दिल्ली। जनता कर्फ्यू से 21 दिन के लॉकडाउन के निर्णय तक पहुंचने में देश ने जो तेजी दिखाई, उसकी तारीफ के साथ ही जानकार यह भी कह रहे हैं कि शुरुआती दौर में हुई खतरे को नजरंदाज करने वाले अति विश्वास की सजा के रूप में यह हालात बने हैं। पूर्व विदेश सचिव शशांक का भी कहना है कि लग रहा है कई स्तर पर गड़बडिय़ां हो गईं। हम चीन और उसके प्रांत वुहान तथा नेपाल समेत आस-पास के देशों पर फोकस करके बाकी सब ओर से बेखबर रहे। ईरान, इटली, ब्रिटेन, यूरोप के लोग देश में आते-जाते रहे। इसी तरह से मार्च के दूसरे सप्ताह तक इंटरनेशनल कमर्शियल फ्लाइट चलती रही। शशांक भी मानते हैं कि भारत समय रहते कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर सही आकलन नहीं कर पाया।
प्रो. डा. राम भी इसमें लापरवाही को साफ मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ गड़बड़ी नहीं हुई तो अचानक अब मरीज इतना तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं। निश्चित रूप से केन्द्र सरकार और हमारी स्वास्थ्य एजेंसियां खतरे का सही आकलन करने में चूक गईं। पूर्व विदेश सचिव शशांक इस सवाल पर कहते हैं कि चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना संक्रमण से जुड़ी तमाम जानकारी काफी समय तक छिपाईं। इसलिए इसके चपेटे में दुनिया आ गई और भारत भी। कई देशों ने शुरुआती सतर्कता दिखाकर अपने को बचा लिया लेकिन भारत ऐसा नहीं कर पाया। इस संदर्भ में शशांक कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने काफी पहले कोरोना को विश्व समुदाय के लिए महामारी घोषित कर दिया था। भारत में अपनी किलेबंदी की सुध देर से आई।
हम तो चीन और अन्य की मदद कर रहे थे:-
भारत को जब सजग रहना चाहिए था, तब वह दूसरे देशों की मदद कर रहा था। डॉ. अश्विन चौबे बताते हैं कि चीन के कोरोना संक्रमण से प्रभावित होने के बाद भारत सरकार ने बड़े पैमाने पर उसे चिकित्सा सामग्री उपलब्ध कराई। अन्य देशों को भी चिकित्सा मदद दी गई होगी। वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के सवाल को सही ठहराते हैं। राहुल गांधी ने दो दिन पहले आरोप लगाया है कि भारत कोरोना संक्रमण से लड़ रहा है और देश से मार्च के तीसरे सप्ताह तक मास्क, सैनिटाइजर समेत अन्य निर्यात किया गया। डा. अश्विन चौबे का कहना है कि इस समय सही माने में भारत के पास कोरोना संक्रमण के जांच की प्रामाणिक किट नहीं है। भारत का नेशनल इंस्टीट्यूट पुणे जिस किट पर जांच कर रहा है, उसकी प्रमाणिकता के बारे में कुछ कहना कठिन है। डा. चौबे के अनुसार इस समय भारत दुनिया के अन्य देशों से जांच किट, सुरक्षा किट या कुछ भी आयात करना चाहे तो किसी से सहायता मिलना मुश्किल होगा।
कैसे घिरे हम कोरोना संक्रमण चक्र में:-
कोरोना संक्रमण चीन के उस वुहान से सारी दुनिया में फैला जहां के लोगों के दुनिया के बहुतेरे देशों से सीधे व्यापारिक रिश्ते हैं, आना-जाना है। पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि वुहान से कोरोना दुनिया के देशों में फैलता चला गया लेकिन हमारी तैयारी और सतर्कता केवल चीन, उसके प्रांत वुहान, नेपाल और आस-पड़ोस के देश पर अधिक रही। इस दौरान दुनिया के तमाम देशों से हमारे देश में लोग आते-जाते रहे। विदेशों में रह रहे तमाम भारतीय भी आए। यह अपने गांव, घरों और क्षेत्रों में गए। जिनमें भी संक्रमण के अंश थे, उन्होंने दूसरों को संक्रमित कर दिया। अब केन्द्र सरकार और उसकी एजेंसियों को लग रहा है कि बड़ी चूक हो गई।
बेहतर विकल्प था:-
पूर्व विदेश सचिव के अनुसार शीर्ष स्तर पर कोरोना संक्रमण की गंभीरता का सही मायने में शुरुआत में ही आकलन आवश्यक था। इस मामले में हम भी कई देशों की तरह चूक गए। जर्मनी, फिनलैंड, दक्षिण कोरिया की तरह सावधानी नहीं बरती। सिंगापुर का मॉडल भी नहीं अपनाया। अंग्रेजों जैसी गलती करते रहे। शशांक का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ान से आने वाले लोगों की केवल थर्मल स्क्रीनिंग पर भरोसा कर लेना ही ठीक नहीं था। विदेश से आए सभी लोंगो की लगातार निगरानी के लिए शीर्ष स्तर पर कदम उठाए जाने चाहिए थे। हम चेते ही तब जब मार्च में जयपुर का मामला सामने आया। फरवरी के आखिरी सप्ताह से थोड़ा गंभीरता से लेना शुरू किया।
दूसरा, जो भी भारतीय नागरिक यूरोप या अन्य देशों में रह रहे हैं और जिनके वीजा की अवधि समाप्त हो रही है या जो कोरोना के भय से भारत आना चाह रहे हैं, उन्हें लेकर सुरक्षित व्यावहारिक कदम उठाए जा सकते थे। शशांक कहते हैं, जो जहां है, उसे वहां की सरकार को सुरक्षा देनी होगी, यह प्रोटोकॉल है। हमारी सरकार यह कर सकती थी कि जिन भारतीयों की वीजा अवधि समाप्त हो रही थी, उनके वीजा की अवधि बढ़ाने का अनुरोध करती, उन्हें वहां की सरकार से मुफ्त इलाज देने का अनुरोध करती और प्रोटोकॉल के हवाले से उन भारतीयों के स्वस्थ पर इलाज के खर्च का दूतावास, उच्चायोगों के माध्यम से भुगतान करने की बात करती। यह प्रयोग ज्यादा सुरक्षित हो सकता था।