नई दिल्ली.दुनिया ग्लोबल विलेज में बदल गई है लेकिन लोगों में जरा-जरा सी बात पर मीलों की दूरियां कायम हो जाती हैं। अपनों से मिली चोट से आत्महत्या के ख्याल आने लगते हैं। ऐसा करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक हर 40 सेकेंड में एक जिंदगी खत्म हो रही है।
एम्स के पूर्व मनोरोग चिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं, मेंटल इलनेस का इलाज पूरी तरह संभव है। इससे आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। बहुत से लोग काउंसलिंग और इलाज कराने के बाद सफल हैं यानी अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे ही कुछ लोगों से भास्कर ने बात की। प्राइवेसी बनाए रखने के लिए उनके नाम बदल दिए गए हैं।
चार बार खुदकुशी की कोशिश की, लेकिन अब डॉक्टर बन मम्मी-पापा का सपना पूरा करूंगा:-
मई, 2017 की बात है। सब ठीक चल रहा था। एक दिन, वाट्सएप पर मैसेज एसएमएस आया उसने मुझे अंदर से तोड़ दिया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। खुद को खत्म करने के लिए हॉस्टल के कमरे में ही हाथ काट लिया। मन में मम्मी-पापा का ख्याल आया तो हाथ को कपड़े से बांध लिया। अगले दिन डॉक्टर के पास जाकर पट्टी करा ली। इसके बाद 4 बार मैंने अपना हाथ काटा, हर बार मम्मी-पापा की याद आ जाती थी।
इसके बाद मैं डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने दवाई दी और काउंसलिंग की। इससे मन अंदर से मजबूत हुआ और मैंने आगे बढ़ने की ठानी। अब मैंने पूरी तरह से अपनी पढ़ाई पर फोकस किया है। एक साल बाद डॉक्टर बन जाऊंगा। मम्मी-पापा का सपना है कि अच्छा डॉक्टर बनूं, वही पूरा करने की कोशिश है। इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं।
-संदीप, छात्र बीडीएस (फोर्थ इयर), निवासी बिहार-
आत्मविश्वास टूट चुका था, मरने का फैसला किया, साइकोलॉजी पढ़ कर अब दूसरों को हौसला दूूंगी:-
एमबीबीएस में सिलेक्शन हुआ तो बहुत खुश थी। जुलाई, 2017 में मम्मी-पापा ने खुशी-खुशी अपने से सैकड़ों किलोमीटर दूर पढ़ाई के लिए भेज दिया। यहां आने पर नए दोस्त मिले। अचानक एक दोस्त का व्यवहार बदलने लगा। फोन पर भी अजीब तरह से बात करता था। मैं उसके बदलते व्यवहार का कारण जानना चाहती थी, लेकिन हर बार गलत बिहैव करता था। मम्मी-पापा ने परेशान देखा तो मुझे डॉक्टर के पास ले गए।
डॉक्टर ने मुझे मनोचिकित्सक के पास भेज दिया। मनोचिकित्सक ने मेरी पूरी बात सुनने के बाद कहा तुम बीमार हो दवाई लेनी पड़ेगी। कुछ दिन तक दवाई ली तो मुझे नींद काफी आने लगी। डॉक्टर ने मेरी काउंसलिंग की। उसके बाद से मैंने खुद को खत्म करने का ख्याल मन से निकाल दिया है। मैंने साइकोलॉजी में आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया, ताकि ऐसे लोगों को आत्महत्या जैसा कदम उठाने से बचाया जा सके।
-कल्पना, एमबीबीएस (सेकेंड इयर), निवासी उड़ीसा-
नींद की गोलियां लेकर आत्महत्या करनी चाही, काउंसिलिंग के बाद पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया:-
साल 2015 में 10वीं क्लास में पढ़ती थी। मम्मी-पापा सख्ती कर दी। मेरा फोन ले लिया। स्कूल से आने में थोड़ी देर हो जाए तो पूछताछ। बाहर कहीं जाना हाेता तो मम्मी साथ जाती थीं। इस सबसे मैं बहुत परेशान हो गई थी। मन में आया खुद को खत्म कर लूं। पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था। अकेले रहने की इच्छा होती थी, कॉन्फिडेंस खत्म होने लगा था।
मन में खुद को खत्म करने के ख्याल आने लगे। कई बार हाथ काटकर और नींद एवं अन्य गोलियां खाकर आत्महत्या की कोशिश की। हर बार दोस्त आकर बचा लेते थे। मेरी ऐसी हालत देखकर मम्मी-पापा दुखी हुए। मम्मी-पापा और दोस्त ही मुझे मनोचिकित्सक के पास ले गए। डॉक्टर ने कई सेशन में मेरी काउंसलिंग की और दवाई खाने को भी कहा। इस सबसे मेरा कॉन्फिडेंस वापस आने लगा। मैंने आगे बढ़कर अपनी पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया है।'
-वंदना,बीए सेकेंड इयर (साइकोलॉजी), निवासी दिल्ली-
परिवार का साथ बेहद जरूरी:-
अलग-अलग तरह के कारणों से लोगों के मन में आत्महत्या का ख्याल आता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। उन लोगों में आत्महत्या का ख्याल ज्यादा आता है जिनका फैमिली बेकग्राउंड डिप्रेशन का होता है। लोग आत्महत्या से बचें इसलिए परिजनों को ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। -डॉ. आरपी बेनिवाल, वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक, राम मनोहर लोहिया अस्पताल