नई दिल्ली. बिहार, मध्यप्रदेश में लगातार भारी बारिश हो रही है. इस बारिश से अब तक 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. मानसून की आधिकारिक वापसी के बार जारी इस बारिश से मौसम वैज्ञानिक भी हैरान हैं. वहीं भारत मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक केजे रमेश (KJ Ramesh) ने कहा है कि भारी वर्षा, ओलावृष्टि, हीटवेव और चक्रवात, जैसी एक्सट्रीम मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और इनके बढ़ने का कारण जलवायु परिवर्तन है. उनका कहना है कि विकास के मॉडल की गति बनाए रखने की जरूरत है.
मौसम विभाग की ओर से भविष्यवाणी की गई है कि पश्चिमी राजस्थान (West Rajasthan) से दक्षिण पश्चिम मानसून की वापसी पहले ही एक महीने की देरी से हो रही है. इसके अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक शुरू होने की भी संभावना नहीं है. इसके कारण ही बिहार, मध्यप्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बंगाल के मैदानी इलाकों में अधिक वर्षा का अनुमान लगाया गया है. देश भर में बारिश से जुड़ी घटनाओं में लगभग 150 लोगों की मौत हो गई है. इस बीच, मानसून की लौटने में देरी के साथ भारत के बड़े हिस्से में वर्षा जारी है.
2010 से लंबी हो रही है मानसून की अवधि:-
वायुमंडलीय विज्ञान और जलवायु के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार रमेश ने बताया कि वैज्ञानिक इस तरह की देरी को लगभग पिछले एक दशक से देख रहे हैं. 2010 से मानसून का समय लंबा होता जा रहा है.
उन्होंने बताया मानसून की वापसी के लिए एक एंटीसाइक्लोन बनने की जरूरत पड़ती है जो कि प्रभावी रूप से एक उच्च दबाव वाला क्षेत्र है जिसके चारों ओर हवा एक दक्षिणावर्त दिशा में घूमती है. इसके विपरीत मानसून आने के लिए एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन होता है, जब हवा एक घड़ी की दिशा में उल्टी घूमती है और वायुमंडलीय दबाव और तापमान को कम करती है, जिससे हवा शांत हो जाती है और वर्षा होती है.
अच्छी खबर भी ला सकती है बढ़ी हुई बारिश:-
रमेश ने बताया कि इस दक्षिण-पूर्वी हवा के पैटर्न को उत्तर-पश्चिम भारत के लिए उभरने की जरूरत है और जब ऐसा होता है तो यह धीरे-धीरे सूख जाता है, और यह मानसून की हवा का पूर्व की ओर बड़े पैमाने पर दबाव बनाता है. लेकिन इस साल, उत्तर-पश्चिम भारत में एक एंटीसाइक्लोनिक स्थिति बनने की कोई संभावना नहीं थी क्योंकि कुछ समय के बाद कम दबाव के प्रसार की स्थिति पैदा हो गई थी.
रमेश ने कहा कि हालांकि, बड़े पैमाने पर, इस बढ़ी हुई बारिश का मतलब अच्छी खबर हो सकती है, खासकर उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के लिए. इसके साथ ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण एक्सट्रीम मौसम की स्थिति के खतरों की ओर भी इशारा किया. उन्होंने कहा कि मौसम की घटनाओं का आकार बड़ा हो रहा है, फिर चाहे वह बारिश हो, ओलावृष्टि हो या हीटवेव और चक्रवात हों.
उन्होंने कहा कि चार या पांच मौसम होते हैं; हर मौसम में कई बार मौसमी घटनाओं की अधिकता बढ़ जाती है जैसे गर्मी के मौसम में कभी-कभी बहुत अधिक गर्मी हो जाती है या फिर मानसून में भारी बारिश होने लगती है. जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी स्थिति लगातार बढ़ रही है और ऐसे में इसकी तीव्रता में भी वृद्धि होगी, न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में.
जलवायु परिवर्तन है जिम्मेदार:-
रमेश ने बताया कि मानसून के बढ़ने के साथ, भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं जैसा कि उत्तर प्रदेश और बिहार में देख सकते हैं और मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में ऐसा रुक-रुककर हो रहा है. उन्होंने कहा, चूंकि मानसून का समयकाल बढ़ा हुआ है इसलिए ऐसा हो रहा है और कम दबाव वाले क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाएं देखी जा सकती हैं. इस तरह जलवायु परिवर्तन इसके लिए जिम्मेदार है.
एक ही शहर में वर्षा के केंद्र में बदलाव को लेकर पूछे जाने पर रमेश ने बताया कि जब भी वर्षा होती है, एक विशेष तीव्रता से होती है. ऐसे में अन्य जगहों पर वर्षा होती तो है, लेकिन इसकी तीव्रता समान नहीं होती है. वर्षा ज़ोन या उसकी तीव्रता के हिसाब से अलग-अलग होती है. इसलिए, शहर के कुछ हिस्सों में अधिक वर्षा होती है. उन्होंने 2005 में मुंबई में जलप्रलय के उदाहरण देते हुए कहा कि 26-27 जुलाई को 24 घंटों की अवधि के दौरान, सांताक्रूज में 94.4 सेमी की रिकॉर्ड सबसे ज्यादा बारिश हुई जबकि वहां से सिर्फ 24 किमी दूर कोलाबा में केवल 7.3 सेमी वर्षा हुई थी.
पानी के निकासी के लिए करने होंगे समाधान:-
उन्होंने कहा जैसे-जैसे शहर बढ़ते जा रहे हैं उसके हिसाब से जल निकासी क्षमता को भी सुधारना होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. रमेश ने कहा आपको तेजी से आ रहे पानी की निकासी की क्षमता बढ़ाना होगा. जब आपके पास जल निकासी नहीं होगी, तो आपको पानी का बहाव कम से कम करने के लिए शहर के चारों ओर स्थानीय टैंक-जैसे कि झीलें या तालाब बनाने होंगे. उन्होंने बताया कि पहले ऐसा सभी शहरों में होता था लेकिन धीरे-धीरे यह विलुप्त होते गए.