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Sunday, April 19, 2020

मई से हर महीने 20 लाख टेस्टिंग किट बनाएगा भारत: हेल्थ मिनिस्टरी

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से निपटने के दुनियाभर में दो ही तरीके अपनाए जा रहे हैं। लॉकडाउन और टेस्टिंग। लॉकडाउन के बलपर भारत स्थिति को कंट्रोल करने में काफी हद तक कामयाब दिख रहा है। अब टेस्टिंग में भी भारत कोई कमी नहीं छोड़नेवाला है। अगले महीने यानी मई से भारत कोरोना टेस्टिंग की करीब 20 लाख किट हर महीने बनाने में सक्षम होगा। हेल्थ मिनिस्ट्री ने यह जानकारी दी है।
इस 20 लाख में से 10 लाख किट रैपिड ऐंटीबॉडी होंगी और 10 लाख आरटी-पीसीआर वालीं। इससे भारत पर किट्स को आयात करने का बोझ कम पड़ेगा। फिलहाल भारत हर महीने 6 हजार वेंटीलेटर बना सकता है, आगे इसे भी बढ़ाने की कोशिश होगी। इतना ही नहीं भारत आनेवाले वक्त में पीपीई, ऑक्सिजन डिवाइस आदि भी मेक इन इंडिया के तर्ज पर बनाने की तैयारियों में जुट गया है।
करीब 130 साल पुराना है तरीका:-
आपने प्लाज्मा ट्रीटमेंट का नाम भले ही पहली बार सुना हो, लेकिन यह कोई नया इलाज नहीं है। यह 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने खोजा था। इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था। यह मेडिसिन के क्षेत्र में पहला नोबेल था।
​राज्य सरकारों ने मांगी है इजाजत:-
देश के कई राज्यों ने प्लाज्मा तकनीक को आजमाने के लिए केंद्र सरकार से इजाजत मांगी है। कुछ को इजाजत मिल भी गई है। ये फिलहाल ट्रायल के तौर पर इस तकनीक का इस्तेमाल करनेवनाले हैं। इसमें दिल्ली, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडु शामिल हैं। दिल्ली में वेंटिलेटर पर रखे गए शख्स को यह इलाज देना शुरू किया गया है। फिलहाल उसके नतीजों का इंतजार है।
क्या है प्लाज्मा तकनीक:-
हमारा खून चार चीजों से बना होता है। रेड ब्लड सेल, वाइट ब्लड सेल, प्लेट्लेट्स और प्लाज्मा। इसमें प्लाज्मा खून का तरल हिस्सा है। इसकी मदद से ही जरूरत पड़ने पर एंटीबॉडी बनती हैं। कोरोना अटैक के बाद शरीर वायरस से लड़ना शुरू करता है। यह लड़ाई एंटीबॉडी लड़ती है जो प्लाज्मा की मदद से ही बनती हैं। अगर शरीर पर्याप्त एंटी बॉडी बना लेता है तो कोरोना हार जाएगा। मरीज के ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ शरीर में रहती हैं, जिन्हें डोनेट किया जा सकता है।
कैसे होता है इलाज:-
जिस मरीज को एक बार कोरोना का संक्रमण हो जाता है, वह जब ठीक होता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी डिवेलप होती है। यह एंटीबॉडी उसको ठीक होने में मदद करते हैं। ऐसा व्यक्ति रक्तदान करता है। उसके खून में से प्लाज्मा निकाला जाता है और प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी जब किसी दूसरे मरीज में डाला जाता है तो बीमार मरीज में यह एंटीबॉडी पहुंच जाता है, जो उसे ठीक होने में मदद करता है। एक शख्स से निकाले गए प्लाजमा की मदद से दो लोगों का इलाज संभव बताया जाता है। कोरोना नेगेटिव आने के दो हफ्ते बाद वह प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।
​कितना कारगर से प्लाज्मा ट्रीटमेंट:-
प्लाज्मा ट्रीटमेंट कितना कारगर है साफ तौर पर कहा नहीं जा सकता। लेकिन चीन में कुछ मरीजों को इससे फायदा हुआ था। तीन भारतीय-अमेरीकी मरीजों को भी इससे फायदे की खबरें थी। फिलहाल भारत में ICMR और DGCI ट्रायल के बाद ही कुछ कहेंगी।
राज्यों के साथ मिलकर मोदी सरकार कोरोना वायरस स्पेशल हॉस्पिटल की संख्या भी बढ़ाने पर काम कर रही है। शनिवार तक देश में 1919 कोरोना हॉस्पिटल थे। इसमें 672 सीरियस मरीजों के लिए और 1247 मॉडरेट लक्षणों वालों के लिए हैं। देश में फिलहाल 1,73,746 आइसोलेशन वॉर्ड, 21,806 आईसीयू बेड्स मौजूद हैं। फिलहाल भारत के पास 5 लाख रैपिड किट्स चीन से आई हैं। इन्हें अबतक राज्यों को बांटा जा चुका है, जहां से इन्हें जिला स्तर पर पहुंचाया गया।