मंत्री रहे। 2014 में कांग्रेस विपक्ष में गई तो लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक बने। राहुल गांधी के बगल में बैठते रहे। उन्हें संसद भवन में लोकसभा से लेकर बाहर तक अक्सर राहुल गांधी के साथ देखा गया।
निजी हित के टकराव के कारण भाजपा में आए:-
सूत्र का कहना था कि राजमाता विजयाराजे केवल निजी हित के टकराव में भाजपा में नहीं आई थीं। वह उस समय मध्यप्रदेश की राजनीति में एक हैसियत रखती थीं। उनके जनसंघ और फिर भाजपा के साथ जुड़ने की स्थिति अलग थी। फिर जबतक वह जीवित रहीं, उन्होंने जनसंघ में आने के बाद से इसके लिए पूर्ण समर्पण दिया। पद की उनमें महत्वाकांक्षी नहीं थी। वह कभी मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बनीं। भाजपा की स्थापना के बाद उसकी अध्यक्ष नहीं बनीं। बाद में भी कभी प्रयास नहीं किया। वह पार्टी में नेता तैयार करती रहीं। इसके लिए योगदान देती रहीं।
ज्योतिरादित्य से उम्र, अनुभव और योगदान में दिग्विजय, कमलनाथ दोनों बड़े हैं। सूत्र का कहना है कि जब निजी हित का टकराव होता है तो राजनीति में नैतिकता लोगों को नहीं दिखाई पड़ती। यही टकराव ज्योतिरादित्य को कांग्रेस से दूर ले आया। इसलिए मीडिया में ज्योतिरादित्य को राजमाता विजयाराजे सिंधिया से जोड़कर देखा जाना तकलीफ देता है। यह अच्छी बात है कि वह सिंधिया परिवार से हैं। ग्वालियर राजघराने से हैं और अब भाजपा में हैं। सूत्र का कहना है कि मैं ज्योतिरादित्य के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। विश्वास है कि वह भाजपा की विचारधारा में पूरी तरह से ढल जाएंगे। शेष सब समय पर निर्भर है।